जिला अस्पताल में रैन बटोहियों की राह देख रहा है बदहाल रैन बसेरा, जिम्मेदार कौन??? | New India Times

फराज़ अंसारी, ब्यूरो चीफ बहराइच (यूपी), NIT:

जिला अस्पताल में रैन बटोहियों की राह देख रहा है बदहाल रैन बसेरा, जिम्मेदार कौन??? | New India Times

जिला अस्पताल बहराइच में वह रैन बसेरा जो कभी रात बिताने वाले तीमारदारों से गुलज़ार रहता था वही रैन बसेरा आज अपनी बदहाल व्यवस्था पर आंसू बहा रहा है। यहां समय के साथ न तो व्यवस्थाएं रही न ही इंतजाम रहे। सरकारी सिस्टम के आगे जंग हार चुके इस रैन बसेरे में अब रात गुजारने वाला कोई नहीं है। रद्दी कबाड़ जंग खाये चिकित्सीय उपकरण रैन बसेरे की पहचान बन चुके हैं।हालांकि वर्तमान में भी जिला अस्पताल में दूर दराज से आये मरीजों के तीमारदारों के ठहरने का उचित प्रबंध नही किया गया हो और स्वास्थ्य महकमा भले ही मरीजों के साथ आये लोगों के ठहराने की पर्याप्त व्यवस्था होने की बात कहता फिरता है लेकिन हकीकत में लोग धक्के खाकर इधर उधर भटकने को मजबूर नजर आते हैं। इसे विभाग की लापरवाही कहें या सिस्टम का खामियाजा, लेकिंन हालात सुधरने के नाम नहीं ले रहे हैं।

जनपद बहराइच का जिला अस्पताल पूरे मण्डल में चिकित्सा सेवा देने में अग्रणी रहा है। इसी से दूर दूर तक इसकी पहचान बनी है, लेकिन आज भी इस अस्पताल की व्यवस्थाओं की बाग डोर ऊपर वाले के हाथ में ही बंधी है।
सरकारी सिस्टम की घोर लापरवाही और बद इंतिजामी के बाद भी अगर इस जनपद की पहचान चिकित्सा सेवा में दूर दूर तक है तो ये करिश्मा ही है।
इस जिला अस्पताल में बहराइच के इलावा श्रावस्ती, सीतापुर, लखीमपुर, बलरामपुर, गोण्डा, पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से भी इलाज कराने के लिए मरीजों का आना जाना लगा रहता है लेकिन ठहरने का उचित प्रबंध न किये जाने से मरीज के तीमारदार मौसम की मार झेलने को मजबूर हैं। चाहे सर्द जाड़े की रात हो या उमस और बेचैनी भरी गर्मी तीमारदारों को सब कुछ सहना पड़ता है। इतना ही नहीं बरसात में तो टपकती छतों और बौछारों से बचना और भी मुहाल हो जाता है। बहराइच से 1996 में सांसद रहे स्वर्गीय रुद्रसेन चौधरी ने मरीजों के तीमारदारों के लिए सांसद क्षेत्र विकास योजना के अंर्तगत सुलभ शौचालय के बगल में रैन बसेरे का निर्माण कराया था जिससे दूरदराज क्षेत्रों से आये मरीजों व तीमारदारों को रात गुजारने के लिए कष्ट न सहना पड़े, लेकिन समय के कालचक्र के साथ यह रैन बसेरा कबाड़ रखने के काम आने लगा है।

जिला अस्पताल के अधिकारियों के अनुसार हर वार्ड में रैन बसेरे बने हैं लेकिन उन रैन बसेरों में व्यवस्था न होने की वजह से केवल नाम मात्र हाथी के दिखाने के दांत की तरह रह गए हैं। अब ये कौन बताये कि क्या रैन बसेरे में रात बिताने वाले मरीज के तीमारदार नहीं रहे या फिर रैन बसेरा रात गुजारने के काबिल नहीं रहा, इसका जवाब देने वाला कोई नहीं है।

इस सम्बंध में जब मुख्यचिकित्सा अधीक्षक डॉ डीके सिंह से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने मीटिंग में होने की बात कहकर फोन बिजी कर दिया।


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