आलेख सत्य कथा पर आधारित
Edited by Pankaj Sharma, NIT:
लेखिका: ममता वैरागी
सुनंदा सुंदर सलोनी सी प्यारी बेटी, दीन दुनिया से बेखबर, बस माता पिता और भाई, हंसता खेलता परिवार। बहुत ही भोली थी सुनंदा। आज और बेहद खुश, पढ़े-लिखे परिवार से रिश्ता आया और वह भी सर्विस में। अब और क्या चाहिए था।व सूंनदा को। अच्छी रीति रिवाज से शादी भी हो गई, पर पहली ही रात पता चल गया कि दिनेश किसी ओर का था। उसने बताया कि उसने परिवार के खातिर, समाज में रहना है।व, इज्जत दार खानदान है इसलिए शादी की, पर वह यानी दिनेश उसे नहीं किसी और को चाहता है पर साथ ही सुनंदा से वचन भी ले लिया कि वह यह बात किसी को ना बतलाये वरना घर में हंगामा हो जायेगा। वह उसके ही साथ की मीना नाम कि किसी महिला को चाहता था। सुनंदा तो धक रह गई। ना हंस पाई, ना रो पाई। उसके साथ किस तरह का धोखा हुआ। अब क्या करे। इधर दिनेश ने दहेज का बहाना बना कर सुनंदा के परिवार को बहुत कोसा ताकि उसके अपने माता-पिता भी कुछ ना बोल पायें। एक सप्ताह बाद जब पहली बार भाई लेने पहुंचा, तो उसके सामने ही सूंनदा को भला बुरा कहकर दहेज का ताना दिया, परिवार वालों को लगा कि दिनेश धन का लालची है। सूंनदा के पिता रोबिली छवि व्यक्त्तित्व के धनी थे। एक बार में बोल पड़े यह नहीं होगा। मैंने मेरा अनमोल हीरा कलेजे का टुकड़ा दिया है, मै दहेज विरोधी हूं और अब और नहीं दें सकता। फिर क्या था बात बहुत बढ गई। यहां बात बढते देख दिनेश के माता-पिता ने दिनेश को समझाया। पता नहीं किस तरह कि चाल चली की उस समय किसी को कुछ समझ नहीं आया और अचानक दिनेश ने पैंतरा बदल कर कहा, मैं मजाक कर रहा था और सुनंदा से प्यार जताने लगा। वह भोली भाली लड़की कुछ समझती उसके पहले ही दिनेश ने मीठा मीठा बोलकर उसे अपने में इस कदर डुबोया कि एक क्षण को वह भूल गई कि यह व्यक्ति किसी अन्य का है और मेरे साथ छल कर रहा है और उस रात वह दिनेश की हो गई। अब थोड़े दिन बिताने पर पता चला सुनंदा मां बनने वाली है। और बस दिनेश जीत गया समझो। वह तो जैसे इसी दिन की तलाश में था, बच्चे के नाम पर मायके भेज दिया गया। अब यहां सूंनदा ने एक सुंदर बेटे को जन्म दिया और बेटे की खबर दिनेश तथा उसके परिवार वालों को दी गई पर कोई बेटे को देखने नहीं आया। उनका काम हो चुका था, शादी और बच्चा। और इधर उसी महिला के साथ खुशी खुशी रहने लगा था दिनेश। अब सूंनदा के पिता को असलियत पता चली कि उनकी बेटी के साथ खुद उसके पति ने दगा किया है। उन्होंने सुनंदा को पढ़ाने की सोची और फिर सर्विस लगवा दी और एक बात कही, बेटा हो चुका है, ओर सर्विस तेरा लग चुका है, पति और इसके अलावा किसी पर विश्वास नहीं करना वरना यह दूनिया जालिम है। एक बार इतने बड़े धोखै का शिकार हो गई, अब किसी का विश्वास नही। वरना दुनिया में बहुत भूखे भेडिए हैं और अचानक हार्ट में दर्द उठा और सूंनदा के पिता की मौत हो गई। अब तो सुनंदा पर जेसे दुखों का पहाड टुट पडा बारह दिन में । सभी के तानों ने सूंनदा की ऐसी हालत कर दी कि उसे लगा उसे भी नहीं जीना है पर बार बार उसे मासुम चहरा दिखता। इधर दिनेश को पता था सरकारी सर्विस और बेटा मेरा है और सुनंदा की अब दूसरी शादी की बात चल रही है अब कहीं ऐसा हो गया तो? यह तो अच्छे से जी लेगी और मेरा बेटा भी मुझसे बिछड़ जायेगा। अब उस मीना को उसने अपना फैसला सूना दिया, तुम्हारे साथ बहुत रह लिया अब पत्नी और बेटे को लाऊंगा। इस बार दिनेश ने उस मीना को धोखा दे दिया और पहुंच गया सूंनदा के पास, तूम दूसरी शादी मत करो, तुम मेरी पत्नी हो, मेरे बेटे के कारण मैंने उसे छोड़ दिया अब केवल तुम्हारा हूँ और देखो अपना कितना प्यारा बेटा है। भोली भाली सुनंदा, दुख की मारी सूंनदा कुछ समझे उसके पहले ही सबसे माफी मांगकर वह चुपड़ी चुपड़ी, बात कर सुनंदा को अपने यहां ले आया। परिवार खूश उनका पोता आ गया था और सब भी खुश कि चलो सुनंदा का घर बस गया। अब दिनेश ने अपने छोटे भाई की शादी की। इधर सुनंदा ने दूसरे बेटे को जन्म दिया। हर तरफ की खुशियां मानो सुनंदा के साथ थी, पर यह क्या आज फिर दिनेश ने ऐलान कर दिया, मेरे दो बेटे लेकर जहां जाना हो चली जाओ मैंने तो भाई की शादी नहीं हो रही थी इसलिए तुम्हें लेकर आया और अब हो गये मेरे दो बेटे। अब तुम्हारी जरूरत नहीं। अब क्या करे इस बार तो पिता भी नहीं और साथ में दो बेटे। जवान नारी कहां जाऊंगी? कहा रहूंगी? उसने बहुत मन्नतें की दिनेश से पर दिनेश एक बिगड़ा हुआ आदमी था। इस बार उसने फिर किसी महिला से संबंध बना लिए थे और उसके साथ रहना चाहता था। इधर दिनेश के माता-पिता ने भी कह दिया खानदानी हो तो हमारे बच्चे लेकर रह नहीं तो किसी के घर में चली जा। हमारा बेटा जिसको औरत कहेगा हम उसे बहू मानेंगे। अब सुनंदा खडी हुई और बोली कहीं नहीं जाऊंगी, इसबार यहीं रहुंगी। पर रोज रोज के उसको दुख देने के कारण सुनंदा घबरा गई और उसने जहर खा लिया। अब पुलिस केस बन गया। सभी को पकड कर पुलिस थाने ले गई। फिर दिनेश ने हाथ जोडकर कहा तुम्हारा गुनहगार मैं हूं, मैरे मम्मी पापा नहीं और फिर इन सब बातों से अपने बच्चों पर बुरा असर दिखाई देगा, मान जाओ और रोनै लगा। तब सुनंदा ने बयान बदलकर कह दिया कि मैंने बासी भोजन किया था, इन लोगों का कोई कसूर नही। और जैसे ही यह बात हुई पुलिस ने सबको छोडा कि सब हंसने लगे सुनंदा पर, बेवकुफ लेडी हम तुझे रखेंगे कभी नहीं और इधर जाति रिश्तेदार कुछ कहते तो दिनेश कह देता मुझे बदचलन औरत मिली।व, घर में टिकती ही नहीं। ना खाना बनाती। कहने जाता हूं तो पुलिस की धमकी देती है। अब लोग क्या जानें सही क्या गलत क्या और औरत होने के नाते सभी यही समझते कि देखो दो दो बच्चों की मां होकर ऐसा करती है बेचारा पति क्या करे। पर इस बार सुनंदा ने अपना हौसला बढाया और चल पड़ी अकेली अपने बच्चों को लेकर। फिर पीछे-पीछे ससुर आते और लोगों से कहते पता है यह बहुत खराब है इसलिए हमने निकाल दिया, अब अच्छी दूसरी लायेंगे। इस तरह बाहर भी उसे अच्छे से ना जीने देने के लिए इस तरह चाल चली। अब तो यह हाल हो गया कि सुनंदा जिधर जाती लोग उससे दूर रहते। उस पर शंका करते- ताना देते। लेकिन सुनंदा ने तो केवल अपना लक्ष्य बना लिया था कि ना तो वह परिवार वालों की ना समाज वालों की किसी कि बातों में ना आकर केवल अपने दो बच्चों को देखेगी, पालेगी। चिल्लाने दो समाज को। यहां अकेली छोड़ी हुई नारी की अहमियत नहीं रहती। नाम सही। मां की तो होगी और मैं एक मां हूं तो इस हिसाब से दुनिया में रहुंगी। अब नहीं डरूगी। ना कभी दिनेश को जीवन में कभी बुलाऊंगी। वह जी रही थी कि एक दिन खबर आई दिनेश का एक्सीडेंट हो गया। फिर भागकर गई। पर वहां वह औरत थी तो चुप चाप आ गई।जब दिनेश ठीक हुआ और उस दूसरी औरत से बच्चा ना हुआ तो दिनेश आया और सुनंदा से एक बच्चा छिन ले गया मेरा है। पर उस दूसरी औरत ने उस बच्चे को रखने से मना कर दिया। अब दिनेश के माता-पिता ने उस बच्चे को बडा किया और सुनंदा से मिलने दिया और इस तरह दिन बीतते गये और सूंनदा ने अपने दोनों बेटों को अकेले अपने दम पर समाज की परवाह ना करते हुए उसके ताने सुनते हूए दोनों बेटों को बडा कर दिया। आज वही समाज और वही लोग सुनंदा के साथ थे, पर अब सूंनदा किसी के साथ नहीं थी। वह तो अपने प्यारे बेटों की दुनिया में मस्त थी।।
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