शेखावाटी के मुस्लिम समुदाय के खन्नी व गुटखा छाप बने युवाओं ने अब नशे की गोलियां का शुरू कर दिया है सेवन, विभिन्न प्रकार के नशे के आदी बनते युवाओं का भविष्य दिख रहा है खतरे में | New India Times

अशफ़ाक क़ायमखानी, सीकर/जयपुर (राजस्थान), NIT:

विभिन्न प्रकार के नशे की लत युवाओं मे उनकी संगत के चलते नासमझी मे लगना शुरू होती है। फिर धीरे धीरे युवक आदतन बनता जाता। नशे से सेवन से शारिरिक दुर्लभता व जहन सून होता जाता है। फिर जहन व शरीर कमजोर होता जाता है। एक समय आता है कि युवक नशा पाने के लिये हर जतन करता है। वो मर्यादाओं को तोड़ते हुये अपराध की दुनिया मे कदम रखकर बरबादी के करीब पहुंच जाता है। इन नशेड़ियों से परेशान उनके परिवार जन-रिस्तेदार व बाल बच्चे इतने दुखी हो जाते है कि वो कभी कभी तो अल्लाह पाक से दुवा कर बैठते है कि इसे उठा ले।इस समस्या से जनपद के अनेक परिवार खण्डित होते जा रहे है।
.फौज व पुलिस की सेवा के साथ खेती बाड़ी एवं अपने परम्परागत खानदानी कार्य करके जीवनयापन करने के समय तो शेखावाटी जनपद के मुस्लिम समुदाय को नैतिक बल के तौर मजबूत समुदाय के तौर पर देखा व माना जाता था। लेकिन समय के साथ परिवार बढने के अनुपात मे शिक्षा के मैदान मे नही बढने एवं बच्चों की देखभाल व परवरिश मे परिवार मुखियाओं की लापरवाही के चलते आज का युवा खन्नी व गुटखा छाप बनने से आगे निकलकर विभिन्न प्रकार के नशे का तेजी से आदतन होता जा रहा है।
पान-गुटखा-खन्नी व भांग सहित कुछ अन्य नशे की सामग्री के अतिरिक्त अन्य नो प्रकार के गम्भीर नशे की चीजें होती है। जिन्मे हेरोइन, क्रेक/कोकीन, शराब, निकोटिन, मेथाडोन, बैंजोडायजेपाइन, बार्बिटुरेटम, व एम्फेटामाइन प्रमुख है।
पहले परिवारों मे पान का सेवन अधिक होता था। अब पान की जगह खन्नी-गुटखा ने जगह लेकर वो घर घर के युवाओं व महिलाओं को जकड़ मे ले लिया है। कुछ घरो मे तो खन्नी व गुटखा का बजट दूध से कई गुणा अधिक व किचन के बजट से मुकाबला करता नजर आता है। अनावश्यक रुप से मोबाइल के उपयोग व दूरूपयोग की लगी लत भी एक नशे का रुप ले चुका है। लेकिन इससे बढकर यह है कि अनेक गम्भीर नसे ने भी घरो मे जड़े जमाना शुरू कर दिया है।
जनपद के शहरी क्षेत्र के मुस्लिम समुदाय मे खन्नी व गुटखा के मुकाबले भांग के नशे का चलन कम होने के मुकाबले शराब सहित अन्य तरह के नशे का चलन पैर पसार रहा है। वहीं गावं-देहात मे महिलाओं व युवाओं मे गुटखा व खन्नी का चलन अधिक है तो युवाओं मे इनके अतिरिक्त शराब व नशीली गोलियों का सेवन करने का चलन परवान चढ चुका है। विभिन्न प्रकार का नशा हराम व जर्दा का सेवन मकरुह बताते है। हमारी धार्मिक लीडरशिप व इमाम साहिबान पर इसके खिलाफ माहोल बनाने की अहम जिम्मेदारी बनती है। लेकिन अधीकांश यह लोग भी जर्दा का पान या फिर गुटखा खाते नजर आयेगे।
जनचर्चा अनुसार बताते है कि जनपद के सत्यावनी के गावो मे नशे की गोलियों का उपयोग युवा तबका अधिक मात्रा मे करने लगा है। गावं की बस्ती के बाहर स्थित शराब ठेके के आसपास पड़े खाली खेत व जमीन रास्ते मे शाम होने से लेकर देर रात तक महंगी गाडियों मे ग्रूप आते है जो गाडी के अंदर या फिर खुले मे शराब का सेवन करते देखे जा सकते है। यह जरूर है कि यह शराब के आदि युवा खुद के गावं की बजाय दुसरे गावं के ठेके से शराब लेकर वहां सेवन करते नजर आयेगे। वही शहरी क्षेत्र मे विभिन्न प्रकार के नशीले पदार्थों की पूड़ियो का वितरण होना बताया जा रहा है। सीकर शहर के कुछ मुस्लिम इलाके मे तो यह सीलसीला जड़े गहरी कर चुका है।
परिवार मे बच्चों की परवरिश को लेकर लापरवाही का आलम यह है कि शाम होते ही घर के जानवर को घर मे गिनकर या सम्भालकर बांधते है। लेकिन घर के युवाओं को यह नही पूछते है कि शाम के बाद देर रात तक तूम कहा ओर क्यो बाहर है। देर रात तक गलियों मे मोबाइल से क्या कर रहे हो। बच्चों की संगत का परिवार को अता पता नही है। सामुहिक परिवार के बजाय एक परिवार मे रहने की बढती प्रवृत्ति पर भी सोचना चाहिये।
कुल मिलाकर यह है कि विभिन्न प्रकार के नशे का युवाओं मे चलन दिनो दिन जनपद के मुस्लिम समुदाय मे तेजी से पैर पसारने लगा है। जिसका कारोबार भी मुस्लिम युवक करने लगे है। अब तो हद हो चली है कि मय्यत के दफन के समय कब्रिस्तान मे जनाजे की नमाज के समय अलग से एक झूंड नजर आता है। देर रात कब्रिस्तान मे हाईमास्क लाईट के निचे नशेड़ी अपना मजमा लगाने लगे है। नशेड़ियों व नशे के कारोबारियों के खिलाफ यदा कदा पुलिस कार्वाई तो करती है। लेकिन असल जाग्रति व रोकथाम समुदाय द्वारा सामाजिक स्तर पर ही किया सकता है।


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