गोपाल किरन समाज सेवी संस्था द्वारा सावित्रीमाई फुले जयंती के अवसर पर सेमिनार आयोजित कर महिलाओं को किया गया सम्मानित | New India Times

संदीप शुक्ला, ब्यूरो चीफ ग्वालियर (मप्र), NIT:

गोपाल किरन समाज सेवी संस्था द्वारा सावित्रीमाई फुले जयंती के अवसर पर सेमिनार आयोजित कर महिलाओं को किया गया सम्मानित | New India Times

गोपाल किरन समाज सेवी संस्था द्वारा विवेकानन्द सभागृह विजयाराजे शा.स्नातकोत्तर महाविद्यालय मुरार ग्वालियर में सावित्री बाई फुले जयंती के अवसर पर सेमीनार एवं सावित्री बाई फुले महिला शिक्षिक अवार्ड कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

इस सेमिनार कार्यक्रम का उद्घाटन आर.ए. मित्तल (से.नि. उपायुक्त सेल टेक्स विभाग) मध्यप्रदेश ,कार्यक्रम की अध्यक्षता भगवती आचार्य (प्रभारी प्राचार्य विजयराजे स्नातकोत्तर ), डॉ. विवेक बापट (विभाग अध्यक्ष जीवाजी युनिवर्सिटी ग्वालियर डॉ.प्रवीण गौतम, (जी.आर.एम.सी. कालेज ग्वालियर ), डॉ. अनुभा सिंह (विभाग अध्यक्ष वीरांगना झलकारी बाई महाविधालय ग्वालियर)
डॉ.एम.के.शर्मा (एडवोकेट उच्च न्यायालय ग्वालियर एवम पूर्व सयोजक मानव अधिकार ), श्रीप्रकाश सिंह निमराजे (अध्यक्ष गोपाल किरन समाज सेवी संस्था) आदि अतिथिगण उपस्थित हुए। इसके बाद दो तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया जिसमें डॉ. विजयलक्ष्मी जाटव, मंजू अग्रवाल, डॉ. नीति पांडेय प्राचार्य, विधि माधव महाविद्यालय, देवयानी पूरी, पटियाला पंजाब,उर्मिला तोमर, के.आर.जी.कालेज, डॉ. कृष्णा सिंह, माया अहिरवार सागर, डॉ. रामशकर जीवाजी वी. वी., प्रीति जोशी स्पेशल सेल ग्वालियर एवं आशा गोतम, सपना श्रीवास्तवआदि ने भाग लिया। कार्यक्रम में स्वागत भाषण एवं गोपाल किरन समाज सेविय संस्था उद्देश्य ,भुमिका को श्रीप्रकाश निमराजे ने रखा।
इसके बाद सावित्री बाई महिला शिक्षिका का सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। जिसके मुख्य अतिथि डॉ. एम.के.शर्मा अध्यक्च्ता आर.ए. मित्तल और विशेष अतिथि डॉ. शांति देव सिसोदिया व, जिवाजी वी. वी. उपस्तिथ थे।

गोपाल किरन समाज सेवी संस्था द्वारा सावित्रीमाई फुले जयंती के अवसर पर सेमिनार आयोजित कर महिलाओं को किया गया सम्मानित | New India Times

सेमिनार को प्रो अनुभा सिह जी ने संबोधित करते हुए कहा कि छात्रों को माँ सावित्री बाई की तरह ही पाखण्ड व अंधविश्वास से दूर रहते हुए स्वयं को आर्थिक व शैक्षिक शक्ति के रूप में स्थापित करना होगा।माँ सावित्री फुले ने भारत के सभी स्त्रियों के लिए शिक्षा के दरवाजे खोल दिये जब उन्हीने बालिका विद्यालयों की स्थापना की। समाज मे विधवा स्त्रियों की शोषण से बचाने हेतु व गर्भवती विधवाओं के प्रसव की व्यवस्था की जिसमे चार सालों में ही दो सेकडो से अधिक शोषित विधवाओं ने अपने बच्चों को जन्म दिया जिनके देखरेख की जिम्मेदारी माँ सावित्री फुले के सामाजिक आंदोलन ने ली, इसकी प्रेरणा उन्हें एक ब्राह्मण मित्र की गर्भवती विधवा बहन को सहायता करने पर मिली जिसके पुत्र को उन्होंने दत्तक पुत्र के रूप में गोंद लिया जिन्हें शिक्षा देकर डॉ बनाया।अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्हीने माँ सावित्री बाई फुले को पहली महिलावादी व क्रांतिकारी कवियत्री कहा।आज भारत उन्हें पहली शिक्षिका के रूप में याद कर रहा है।
आज 3 जनवरी को,भारत की प्रथम नारी शिक्षिका ,क्रान्ति ज्योति ,माता सावित्रीबाई फुले जयंती के अवसर पर सम्पूर्ण देशवासियों को हार्दिक मंगलकामनाएं,श्रीप्रकाश निमराजे, डा विवेक बापट,जीवाजीयुनिवर्सिटी,असिस्टेंट प्रोफ़ेसर (जिवाजी युनिवर्सिटी ),राम शंकर, डा शान्ति देव सिसोदिया (जिवाजी युनिवर्सिटी ), डा. Devyani (देव्यानि पुरि पटियाला) आदि ने रिसर्च पेपर प्रस्तुत करते हुए सवीत्री बाई फ़ुले के जिवन एवं दर्शन पर बताया कि
नाम– सावित्रीबाई फूले
जन्म– 3 जनवरी सन् 1831
मृत्यु– 10 मार्च सन् 1897

उपलब्धि

कर्मठ समाजसेवी जिन्होंने भारतीय समाज के पिछड़े वर्ग खासतौर पर महिलाओं के लिए जिन्हें पढ़ाना पाप समझा जाता था,न सिर्फ शिक्षा का द्वारखोला बल्कि उनके लिए अनेक कल्याणकारी काम किये, उन्हें उनकी मराठी कविताओं के लिए भी जाना जाता है।

जन्म व विवाह
सावित्रीबाई फूले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले केनायगाँव नामक स्थान पर 3 जनवरी सन् 1831 को हुआ। उनके पिता का नाम खण्डोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। सन् 1840 में मात्र नौ वर्ष की आयु में ही उनका विवाह बारह वर्ष के ज्योतिबा फूले से हुआ।
ज्योतिबा फूले स्वयं एक महान विचारक, कार्यकर्ता, समाज सुधारक, लेखक, दार्शनिक,संपादक और क्रांतिकारी थे। सावित्रीबाई पढ़ी-लिखी नहीं थीं। शादी के बाद ज्योतिबा ने ही उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया। बाद में सावित्रीबाई ने ही पिछड़े समाज की ही नहीं, बल्कि देश की प्रथम नारी शिक्षिका होने का गौरव प्राप्त किया। उस समय लड़कियों की दशा अत्यंत दयनीय थी और उन्हें पढ़ने लिखने की अनुमति तक नहीं थी। इस रीति को तोड़ने के लिए ज्योतिबा और सावित्रीबाई ने सन् 1848 में लड़कियों के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। यह भारत में लड़कियों के लिए खुलने वाला पहला स्त्री विद्यालय था। सावित्रीबाई फुले कहा करती थी -अब बिलकुल भी खाली मत बैठो, जाओ शिक्षा प्राप्त करो! जहाँ आज भी हम लैंगिक समानता के लिए संघर्ष कर रहे हैं वहीं अंग्रेजों के जमाने में सावित्रीबाई फुले ने ओबीसी महिला होते हुए भी हिन्दू समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ जो संघर्ष किया वह अभूतपूर्व और बेहद प्रेरणादायक है।

समाज का विरोध
सावित्रीबाई फूले स्वयं इस विद्यालय में लड़कियों को पढ़ाने के लिए जाती थीं। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था। उन्हें लोगों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने न केवल लोगों की गालियाँ सहीं अपितु लोगों द्वारा फेंके जाने वाले पत्थरों की मार तक झेली। स्कूल जाते समय धर्म के ठेकेदार व स्त्री शिक्षा के विरोधी सावित्रीबाई फूले पर कूड़ा-करकट, कीचड़ व गोबर ही नहीं मानव-मल भी फेंक देते थे। इससे सावित्रीबाई के कपड़े बहुत गंदे हो जाते थे अतः वो अपने साथ एक दूसरी साड़ी भी साथ ले जाती थीं जिसे स्कूल में जाकर बदल लेती थीं। इस सब के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी व स्त्री शिक्षा, समाजोद्धार व समाजोत्थान का कार्य जारी रखा।

विधवा पुनर्विवाह के लिए संघर्ष
स्त्री शिक्षा के साथ ही विधवाओं की शोचनीय दशा को देखते हुए उन्होंने विधवा पुनर्विवाह की भी शुरुआत की और 1854 में विधवाओं के लिए आश्रम भी बनाया। साथ ही उन्होंने नवजात शिशुओं के लिए भी आश्रम खोला ताकि कन्या शिशु हत्या को रोका जा सके। आज देश में बढ़ती कन्या भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति को देखते हुए उस समय कन्या शिशु हत्या की समस्या पर ध्यान केंद्रित करना और उसे रोकने के प्रयास करना कितना कठिन था इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है । विधवाओं की स्थिति को सुधारने और सती-प्रथा को रोकने व विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए भी उन्होंने बहुत प्रयास किए। सावित्रीबाई फूले ने अपने पति के साथ मिलकर काशीबाई नामक एक गर्भवती विधवा महिला को न केवल आत्महत्या करने से रोका अपितु उसे अपने घर पर रखकर उसकी देखभाल की और समय पर प्रसव करवाई। बाद में उन्होंने उसके पुत्र यशवंत को दत्तक पुत्र के रूप में गोद ले लिया और ख़ूब पढ़ाया-लिखाया जो बाद में एक प्रसिद्ध डॉक्टर बना।
कवयित्री के रूप में सावित्रीबाई फूले
उन्होंने दो काव्य पुस्तकें लिखीं-
‘काव्य फूले’
‘बावनकशी सुबोधरत्नाकर’
बच्चों को विद्यालय आने के लिए प्रेरित करने के लिए वे कहा करती थीं-
“सुनहरे दिन का उदय हुआ आओ प्यारे बच्चों आज
हर्ष उल्लास से तुम्हारा स्वागत करती हूं आज”
*पिछड़ा शोषित उत्थान में अतुलनीय योगदान*
सावित्रीबाई फूले ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने जीवनकाल में पुणे में ही उन्होंने 18 महिला विद्यालय खोले। 1854 ज्योतिबा फूले और सावित्रीबाई फूले ने एक अनाथ-आश्रम खोला, यह भारत में किसी व्यक्ति द्वारा खोला गया पहला अनाथ-आश्रम था। साथ ही अनचाही गर्भावस्था की वजह से होने वाली शिशु हत्या को रोकने के लिए उन्होंने बालहत्या प्रतिबंधक गृह भी स्थापित किया।
समाजोत्थान के अपने मिशन पर कार्य करते हुए ज्योतिबा ने 24 सितंबर 1873 को अपने अनुयायियों के साथ *‘सत्यशोधक समाज’* नामक संस्था का निर्माण किया। वे स्वयं इसके अध्यक्ष थे और सावित्रीबाई फूले महिला विभाग की प्रमुख। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य शोषण से मुक्त कराना था। ज्योतिबा के कार्य में सावित्रीबाई ने बराबर का योगदान दिया। ज्योतिबा फूले ने जीवन भर महिलाओं और पिछड़े शोषितों के उद्धार के लिए कार्य किया। इस कार्य में उनकी पत्नी सावित्रीबाई फूले ने जो योगदान दिया वह अविस्मरणीय है। यहाँ तक की कई बार ज्योतिबा फूले स्वयं पत्नी सावित्रीबाई फूले से मार्गदर्शन प्राप्त करते थे।
28 नवम्बर 1890 को ज्योतिबा फुले की मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों के साथ ही सावित्रीबाई फूले ने भी सत्य शोधक समाज को दूर-दूर तक पहुँचाने, अपने पति ज्योतिबा फूले के अधूरे कार्यों को पूरा करने व समाज सेवा का कार्य जारी रखा।

मृत्यु- इतनी बड़ी करुणा की देवी कि, मौत को भी गले लगा लिया
सन् 1897 में पुणे में भयंकर प्लेग फैला। प्लेग के रोगियों की सेवा करते हुए, प्लेग से तड़पते हुए अछूत जाति के बच्चे को पीठपर लाद कर लाने के कारण सावित्रीबाई फूले स्वयं भी प्लेग की चपेट में आ गईं और 10 मार्च सन् 1897 को उनका भी देहावसान हो गया।

सन्देश
उस ज़माने में ये सब कार्य करने इतने सरल नहीं थे जितने आज लग सकते हैं। अनेक कठिनाइयों और समाज के प्रबल विरोध के बावजूद महिलाओं का जीवनस्तर सुधारने व उन्हें शिक्षित तथा रूढ़िमुक्त करने में माता सावित्रीबाई फूले का जो महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है उसके लिए देश हमेशा उनका ऋणी है ।
हम उनके जन्म दिन को शिक्षक दिवस के रुप मे मनाएं ,और उनके अधूरे कारवां को पूरा करने का संकल्प लें उनके लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी । डा. प्रविण गोतम ने कहा
क्रांति ज्योति सावित्रीबाई का जन्म दिवस है। इनको देश की पहली महिला शिक्षिका होने का गौरव प्राप्त है। देश के संविधान में लैंगिक समानता को मूल dअधिकार में रखा गया है। इससे बहुत पहले माता सावित्रीबाई फुले ने अपने पति महान समाज सुधारक ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर अन्य सामाजिक सुधारों के साथ इस दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया था । उन्होंने ज्योतिराव द्वारा जनवरी 1848 में पुणे में खोले गए बालिका विद्यालय में अध्यापन का कार्य किया । एक अन्य विद्यालय खोलकर फातिमा शेख के साथ महिलाओं को शिक्षा दी ।ज्योतिराव फुले द्वारा स्थापित संस्था सत्यशोधक समाज के साथ मिलकर बाल हत्या, सती प्रथा, अन्धविश्वास ,गैरबराबरी आदि के विरुद्ध सामाजिक सुधार के कार्य किये। विधवा विवाह हेतु भी कार्य किया । उनके द्वारा बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की भी स्थापना की गई थी। इनके दत्तक पुत्र यशवंत राव फुले द्वारा एक अस्पताल भी खोला गया था।प्लेग की बीमारी से पीड़ितों को अस्पताल में लाने के कारण उनको भी यह बीमारी लग गई और वे 1897 में परिनिवृत हो गई। ऐसी महान शिक्षिका, क्रांति ज्योति,करुणामयी माता सावित्री बाई फुले के जन्म दिवस आज भारत की राष्ट्रमाता समाज सेविका एवं सुधारीका और बहुजनओं के लिए वरदान बनकर आई 188 साल पहले सावित्रीबाई फुले की जयंती है 3 जनवरी 1831 में जन्मी महाराष्ट्र के सतारा जिले के नए गांव में उनके पिता का नाम खनदोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था उनका बचपन बहुत ही संघर्ष में पीता क्योंकि बचपन में पिता का देहांत हो गया था 1840 में मात्र 9 वर्ष की आयु में 13 वर्ष के राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फूले के साथ उनका विवाह हो गया था राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फूले सावित्रीबाई फूले के पति ही नहीं गुरु संरक्षक और समर्थक भी थे आप लोगों ने मिलकर भारत में आज से 160 साल पहले एक नहीं दो नहीं बल्कि 18 विद्यालय बहुत दिनों के लिए खोले थे 1852 में माता सावित्री बाई फूलों ने बालिकाओं के लिए एक स्कूल खोला था आज अगर आप देखते हैं समाज में किसी के घर में जब बच्चा जन्म लेता है तो उस मां बाप के आंखों में एक सपना आता है कि मुझे अपने बच्चे को यह पढ़ाई करानी है वह पढ़ाई करा नहीं है डिग्री दिलानी है वो डिग्री दिलानी है और हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए दिन रात प्रयास करते हैं सच में आज अगर हम शिक्षित हैं हमारी महिलाएं शिक्षित हैं हमारी माताएं शिक्षित है हमारी बेटियां सुरक्षित है शिक्षित है तो यह सब उन महामानव और महा नायिका की ही देन है और इसका श्रेय उन्हीं को जाता है आज उनकी 188 वी जयंती पर कहना चाहते की किसी भी सरस्वती ने पढ़ने का अधिकार नहीं दिया ना ही उसने कोई स्कूल खोला और ना ही हमें पढ़ने का अधिकार दिया न जाने हम किस कारण जिस हम तो रात गुणगान करते हैं उसने हमें शिक्षा का अधिकार नहीं दिया आज अगर हम शिक्षित हैं हमारे बच्चे शिक्षित हैं तो उसका श्रेय माता सावित्री बाई फूले और राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा राव फूले के लिए जाता है और आज मैं आप लोगों से कहना चाहता हूं और बताना चाहता हूं कि आप लोग अपने बच्चों को माता सावित्री बाई फुले की कहानी सुनाएं उनके जीवन के वह सच्ची घटनाएं बताएं जिससे हमारे बच्चों को प्रेरणा मिले और वह उनसे प्रेरित होकर आगे बढ़े और आज जो उनक …अंधकार में जाता हुआ दिखाई दे रहा है इसको नई ऊर्जा और रोशनी प्रदान करें !

भारत की प्रथम अध्यापिका सावित्री बाई फुले पर पत्थर और गोबर फैंका जाता था, जानिए क्यों ?*
सच्चे राष्ट्रपिता महामानव ज्योतिराव फुले को जब सच्चाई का ज्ञान हुआ तो उन्हें लगा कि जब तक समाज को शिक्षा से नहीं जोड़ा जाएगा तब तक समाज की दशा सुधरने का नाम नहीं लेगी, इसके लिए उन्होंने समाज को पढ़ाना शुरू किया साथ ही अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले को भी घर पर ही पढ़ाना शुरू किया और मिशनरी संस्थान से शिक्षण प्रशिक्षण परीक्षा पास कराकर उन्हें भारत की प्रथम अध्यापिका बनाकर एक नया इतिहास रचने का काम किया।
अध्यापिका बनने के बाद सावित्री बाई फुले घर पर नहीं बैठी बल्कि शोषित बहुजन समाज की बालिकाओं को शिक्षित करने के लिए एक बालिका विद्यालय खोला लेकिन उसमें कोई भी अपनी बच्चियों को पढ़ने के लिए भेजने को तैयार नहीं था क्योंकि कुछ लोगो ने ब्राह्मणों ने समाज को भृमित कर रखा था कि शास्त्रों में बालिका को पढ़ना अशुभ माना जाता है और यदि फिर भी कोई बालिका विद्यालय में आकर पढ़ेगी तो जब उसकी शादी होगी तो कुछ ही दिनों बाद वह विधवा हो जाएगी।
बेटी के विधवा होने के डर से कोई भी अपनी बच्चियों को विद्यालय में पढ़ने के लिए भेजने को तैयार नहीं था,लेकिन सावित्री बाई फुले एवं महामानव ज्योतिराव फुले के लगातार समझाइस एवं सच्चे प्रयासों से कुछ माता पिता अपनी बच्चियों को स्कूल भेजने लगे यह देखकर ब्राह्मण समाज में हड़कंप मच गया एवं तुरन्त ही उन्होंने आनन फानन में गांव की पंचायत बुलाई व उस पंचायत में ज्योतिराव फुले के पिता गोविंद राव फुले को बुलाकर भरी पंचायत में फरमान सुनाया कि आपकी पुत्रवधू धर्म के खिलाफ काम कर रही है हम इस प्रकार धर्म को नुकसान नहीं होने देंगे इसलिए आप अपनी पुत्रवधू को बालिकाओं को पढ़ाने से रोको और रोक नहीं सकते हो तो उन्हें घर से बेदखल करो वरना हम तुम्हें तुम्हारी बिरादरी से बाहर करवा देंगे।

गोविंद राव फुले ने अपने पुत्र और पुत्रवधु को बालिकाओं को पढ़ाने से बार बार मना किया लेकिन वे बिलकुल भी नहीं माने इसलिए उनके पिता ने ब्राह्मणों की धमकी के चलते उन्हें घर से निकाल दिया।घर से निकाल देने के बाद सावित्री बाई फुले की सहेली फातिमा शेख ने अपने घर में स्कूल खोलने का आग्रह किया एवं अपनी सहेली के आग्रह पर उसी के घर पर बालिकाओं को पढ़ाना शुरू किया जिससे नाराज होकर बहुत सी महिलाएं सावित्री बाई फुले पर पत्थर और गोबर फैंकती थी लेकिन फिर भी वह आजीवन अपने अभियान में लगी रही।
आज हजारों महिलाओं अथवा बीएड करे हुए हैं एवं अध्यापिका बनने की सभी योग्यता रखकर भी शिक्षा के अभियान में अपनी भूमिका जरा भी नहीं निभा रही हैं जबकि अब तो उन पर पत्थर और गोबर फैंकने का डर भी नहीं है।
सावित्री बाई फुले ने अपने पति महामानव ज्योतिराव फुले की वह बात सदैव याद रखी जो उन्होंने कही थी कि
शिक्षा बिना मति गयी
मति बिना नीति गयी
नीति बिना गति गयी
गति बिना धन गया और धन के अभाव में बहुजन समाज गुलाम हुआ और ये सब शिक्षा के अभाव में हुआ।
Majअग्रवाल ने सावि्त्रि बाई फ़ुले के जीवन को पावर पोइन्ट से स्लाईड द्वारा बहुत सुन्दरता के साथ प्रस्तुत किया! भगवती आचार्य ने आज पहली बार उनकी फोटो देखी इसके पुर्व नही वो उन्हे नहीं जनति थी!स्पेशल सेल ग्वलियर से प्रीति जोशी ने महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के स्वरुप एवं बचाव के बारे मे बताया ओर महिला सुरक्षा हेल्प लाईन 1090,1091 के साथ मेत्री एप्लिकेशन व 100 डायल के बारे मे बताया छत्राओ को सेल्फ़ कोन्फ़िडेन्स ओर शिक्षा के साथ जागरूकता पर बल दिया!

गोपाल किरन समाज सेवी संस्था द्वारा सावित्रीमाई फुले जयंती के अवसर पर सेमिनार आयोजित कर महिलाओं को किया गया सम्मानित | New India Times

आओ हम मिलकर माता सावित्री बाई फुले के अभियान को आगे बढ़ाएं प्रत्येक बालिका को शिक्षित बनाएं जहाआरा , श्री प्रकाश निमराजे ने स्वयंसेविता हमारे देश की बड़ी पुरानी परंपरा रही है। विगत तीन दशकों में सरकार द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में अपनी भूमिका निरंतर कम किये जाते रहने से स्वयंसेवी संस्थाओं और इनमे काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। ये सामाजिक कार्यकर्ता कहने के लिये तो लोगों की आजीविका, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, सम्मान, बराबरी, अधिकार और सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये काम करते हैं परंतु स्वयं इन सब सुविधाओं और अधिकारों से वंचित हैं। जमीनी स्तर पर कार्यरत अधिकतर साथी तो न्यूनतम वेतन से भी वंचित हैं जबकि पेंशन, मंहगाई भत्ता, भविष्यनिधि, दुर्घटना व सामान्य बीमा और स्वास्थ्य बीमा आदि के सामान्य अधिकार तो मुट्ठी भर सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी हासिल नहीं हैं। फ़िर भी काम करते रहते हे जिनके लिए हमको सोचना होगा जो हमे समाज से मिला हे उसे वापिस करना होगा!
चिंता जाहिर करते हुए कहा की सावित्री बाई फ़ुले जी उनका इतना बड़ा योगदान होते हुए भी हम उन्हें जानते नहीं हैं लोगों में जागरूकता नहीं है उनके नाम से एक राष्ट्रीय छुट्टी भी नहीं है उनको भारत रतन से भी नहीं नवाजा गया है अगर यह सब हुआ है सिर्फ उसका कारण यही है क्योंकि सामान्य नहीं थे वह अगर वह सामान्य वर्ग होती तो आज उनको भारत रतन ही नहीं राष्ट्रीय छुट्टी ही नहीं भारत का राष्ट्रपिता घोषित कर दिया गया होta हम आज सरकार से मांग करते हे की माता सावित्री बाई फूले को मरणोपरांत भारत रत्न से नवाजा जाए और उनके नाम से एक राष्ट्रीय छुट्टी घोषित की जाए का प्रस्ताव पारित किया जाय ओर अनुरोध किया गया उनके जन्मदिन को महिला शिक्षक दिवस के रुप मे घोषित किया जाय!

समारोह में सावित्री बाई फुले पर ग्वालियर संभाग में पीएच. डी. करने वाली डॉ. विजयलक्ष्मी जाटव,डॉ. अंजली जलज.(जी.आर.एम.सी.),डॉ. वंदना राहुल,डॉ, ममता कदम,रचना करोडिया सुशीला , धम्ममित्रा ,अर्चना सागर, डॉ. मनीषा कुलश्रेष्ठ,निति पांडे आदि को सम्मानित करने के उपरांत डॉ. बी.आर. अम्बेडकर राष्टीय सम्मान अवार्ड प्रवीण गोतम को सम्मानित किया गया
क्रायक्रम के प्रारभ में अतिथियों द्वारा सावित्री बाई फुले ,के चित्र पर पुष्प अर्पित किए ।उसके बाद जहाँआरा ,युवराज खरे, तमन्ना खान ,आशा गौतम,नवजीत सिंह,रेनु नायर ,चतुर्भुज मखीजा जी लक्ष्मी सिंह ,कल्पना गोयल, नीलम बाथम, द्वारा स्वागत किया गया।कार्यक्रम का संचालन श्रीमती अर्चना सागर,धम्ममित्रा, द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।सरकार से माग की गई कि 3 जनवरी को सावित्री बाई फुले के जन्मदिवस पर महिला शिक्षिका दिवस घोषित करे। इस कार्यक्रम में विभिन्न विद्यालयों, गर्ल्स vvcnnbv कोलेज प्रोफेसर,सामाजिक कार्यकर्ताएं, कालेज की छात्राये, 250 से अधिक लोगो ने भाग लिया।


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