नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:

चौथे चरण में 13 मई को जलगांव और रावेर लोकसभा सीट पर होने वाले मतदान में इंडिया गठबंधन के लिए कमज़ोर मानी जाती रावेर सीट देखते हि देखते फाइट में आ गई है। इस सीट पर टीम इंडिया की ओर से NCP (शरदचंद्र पवार) के प्रत्याशी श्रीराम दयाराम पाटील अपने प्रचार अभियान के बलबूते भाजपा की दो टर्म की सांसद रक्षा खडसे को अच्छी खासी चुनौती पेश करते नज़र आने लगे हैं। हम किसी के पक्ष में बेतुका समर्थन नहीं कर रहे हैं, जमीनी तथ्यों और हकीकत को हाज़िर नाजिर मानकर बदलते माहौल से पाठकों को रूबरू करवाना चाहते हैं। प्रदेश भाजपा की असहमति के चलते एकनाथ खडसे के पार्टी प्रवेश के निर्णय को लेकर उलझी भाजपा के परंपरागत मतदाताओं में भ्रम का माहौल है। एकनाथ खडसे की बेटी रोहिणी खडसे का NCP (SP) में बढ़ता कद और उनकी साफ सुथरी राजनीतिक भूमिका में खडसे परिवार की आगामी विरासत देखने वाले पुराने वोटर को नया वोटर तेज़ी से जुड़ने लगा है। भाजपा नेता गिरीश महाजन द्वारा 2012 में कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए किए गए राजनीतिक आंदोलन की यादें कपास उत्पादक किसान भुला नहीऊ है।

पाकिस्तान, मुसलमान, मंगलसूत्र, मंदिर, धर्म, 370, POK, डंका इस झूठ को रावेर बेल्ट मे कही कोई जगह नही मिल पा रही है। कपास, केला, फसल बीमा, महंगाई, बेरोजगारी, मेगा रिचार्ज प्रोजेक्ट, सिंचाई, दवाई इन मुद्दो पर जनता बोलने लगी है। जातीय समीकरण और उसका वोट प्रतिशत में होने वाला रूपांतरण काफ़ी महत्वपूर्ण है। पार्टी सुप्रीमों शरद पवार जामनेर, चोपड़ा, मुक्ताईनगर में जनसभाएं कर चुके हैं। पवार ने रावेर लोकसभा में आनेवाली सभी छह विधानसभा सीटों का गणित बिठाने की रणनीती पर काम शुरू कर दिया है। रावेर संसदीय सीट पर गुर्जर और लेवा पाटीदार भाजपा का पारंपरिक वोटर माना जाता है। सक्षम नेतृत्व के अभाव के कारण मराठा और मुस्लिम समुदाय एकनाथ खडसे को नेता मानकर बीते चार दशको से उनकी OBC राजनीति का हिस्सा रहा है।
मराठा-मुस्लिम और आदिवासी इन तीनों तबकों ने जमकर मतदान किया और वोट प्रतिशत 65% से अधिक रहा तो रावेर सीट का नतीजा चौंकाने वाला हो सकता है। मतदाताओं के भीतर मतदान के प्रति जो आस्था है वो उस सिस्टम को बदल सकती है जिस की सिस्टम की जड़े ऊपर होती है। ज्ञात हो कि पहले दो चरणों में यह देखा गया है कि दुनिया की सबसे अमीर पार्टी भाजपा के पास माकूल मानव संसाधन होने के बाद भी उसका कार्यकर्ता मतदाता को बूथ तक ले जाने में विफल साबित हुआ है। इसके कारण भाजपा में चिंता की स्थिती है लेकिन रावेर का मसला इसके विपरित संभावनाओं की ओर इशारा करता है यहां वोटर्स को खुद बढ़ चढ़कर लोकतंत्र के महान पर्व में हिस्सा लेना होगा।
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