अब्दुल वाहिद काकर, ब्यूरो चीफ धुले/नंदुरबारू (महाराष्ट्र), NIT:
9 दिसंबर 2018 को होने जा रहे धुलिया महानगर पालिका के आम चुनाव वीवीपीएट (voter verify paper trail) के बिना ही संपन्न होंगे। इस बात कि आधिकारीक घोषणा राज्य चुनाव आयोग द्वारा कि गयी है।
धुलिया चुनाव प्रमुख को प्राप्त सरकारी पत्र में कहा गया है कि चुनाव में बैलेट कंट्रौल और यूनीट कंट्रौल मशीने 3 दिसंबर को लौटरी सिस्टम से वितरीत की गयी हैं। इस मामले पर राजस्व विभाग से जुडे एक अधिकारी ने नाम न बताने कि शर्त पर जानकारी देते हुए कहा कि निकाय चुनावों में इस्तेमाल की जाने वाली ईवीएम मुहैय्या कराने का अधिकार राज्य सरकार के अधिन है, इसमें सरकार अपने अधिकार में बैलेट मशीनों को असेंबल कर प्रशासन को उपलबद्ध करवाती है, इसलिए यह जरुरी नही कि ईवीएम को वीवीपीएट लगानी अनिवार्य हो। वहीं ईवीम पर उठते सवालों के बीच जहाँ देश की शीर्ष अदालत द्वारा यह स्पष्ट किया है कि चुनावों की पारदर्शीता और सशक्त लोकतंत्र के लिए सभी ईवीम को वीवीपैट लगवाए जाएं। अब सवाल यह उठता है कि आखिर धुलिया चुनाव में वीवीपैट के इस्तेमाल को रद्द क्यों किया गया है?
क्या किसी भी सरकार के अधिकार शीर्ष अदालत के उस आदेश से भी अधिक प्रभावी हो सकते है जिसमें सशक्त लोकतंत्र को रेखांकित किया गया हो, वैसे भी ईवीएम की संभावित छेडछाडि को लेकर भाजपा के अलावा शिवसेना समेत सभी पार्टियों ने मुखर बयान दिए हैं। इस विषय पर अभी तक किसी भी पार्टी से कोई प्रतिक्रिया नहीं आ सकी है।
शायद नतीजों के बाद यह पार्टीया अपनी भडास ईवीएम पर निकालने कि योजना बना रही हों और प्रस्थापित इन्हीं नतीजों को मराठा आरक्षण के उपहार स्वरूप पेश करने कि फीराक में होंगे। बहरहाल वीवीपीएट के बगैर होने जा रहे इन चुनावों से समाज के बुद्धिजीवियों समेत जमहूरियत के हितैशियों में कडी आलोचनात्मक प्रतिक्रियाए व्यक्त कि जाने लगी है। इस बात का सीधा असर कहीं वोट परसेंट पर ना हो जाए ऐसी आशंका को भी बल मिलने लगा है।
क्या ईवीएम के साथ छेड़छाड़ हो सकती है?
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में करारी हार झेल चुकी बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने इसके लिए इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को ज़िम्मेदार ठहराया है और इसके ज़रिए धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। मायावती ने प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को चुनौती दी कि यदि वो ‘ईमानदार’ हैं तो चुनाव आयोग से तुरंत वोटिंग की गिनती रोकने के लिए कहें और पारंपरिक मतपत्रों के ज़रिए दोबारा चुनाव कराने की घोषणा करने के लिए कहें।
इससे पहले 2009 में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी ईवीएम को लेकर संदेह जताया था और परम्परागत मतपत्रों की वापसी की मांग की थी
सवाल ये है कि क्या ईवीएम से छेड़छाड़ की जा सकती है?
मई 2010 में अमरीका के मिशिगन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि उनके पास भारत की ईवीएम को हैक करने की तकनीक है.
शोधकर्ताओं का दावा था कि ऐसी एक मशीन से होम मेड उपकरण को जोड़ने के बाद पाया गया कि मोबाइल से टेक्स्ट मैसेज के जरिए परिणामों में बदलाव किया जा सकता है.
हालांकि पूर्व चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति की अलग राय है.
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