राकेश यादव, देवरी/सागर (मप्र), NIT:
भारत के अमूमन हर गांव, कस्बे और शहर में रंगों का त्यौहार होली उत्साह उमंग के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के सागर जिले का एक ऐसा गांव है, जहां होली का नाम जुवां पर आते ही लोग सहम जाते हैं। जंगलों के बीच बसा आदिवासी गांव हथखोए है। जहां सदियों से होलिका दहन नहीं करने की परंपरा आज भी चली आ रही है।
इस गांव में होलिका दहन को लेकर न तो कोई उत्साह दिखता है और न ही किसी तरह की उमंग नजर आती है। देवरी विकासखंड के हथखोह गांव में होलिका दहन की रात्रि में चहल पहल नहीं होती बल्कि सन्नाटा पसरा रहता है। इस गांव में होली नहीं जलाने के पीछे एक किवदंती है। हमारे संवाददाता राकेश यादव के द्वारा जब गांव में जाकर इस बात की जानकारी ली गई तो वहां के ग्रामीणों ने कहा कि दशकों पहले गांव में होलिका दहन के दौरान कई झोपड़ियों में आग लग गई थी। तब गांव के लोगों ने झारखंडन देवी की आराधना की और आग बुझ गई। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह आग झारखंडन देवी की कृपा से बुझी थी। लिहाजा तभी से हथखोह गांव में होलिका का दहन नहीं किया जाता। यही कारण है कि कई पीढ़ियों से हथखोह गांव में होलिका दहन नहीं होता है।
गांव के एक बुजुर्ग गोपाल आदिवासी 75 साल के उनका कहना है कि उनके सफेद बाल पड़ गए हैं, मगर उन्होंने गांव में कभी होलिका दहन होते नहीं देखा। उनका कहना है कि यहां के लोगों को इस बात का डर सताता है कि होली जलाने से झारखंडन देवी कहीं नाराज न हो जाएं। उनका कहना है कि इस गांव में होलिका दहन भले नहीं ही होता है, लेकिन हम लोग रंग गुलाल लगाकर होली का त्यौहार मनाते हैं।
झारखंडन माता मंदिर के पुजारी छोटे भाई के अनुसार होलिका दहन से मां झारखंडन नाराज हो जाती हैं इसलिए यहां कई सालों से होली का दहन की परंपरा बंद है।
हथखोह गांव के लोग अपने बुजुर्गों के बताये संस्मरण सुनते हुए कहते हैं कि एक बार झारखंडन देवी ने साक्षात दर्शन दिए थे और लोगों से होली न जलाने को कहा था, तभी से यह परंपरा चली आ रही है। दशकों पहले यहां होली जलाई गई थी, तो कई मकान जल गए थे और लोगों ने जब झारखंडन देवी की आराधना की, तब आग बुझी थी। ग्राम हथखोए के पूर्व सरपंच वीरभान सिंह आदिवासी ने बताया कि हमाय गांव में कभी भी होली की लकड़ी नहीं जलती अच्छी है उनके पिताजी के समय में भी यहां होली जलती नहीं देखी। कई सालों से यह परंपरा चली आ रही है यहां के लोग रंग गुलाल की होली खेलते हैं। उन्होंने बताया कि झारखंड में माता के दरबार सच्चा दरबार है और मैया की कृपा के कारण पूरा गांव सुरक्षित है। गांव को गांव के लोग झारखंड में माता को अपनी कुलदेवी मानते हैं। 65 वर्षीय राजरानी आदिवासी ने बताया पूरे गांव में कभी होली नहीं जलाई जाती कई सालों से यहां यह परंपरा है और चली आ रही है। इस गांव को कभी बांधा भी नहीं जाता है। दोज और दीपावली की अमावस्या को इस गांव को बांधा नहीं जाता है। गांव से बाहर प्राकृतिक छटाओं के बीच जंगल में मां झारखंड का प्राचीन मंदिर स्थित है।
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