मेघनगर की बेशकीमती सरकारी व आदिवासी जमीनों पर है भू- माफियाओं की नजर, राजस्व विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों पर मिलीभगत का आरोप | New India Times

रहीम शेरानी, ब्यूरो चीफ, झाबुआ (मप्र), NIT:मेघनगर की बेशकीमती सरकारी व आदिवासी जमीनों पर है भू- माफियाओं की नजर, राजस्व विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों पर मिलीभगत का आरोप | New India Times

झाबुआ जिले के मेघनगर में दो सरकारी भूखंडों को निजी हाथों में सौंप कर नामांतरण किया गया तो इसी को आधार बनाकर नगर में और भी कई सरकारी जमीनों का अस्तित्व खतरे मे पड़ गया है। अगर उक्त जमीन का नामांतरण ख़ारिज किया गया तो आगे कोई भी सरकारी जमीन पर नजर नहीं डालेगा इसलिए अब म.प्र. शासन के जन प्रतिनिधियों के इस मामले में हस्तक्षेप की जरूरत है नहीं तो कमलनाथ सरकार की छवि पर बुरा असर पढ़ना संभव है।

मेघनगर नगर के बीचो बीच स्थित बेशकीमती सरकारी जमीन पर वर्षो से भू – माफिया की नजर थी जो हर बार विफल हो रहा था। पिछले दशकों में जितने भी राजस्व अधिकारी आये उन्होंने नजुल की सर्वे न. 557 जिसके आसपास तमाम सरकारी भवन जैसे कन्या स्कूल, कम्युनिटी हाल, पशु चिकित्सालय, श्रम कल्याण कौशल भवन, बी.आर.सी. भवन, महिला कल्याण कार्यलय आदि एवं पास ही राजस्व अधिकारियों के सरकारी निवास स्थित हैं। भू माफियाओं द्वारा राजस्व अधिकारियों को पैसों का लालच देकर और आंखों पर बैठा कर सरकारी और आदिवासियों की जमीनो को हथियाने की कोशिश फिर शुरू कर दी है जिसके चलते अनापति प्रमाणपत्र प्राप्त कर निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया परंतु स्थानीय नगर परिषद और जागरूक जनप्रतिनिधियों द्वारा आपत्ति लेने पर माफ़िया ने व्यवहार न्यायालय में भ्रामक तथा कपटपूर्वक ली गई उच्च न्यायालय से डिग्री को माध्यम बनाकर बजावरी प्रस्तुत की गई जिस पर नगर परिषद ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से आपत्ति दर्ज करवाई एवं उक्त बजावरी को निरस्त करने का निवेदन किया एवं न्यायालय ने स्वीकार किया कि आधे से ऊपर मेघनगर की बड़ी – बड़ी सरकारी जमीनों पर आज भी भू माफियाओं का फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से कब्जा है एवं बड़े बड़े भवन निर्मित हैं जो कि राजस्व अभिलेखों में अभी भी सरकारी हैं, जेसे सर्वे न. 557 के भूखंड पर पूर्व में तहसीलदार श्री गोतम द्वारा 1/07/2015 (तत्कालीन तहसिलदार)
एन ओसी को निरस्त कर निर्मित स्ट्रक्चर को गिराया था परंतु वर्तमान अधिकारियों द्वारा नियम के विरुद्ध जा कर आपत्तिकर्ता को पूर्व सूचना किये बिना गुपचुप तरीके से कई अनियमितता करते हुए राजस्व अभिलेखों में नामांतरण कर दिया एवं नक्शा ट्रेस में भूखंड क्रमांक 28 सी, 30 सी दर्शाया जो की राजस्व अभिलेखों में कहीं भी इसका उल्लेख नहीं है जो एक बड़े धोखे को दर्शाता है। पंचायत समय से भी ये भूखंड दर्ज नहीं है। नामांतरण प्रकरण में विक्रय- पत्र का परीक्षण जरूरी है परंतु सांठगांठ के चलते इसे नजरअंदाज कर दिया गया। विचारणीय बात ये है कि विक्रय पत्र में कही भी भू माफियाओं द्वारा सर्वे न. का उल्लेख नहीं किया गया पर दावे में कपटपूर्वक उल्लेख कर भ्रम उत्पन्न किया गया और जमीन हथियाने की कोशिश की गई जिस पर आपत्तिकर्ता ने तहसील न्यायालय, एस.डी.एम. न्यायालय के समक्ष अपील दायर की हुई है जो वर्तमान में विचाराधीन है। नगर के मध्य स्थित दशहरा मैदान भूखंड सर्वे न. 485 का नामांतरण प्रकरण तहसील न्यायालय में लंबित है, उसी प्रकार सर्वे न. 557 भूखंड को नामांतरण करके एक टोकन देखा गया यहां सब ब्लाक नजुल एवं मंडी नजुल सभी भूमि एक नेचर की है। राजस्व अमला ओर जनता समझती भी है परंतु चंद सिक्कों में बहुमूल्य सरकारी भूमियो को ऎसे ही भू माफियाओं के हाथों में सोपते देख नगर के जन प्रतिनिधियों ने मध्य प्रदेश शासन को तथा उनके मंत्रियों को इन भू माफियाओं की काली करतूतों से अवगत करवा कर जो वर्तमान कमलनाथ सरकार को बदनाम करते हुए नगर में पर्दे के पीछे से सरकारी जमीनो को ले देकर हड़पने का जो खेल खेला जा रहा है उसे उजागर करते हुए पर्दा उठाने का कार्य भी सच्चे ईमानदार जनप्रतिनिधि कर रहे हैं। सोचने वाली बात ये भी है कि पिछले वर्षो में कई अधिकारी आये पर भू माफियाओं की दाल नहीं गली और अभी अचानक एका एक सरकारी जमीनों को निजी हाथों में देने की कोशिस की जा रही है। अगर ऎसा कुछ संभव होता है तो इसे आधार बनाकर और भी कई भूखंडों को हड़पने की कोशिश की जाएगी। नगर की जनता मौन जरूर है पर सब समझती है और वो उग्र आंदोलन की तैयारी कर रही है। पूर्व में शासन के प्रभारी मंत्री हनी बघेल से इस प्रकरण पर मीडिया द्वारा सवाल किया गया था जिस पर उन्होंने दिखवाकर दोषै पर कड़ी कार्यवाही के निर्देश भी दिये थे।


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