रहीम शेरानी, ब्यूरो चीफ, झाबुआ (मप्र), NIT:
झाबुआ जिले के मेघनगर, थांदला, झाबुआ, रानापुर खुद्दार मेरे शहर में फाके से मर गया, राशन तो मिल रहा था पर फोटो से डर गये, खाने की सामग्री और खाना थमा रहे थे
सेल्फी के साथ साथ मरना था जिसको भूख से, वो गैरत से मर गया……..
कुछ इसी तरह का माहौल पूरे देश मे चल रहा है।
कई समाजसेवी संगठन सेवा कार्य कर रहे है तो उसे अपने संगठन को प्रेरित करने व स्वयं के क्रियाशील होने का प्रमाण देने के लिये फोटो वीडियो व सोशल मीडिया सहित प्रेस मीडिया का सहारा लेना पड़ता है।
अनेक समाजसेवी सेवा का चोला ओढ़कर अपने काले कारनामे छिपाने के प्रयास में रहते हैं तो कई समाजसेवी ऐसे भी हैं जो दान सेवा की भनक याचक को भी नहीं लगने देते।
शासन प्रशासन ने भी भारत के नागरिकों के लिये मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाए हैं। जनधन खातों में आर्थिक सहायता व राशन उपलब्धता करना सरहानीय कदम है। सभी का मकसद इस महामारी की जंग को सामुहिक एकता से जीतने के लिये अपने आसपास के जरूरतमन्दों की सेवा तो है ही लेकिन कुछ को अपने नाम का भी रहता ही है तो इसमें गलत कुछ नही क्योंकि हजार नजर हजार अफसानें ….।
वैश्विक महामारी कोविड – 19 आज व्यापक खतरा बन कर दहलीज के बाहर इंतज़ार कर रही है कि जैसे ही मानव असावधानी से बाहर निकले व वह उसे धर दबोचे।
यही कारण है कि देश के प्रधानमंत्री माननिय नरेंद्र मोदी जी ने पूरा देश लॉक डाउन कर दिया है।
यही नही राज्य सरकारें उसके पालन में लगी हुई भी है।
फिर भी कई लोग कोरोना की चपेट में आ ही जाते है।
वे समझते है कि शासन प्रशासन द्वारा रोज़मर्रा की आवश्यकता पूर्ति के लिये जो छूट दे रहे है उसमें कोरोना उन पर अटेक नही करेगा लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नही है वह इसी समय मे अपना रंग दिखा रहा है तभी गाँव की तुलना में यह शहरों में ही देखा गया है।
बात की जाय लॉक डाउन कब तक तो इसका जवाब किसी के पास नही है क्योंकि जब तक इस धरती पर कोरोना का एक भी वायरस जिंदा है तब तक इसका खतरा भी बना हुआ ही है और यह तब तक रहेगा जब तक कि इसकी वैक्सीन (दवाई) नही बन जाती।
मतलब साफ है 3 मई के बाद भी अब हमें अनिश्चितकाल के लिये सोशल डिस्टेंश का पालन करते हुए दूर से ही दुआ-सलाम खैरियत पूछना होगी
क्योंकि इस महामारी की संक्रमण क्षमता अन्य महामारी से कही अधिक है।
ऐसे में देश की आधी से ज्यादा आबादी सामान्य व निम्न वर्ग की है जिससे उन पर आर्थिक संकट भी गहराता जा रहा है।
आज इस वर्ग की मजबूरी का फायदा सैकड़ो व्यापारी भी उठा रहे है।
ग्रामीण अंचल में जरा से पैसों के लिये किसान अपनी फसल कौड़ियों के दाम धनाढ्य को बेच रहा है, व्यसनों के आदि व्यसन पूर्ति के लिये व्यसन की चार गुना तक कीमत चुका रहे है, खाद्य सामग्री हो या अन्य वस्तु कालाबाजारी चरम पर है लेकिन प्रशासन केवल लॉक डाउन के पालन में लगा हुआ है
जबकि सारा खेल इसी की आड़ में हो रहा है।
कोरोना महा बीमारी है इससे इनकार नही किया जा सकता लेकिन जल्द इसके विकल्प नही तलाशे गए तो व्यक्ति कोरोना से नही अपितु इसके भय व भूख से अवश्य मर जायेगा।
समस्या है तो समाधान भी है बस उसे तलाशने के साथ सही प्रकार से क्रियान्वित करने की आवश्यकता है।
आज कोरोना इफेक्ट से क्राइम का ग्राफ कम जरूर हुआ है, आने वाले समय में जब व्यक्ति आर्थिक तंगहाली से परेशान हो तब भी वह क्राइम शरणम गच्छामि ना हो इसके लिये भी आज से ही प्रयास जरूरी है जय हिंद जय भारत !
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