नरेंद्र इंगले, ब्यूरो चीफ, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
CAA-NRC के कार्यान्वयन को डेटा संकलन के पश्चात गति प्रदान करने वाले National population register (राष्ट्रीय जनसंख्या पंजीकरण) के विरोध के लिए पूरे भारत में परिवर्तनवादी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे चरणबद्ध आंदोलन के मद्देजनर जामनेर में बहुजन क्रांति मोर्चा की ओर से NPR बायकॉट आंदोलन किया गया। क्रांति मोर्चा के संयोजक राजु खरे की अगुवाई में आयोजित इस मोर्चा में बड़ी तादात में महिलाओं की उपस्थिति रही। समाज के लगभग सभी तबकों के श्रमजीवीयों ने आंदोलन में शिरकत की। जलगांव सड़क से निगम तिराहे होकर मोर्चा तहसील कार्यालय पहुंचा। NPR के विरोध में जमकर नारेबाजी के साथ तहसीलदार को ज्ञापन सौंपा गया। कुछ दिनों पहले संगठन ने इसी विषय को लेकर एक दिन का धरना दिया था। CAA, NRC और NPR को लेकर सरकार बैकफुट पर जाने को तैयार नहीं है। गृहमंत्री अमित शाह को उत्तर प्रदेश में आयोजित जनसभा में यह कहकर हुँकार भरते सुना गया कि वह “डंके की चोट” पर कहते हैं कि CAA वापिस नहीं होगा। देश के प्रधामंत्री और गृहमंत्री CAA, NRC पर सदन में बोलने के बजाय उनकी पार्टी की जनसभाओं में डंके की चोट वाली बात करते हैं वह भी उस बहुमत के अहंकार में जो उन्हें जनता ने ही दिया है। CAA, NRC को लेकर NPR का जो डेटा कलेक्ट किया जाना है उसके अर्जी को राज्य सरकारों को फार्म करना है। केरल, राजस्थान समेत अन्य राज्यों की विधानसभाओं ने इसके विरोध में प्रस्ताव भी पारित करवा दिए हैं। गैर भाजपा शासित राज्यों में इस विषय को लेकर मंथन जारी है। देशभर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों को किस तरह हिंसक बनाने के प्रयास किए गए, कैसे प्रशासन का बेजा इस्तेमाल करके जनता की असहमती को कुचलने के लगातार प्रयास किए गए यह पूरा खेल लोग अब समझने लगे हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट में है, संविधान पीठ इसपर सुनवाई करेगी और अंतिम फैसला देगी। शाहीन बाग का आंदोलन बीते पांच महीनों से लगातार जारी है। 21वीं सदी में भारत जैसे लोकतांत्रिक देश मे इतने लंबे समय तक चल रहा शाहीन बाग का यह पहला आंदोलन होगा जो सरकार के दिल मे अपनी माकूल जगह बनाने के बजाय सरकार में बैठे मंत्रियों के दिमाग में सनक का कारण बना हो लेकिन यही आंदोलन लोकतंत्र के पैरोकार के रूप में दुनिया के सामने मिसाल बनकर उभर रहा है जो किसी बुक ऑफ रिकार्ड में अपना नाम अवश्य दर्ज कराएगा। CAA, NRC, NPR के विरोध को लेकर देश के सभी राज्यों में “संविधान द्वारा प्रदान मौलिक अधिकारों” के बदौलत आंदोलनों का सिलसिला लगातार इस कदर जारी है की मंत्रियों की भाषा “चोट” वाली या इससे अधिक शालीन क्यों ना हो गयी हो।
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