अबरार अहमद खान/मुकीज खान, भोपाल (मप्र), NIT:
भारत में शिक्षा, अल्पसंख्यक एवं सामाजिक कल्याण को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया मध्य प्रदेश (एस आई ओ) द्वारा भोपाल के इंडियन कैफे हाउस में प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया। इस मौके पर संगठन के राष्ट्रीय सचिव एडवोकेट अनीस रहमान एवं प्रदेश अध्यक्ष डॉ. फरहान आदिल ने मीडिया को संबोधित करते हुऐ छात्र घोषणा-पत्र का विवरण साझा किया। इस घोषणा-पत्र में छात्र समुदाय की महत्वपूर्ण मांगें शामिल हैं जिन्हें एसआईओ 2024 के आम चुनावों का मुख्य मुद्दा बनाना चाहती है। यह घोषणा-पत्र निम्नलिखित बिंदुओं को संबोधित करता है।
सभी के लिए अवसर सुनिश्चित करने के लिए एक निष्पक्ष, न्यायसंगत और उचित आरक्षण प्रणाली की व्यवस्था की जाए। सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े ज़िलों पर विशेष ध्यान दिया जाए और संतुलित विकास के लिए हाशिए पर रह गये क्षेत्रों के उत्थान पर ध्यान केंद्रित किया जाए। रोहित अधिनियम को लागू किया जाए और छात्रों के लिए शैक्षणिक संस्थानों में न्याय और सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
मौलाना आज़ाद नेशनल फ़ेलोशिप को बहाल किया जाए और अल्पसंख्यकों के लिए छात्रवृत्ति बढ़ाई जाए। शिक्षा तक समान पहुंच के लिए अल्पसंख्यक छात्रों की आर्थिक रूप से सहायता की जाए।
भेदभाव और पूर्वाग्रह से मुक्त समाज के लिए भेदभाव विरोधी क़ानून बनाया जाए। लोगों की गोपनीयता और डेटा की सुरक्षा हेतु कठोर व्यक्तिगत डेटा संरक्षण क़ानून और गोपनीयता चार्टर बनाया जाए। पर्यावरणीय योजनाओं और सस्टेनेबल डेवलपमेंट संबंधित गतिविधियों के लिए 1000 करोड़ की निधि दी जाए। युवाओं के समग्र विकास को प्राथमिकता देते हुए पूरे भारत में युवाओं के लिए स्वास्थ्य और मानसिक कल्याण केंद्र खोले जाएं। सभी के लिए सुलभ शिक्षा की प्रतिबद्धता निभाते हुए प्राथमिक से विश्वविद्यालय स्तर तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित की जाए। देश के युवाओं के लिए नौकरी की सुरक्षा और अवसरों का मार्ग प्रशस्त करने हेतु रोज़गार गारंटी अधिनियम लाया जाए।
प्रेस वार्ता में एसआईओ नेतृत्व ने भारत के शैक्षणिक परिदृश्य में चिंताजनक रुझानों के बारे में बात की। 74.04% की समग्र साक्षरता दर के बावजूद, जो विश्व औसत 86.3% से नीचे है, कई राज्य मुश्किल से ही राष्ट्रीय स्तर से आगे निकल पा रहे हैं।
एसआईओ के प्रदेेश अध्यक्ष फरहान आदिल ने केंद्र द्वारा धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए प्रमुख शैक्षिक योजनाओं को बंद करने, दूसरों के दायरे को कम करने और अल्पसंख्यक मंत्रालय के तहत कार्यक्रमों पर ख़र्च को कम करने और शिक्षा बजट हिस्सेदारी को सकल घरेलू उत्पाद के 2.9% तक कम करने पर चिंता व्यक्त की, जो कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 द्वारा निर्धारित 6% लक्ष्य से काफ़ी कम है।
उन्होंने भारत के सकल घरेलू उत्पाद के 2.1% आवंटन और जापान, कनाडा और फ़्रांस जैसे देशों के बीच स्पष्ट अंतर की ओर इशारा किया, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए लगभग 10% आवंटित करते हैं। बेरोज़गारी अब भारत की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। संसद में पूछे गए एक प्रश्न के लिखित जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा है कि 1 मार्च, 2023 तक सभी मंत्रालयों में लगभग 10 लाख पद खाली थे। हालाँकि, सरकार विश्वविद्यालयों और मंत्रालयों में रिक्त पदों को भरने के प्रति गंभीर नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि परीक्षाओं और चयन प्रक्रियाओं में व्यापक भ्रष्टाचार और अक्षमता है।
मुस्लिम छात्रों के बीच ड्रॉपआउट दर की चिंताजनक स्थिति को संबोधित करते हुए, एडवोकेट अनीस रहमान ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इंस्टीट्यूट ऑफ़ ऑब्जेक्टिव स्टडीज़ ने 23.1% ड्रॉपआउट दर की सूचना दी है, जो राष्ट्रीय औसत 18.96% से अधिक है। शैक्षणिक वर्ष 2020-21 में मुस्लिम छात्रों का नामांकन 2019-20 में 5.5% से घटकर 4.6% हो गया। फरहान आदिल ने शैक्षणिक स्वतंत्रता के चिंताजनक क्षरण पर भी प्रकाश डाला, जैसा कि वी-डेम इंस्टीट्यूट द्वारा तैयार शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक में 179 देशों के बीच भारत की निचली 30% स्थिति में परिलक्षित होता है।
उन्होंने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए मानसिक स्वास्थ्य संकट पर भी गहरी चिंता व्यक्त की, जिसमें 15 से 30 वर्ष की आयु के लोगों में मौत का प्रमुख कारण आत्महत्या बताया गया है, जिसमें औसतन हर 42 मिनट में 34 छात्र अपनी जान ले लेते हैं। एडवोकेट अनीस रहमान ने एमनेस्टी इंटरनेशनल और डीओटीओ डेटाबेस का हवाला देते हुए घृणा अपराधों में तेज़ी से बढ़ोतरी की ओर इशारा किया और जीवन की रक्षा और धार्मिक भेदभाव से निपटने के लिए तत्काल ध्यान देने हेतु आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि छात्र और युवा इस देश के सबसे बड़ा वोटर समूह हैं और राजनीतिक दलों को वोट मांगते समय विशेष रूप से उनकी ज़रूरतों और मांगों को पूरा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह घोषणा-पत्र राजनीतिक दलों से देश के भविष्य में निवेश करने के लिए कह रहा है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि छात्र और युवा खोखले वादों से प्रभावित होने वाले या विभाजनकारी राजनीतिक एजेंडे से विचलित होने वाले नहीं हैं। इसके बजाय वे दृढ़ता से ठोस चुनावी घोषणा-पत्र की मांग करते हैं जो सुलभ और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, रोज़गार, शांति और सुरक्षित वातावरण की गारंटी देता हो।
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