राजस्थान विधानसभा चुनाव-2018: राहुल गांधी के फार्मूले से कट सकता अनेक उम्रदराज नेताओं का टिकट | New India Times

अशफाक कायमखानी, जयपुर, NIT; ​राजस्थान विधानसभा चुनाव-2018: राहुल गांधी के फार्मूले से कट सकता अनेक उम्रदराज नेताओं का टिकट | New India Timesतीन साल पहले हुये लोकसभा चुनावों सहित अनेक प्रदेशों के हुये विधान सभा चुनावों में कांग्रेस की बनी दुर्गति ने कांग्रेस को अंदर तक हिलाकर रख दिया है।यह सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर क्या कारण है कि देश की सबसे बडी व मजबूत पार्टी को आज इतने बुरे दिन तक देखने पड़ रहे हैं? साथ ही यह आंकलन भी लगाया जा रहा है कि भारत में इंदिरा गांधी के समय इमरजेंसी व नसबंदी के बिगड़े राजनितीक माहौल के बाद कांग्रेस विरोधी लहर पूरे भारत में व्याप्त होने के बावजूद भी कांग्रेस पार्टी की वो दुर्गति उस समय नहीं बनी थी जो अब बन रही है। इसके अनेक कारण बताये जा रहे हैं। जिनमें प्रमुख कारण जो निकलकर सामने आये हैं उनमें युवक कांग्रेस व NSUI के नये चुनाव सिस्टम से दबंग व पैसों वालों का चुनाव जीतकर आना, जिनमें से अधिकांश की परवरिश कांग्रेस विचारधारा में कभी हुई ही नहीं है। इससे युवा वर्करस की नई खेप समय समय पर पार्टी की जरुरत के हिसाब से आना ही बंद हो गई। दूसरी तरफ देखा यह भी गया है कि जनता में कांग्रेस पार्टी स्तर का विरोध उतना नहीं है जितना कांग्रेस के नाम पर बन रहे उन जागीरदार प्रथा को याद दिलाने वाले जनप्रतिनिधियों का विरोध मौजूद है।​राजस्थान विधानसभा चुनाव-2018: राहुल गांधी के फार्मूले से कट सकता अनेक उम्रदराज नेताओं का टिकट | New India Timesहालांकि इन सबसे उभरने के लिये राहुल गाधी ने युवाओं को मौका देकर आगे लाकर चुनाव लड़ाना और बुजुर्गों के मार्दर्शन में कांग्रेस को फिर से पुरानी मजबूत हालत में लाने के फार्मूले पर अगर ईमानदारी से अमल हुआ तो सीकर में विधायक गोविंद सिंह डोटासरा व विधायक नंद किशोर महरिया को छोड़कर कांग्रेस के बाकी सभी मौजूदा व पुर्व विधायकों का उम्मीदवार बनना काफी मुश्किल माना जा रहा है। 50-55 साल के मध्य के उम्र वाले महरीया व डोटासरा के अलावा सभी 65 की उम्र पार कर चुके नेताओं का कांग्रेस में उम्मीदवार पहले की तरह अनुमान होने के बावजूद राहुल गांधी के 65 पार कर चुके नेताओं को उम्मीदवार नहीं बनाने की स्थिती में वंचित नेता पहले तो अपने पुत्र या पुत्रवधु के टिकट के लिये जुगाड करेंगे और किसी हालत में जुगाड़ नहीं होने की स्थिती में इनमें से कुछ बागी की हैसियत से चुनाव भी लड़ सकते हैं, जिनमें महादेव सिंह व रमेश खण्डेलवाल कांगेस के बागी के तौर पर चुनाव लड़ने का अनुभव भी रखते हैं। जबकि चौधरी नारायण सिंह, परशुराम मोरदिय, व दिपेन्द्र सिंह शेखावत के पुत्रों ने तो सियासत में काफी पहले से अपने झंडे गाढ रखे हैं। तो दूसरी तरफ राजू पारिक का पुत्र अब सियासत में कदमचाल करना शुरु किया बताते हैं, वही रमेश खण्डेवाल का पुत्र युवा कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ चुका है। वहीं महादेव सिंह का पुत्र पिछले विधान सभा चुनावों में टिकट का जुगाड़ बैठाकर उम्मीवार बन चुका है।

कांग्रेस में परिवारवाद व व्यक्तिवाद का जोर ऊपर से निचे तक हमेशा से रहा है। जिस किसी को एक दफा चुनाव जितने का मौका मिल गया तो मानो वह और उसका परीवार ही उनकी हर मुमकीन कोशिश के चलते हर हालत में उसके पद के अलावा अन्य पदों पर काबिज ही रहेगा। कभी कभार कोई निर्दलीय चुनाव लड़कर या तकदीर से टिकट पाकर विधायक बन भी जाये तो वो अपवाद होते हैं।

कुल मिलाकर यह है कि 65 वर्ष की उम्र पार करने वालों को टिकट से दूर रख कर युवाओं को मौका देने का फार्मूला कांग्रेस में अगर काम कर गया तो अगले साल होने वाले चुनावों में कांग्रेस की नई तस्वीर हमारे सामने होगी। दूसरी तरफ बुजूर्ग नेताओं को विधान परिषद बनाकर उसमें खपाया जा सकता है।


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