चार महीनों से वेतन की प्रतिक्षा में हैं जिला परिषद के अधीन डाक्टर्स | New India Times

नरेंद्र इंगले, ब्यूरो चीफ, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:चार महीनों से वेतन की प्रतिक्षा में हैं जिला परिषद के अधीन डाक्टर्स | New India Times

महाराष्ट्र की फ़डणवीस सरकार ने विधानसभा चुनावों के करीब आते ही नगर निकायों के कर्मियों को सातवां वेतन बहाल कर दिया। इस सौगात से गदगद सभी निकाय कर्मियों ने सडकों पर उतरकर सरकार के इस सौगात के बदले अभिनंदन प्रस्तावों की झड़ी ही लगा दी, मानो कि कुछ अदभुत सा हो गया हो। वैसे पे कमीशन्स का प्रावधान संवैधानिक है जिसे लागू करने में सरकार ने काफि देर कर दी। सरकार की इस लेटलतीफी को लेकर किसी ने कोई प्रासंगिक सवाल नहीं उठाया। बहरहाल जलगांव जिला परीषद के अधीन स्वास्थ सेवा में कर्तव्यरत डाक्टरों को बीते चार महीने से अब तक अपने हक का वेतन ही नहीं मिल सका है। इन डाक्टरों ने कई बार जिला परिषद प्रशासन से लेकर जिलाधिकारी तक अर्जियां लगाईं निवेदन सौंपे पर फ़ाइलिंग संस्कृति में सब कुछ बेअसर रहा। जिले में जिला परिषद के अधिन प्रत्येक तहसील में औसत के हिसाब से करीब 100 से अधिक प्राथमिक स्वास्थ केंद्र हैं और कुछ ग्रामीण अस्पताल, इन में कार्यरत डाक्टरों को बीते चार महीनों से अपना नियमित वेतन नहीं मिला है। जिले के अभिभावक मंत्री गिरीश महाजन को सार्वजनिक क्षेत्र में स्वास्थ सेवक के तमगे से नवाजा जा चुका है और जिला परिषद पर भाजपा का कब्जा है ऐसे में जनता के स्वास्थ सेवक कहे जाने वाले डाक्टरों को इतनी लंबी अवधि तक अपने वेतन से महरुम रखा जाना यह बात कुछ जंचती नहीं है। इन डाक्टरों ने सातवें वेतन की मांग भी कई बार की उसे लेकर सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। रही बात पे कमीशन्स भुगतान की तो राज्य सरकार ने अपने अंतरिम बजट में 4 हजार करोड़ के अनूशेष का प्रावधान कर रखा है। आंकड़ों के मुताबिक CAG ने कई विभाग के परियोजनाओं का फंड काट दिया है। राज्य सरकार पर करीब 4 लाख करोड रुपयों के कर्ज का बोझ है, इससे यह साफ़ पता चलता है कि सूबे के वित्तीय हालात कैसे हैं? ऐसे में सातवें पे कमीशन का पैसा कहां से आएगा इसका कोई ठोस प्रावधान नहीं है। इन सब सवालों के बीच जिला परीषद के डाक्टरों को पे कमीशन को छोड़ दें तो उनका नियमित वेतन तक नहीं मिल पा रहा है। सैकडों कर्मी ऐसे हैं जो दुर्गम इलाकों में कर्तव्यरत हैं। कर्मियों ने वेतन की आस से बिना टूटे अपने कर्तव्य को प्राथमिकता देना पसंद किया है। इस समस्या को लेकर बीते महीनों में मीडिया में पीड़ितों का पक्ष रखने वाली काफी खबरें आयीं पर हुआ कुछ नहीं। शिक्षा इकाई का हाल भी कुछ इसी तरह का रहा है। अभी तो पीड़ित इसी उम्मीद पर टिकें हैं कि विधानसभा चुनावों के बहाने ही सही हुजूर सरकार उनपर मेहरबान हो जाएगी और उन्हें अपना चार महिनों के लंबित वेतन की अदायगी की जाएगी।


Discover more from New India Times

Subscribe to get the latest posts to your email.

By nit

This website uses cookies. By continuing to use this site, you accept our use of cookies. 

Discover more from New India Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading