अशफाक कायमखानी, जयपुर, NIT;
राजस्थान में स्थानीय निकाय व पंचायत चुनावों में भाग लेने वालों के लिये एक खास कक्षा तक की न्यूनतम पढाई पाने की अनिवार्यता तय करने के बाद अनेक स्थानीय निकायों के हुये चुनाव में मुस्लिम समुदाय का शिक्षित नेतृत्व उभरने के कारण निर्वाचित सदस्यों का निकाय की हर गतिविधियों से पूरी तरह वाकिफ रहकर जायज हक के लिये अधिकारियों व कर्मचारियों से तिखी बहस व सवाल जवाब करने के अच्छे परीणाम सामने आ रहे हैं। वहीं लोकतंत्र की पहली इस सीढी पर इन शिक्षित निर्वाचित सदस्यों के चढने के चलते अब सियासी दलों के आकाओं द्वारा समुदाय विकास के लिये होने वाले प्रोग्राम व प्लान में बात बात पर उनके द्वारा जिन्दा मक्खी का निगलना भी उनके लिये बडा मुश्किल होता जा रहा है।हालांकि प्रदेश में इन चुनावों में न्यूनतम शिक्षा स्तर अनिवार्यता का प्रवधान लागू होने के बाद काफी नगर पालिका/परीषद में चुनाव हुये हैं, जिनमें मुस्लिम समुदाय से भी पहली दफा इंजिनियर, ऐडवोकेट, चिकित्सक जैसी अनेक प्रोफेसनल डीग्री व मास्टर डीग्री वाले बडी तादात में उम्मीदवार जीत कर आने के अच्छे परीणाम सामने आ रहे हैं। लेकिन सीकर नगर परीषद के चुनाव इस शैक्षणिक अधिनीयम के लागू होने से पहले होने के कारण उपरोक्त डीग्रीधारी मुस्लिम समुदाय से चयनीत होकर नहीं आने का गम सभी को अभी भी सता रहा है। समुदाय पारम्परिक तौर पर तीसरा विकल्प न होने के कारण समान्यता: पहले से अब तक कांग्रेस के करीब ही रहता रहा है। कांग्रेस के सभी दिग्गज नेताओं ने हमेशा से आपसी मतभेद होने के बावजूद एक बात पर आम सहमती बनाकर चले कि मुस्लिम समुदाय में अगर नेतृत्व उभारने की जरुरत पड़े भी तो कमजोर व अनपढ या फिर कम से कम पढा लिखा नेतृत्व ही उभारा जाए, अगर कभी कभार मजबूत व उच्च शिक्षित नेतृत्व किसी वजह से अपने आप उभर गया या उभारना पड़ा तो समय अनुकूल होते ही उसे लाइन से हटा दिया जाता रहा है।
प्रदेश में पिछले साल हुये स्थानीय निकाय चुनावों में सिविल इंजिनियर, ऐडवोकेट, चिकित्सक व अन्य अहम डीग्री वाले मुस्लिम युवकों के सदस्य चुनकर आने से सालाना प्लान व बजट बनाते समय उनकी उपयुक्त जागरूकता के कारण वो अपने वार्ड के तमाम आवश्यक जरुरत वाले विकास को शामिल करवाने में कामयाब रहने के साथ साथ उन पर समय समय पर नजर भी रखे हुये देखे गये हैं। दूसरी तरफ अक्सर पहले देखा जाता था कि अनेक मुस्लिम महिला सदस्य बुर्खे व नकाब में आकर बोर्ड मीटिंग में बैठकर चली जाती थीं, जिसके बाद उनके परीवार के पुरुष जो चाहते वो उनके बीहाफ पर सियासत करते रहते थे। लेकिन अबकी दफा न्यूनतम शैक्षणिक अनिवार्य अधिनीयम लागू होने के बाद जहां जहां मुस्लिम महिला सदस्य चुनकर आई हैं, उनमें से अधिकांश बोर्ड मीटिंग में हिन्दी व अंग्रेजी में हर पॉईंट पर तिखी बहस करते हुये अपनी जायज मांग को मनवाती नजर आईं। दूसरी तरफ करीब बाईस साल पहले उक्त चुनावों में महिला आरक्षण लागू तो हो गया था लेकिन उसमें शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता लागू नहीं होने के कारण इंडायरेक्ट रुप से अधिकांश महिला सदस्यों के घर के पुरुष ही पूरी तरह उसके बिहाफ पर सियासत चलाते थे। पर अब जहां शैक्षणिक योग्यता अनिवार्यता लागू होने के बाद जो महिला सदस्य चुनकर आई हैं उनके यहां ऐसा होता प्रतीत नहीं हो रहा है।
न्यूनतम शैक्षणिक अनिवार्यति अधिनीयम लागू होने से पहले चुनाव हुये नगर पालिका/परीषद के मौजूदा मुस्लिम सदस्यों के चुनावी फार्म के शैक्षणिक योग्यता वाले कालम में भरी योग्यताओं पर सभी को एक नजर डालनी चाहिये कि उसमें कितने प्रोफेशनल व शैक्षणिक डीग्री या मास्टर डीग्री वाले हैं? हालांकि उनकी काबलियत पर शक किसी को नहीं है लेकिन इन तथ्यों को देखने के बाद यह सही है कि अगले चुनाव में मुस्लिम सदस्यों के चेहरे काफी बदले बदले नजर आयेंगे।
कुल मिलाकर यह है कि स्थानीय निकाय व पंचायत में न्यूनतम अनिवार्यता शैक्षणिक योग्यता अधिनियम लागू करने का सभी को एक स्वर में स्वागत करते हुये अपने में से शैक्षणिक योग्यता धारी लीडरशिप को उभारने पर विचार करके समाज में आला तालिम का माहोल बनाने पर मेहनत करने का समय रहते अभी से खाका खींचना होगा।
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