अशफाक कायमखानी, सीकर (राजस्थान ), NIT;
परिवार की परवरिश का अंतर है या आज की चकाचौंध दुनीया के असर व बेसर का फर्क है। इनके मध्य का आंकलन करना तो सामाजीक व मनोवेज्ञानीक ज्ञाताओं का काम है, लेकिन मंगलवार दोपहर को राजस्थान के सीकर शहर व लगते कस्बे डीडवाना में घटित दो अलग अलग घटनाओं पर सोचने को हर किसी को मजबूर होना पड़ रहा है।
मंगलवार दोपहर को सीकर शहर के सीकर-डीडवाना रोड़ पर बजाज सर्किल स्थित एक बैंक में एक बूजुर्ग करीब साडे चार लाख रुपये जमा कराने आया तो मोटरसाइकिल सवार तीन अज्ञात लोगों द्वारा उस बूजुर्ग से उन पैसो को लूट लिया गया। लूट की घटना के बाद पुलिस सक्रीय होकर लुटेरों तक पहुंचने के लिये सीसी टीवी कैमरे खंगाल कर व अन्य तरीकों को अपनाकर बदमाशों को पकड़ने की भरपूर कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी तरफ सीकर के लगते कस्बे डीडवाना में टेंट मजदूर फारुक को कायमनगर के पास लावारिस हालत में रास्ते पर चार लाख रुपयों का बंडल मिला तो वह अपने टेंट मालीक के साथ पुलिस थाने जाकर उन रुपयों को पुलिस को सौंपकर उनको उसके असल मालिक तक पहुंचाने की अपील करता है।
कुल मिलाकर यह है कि डीडवाना कस्बे मे फारुक एक तरफ गरीब–मजदूर होने के बावजूद उसके दिल में हक व हलाल रोजी के भेद के साथ साथ पाक परवरदिगार का खौफ होने पर उसको रास्ते में लावारिस रुप में मिली बडी रकम को उसके असली मालीक तक पहुंचाने के लिये पुलिस तक उन रुपयों को पहुंचाता है, तो दूसरी तरफ सीकर शहर में तीन बाइक सवार बेखौफ होकर एक बूजुर्ग से व्यस्तम जगह से साढे चार लाख रुपये लूटकर रफूचक्कर हो जाते हैं। इस अंतर को हमें सामाजिक स्तर पर समझकर कर मंथन करना होगा कि हम अपनी युवा पीढी की तरबीयत किस तरह की करना चाहते है।
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