पंचायतराज से न्याय के लिए दिव्यांगों ने लगाई गुहार | New India Times

नरेंद्र इंगले, ब्यूरो चीफ, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:पंचायतराज से न्याय के लिए दिव्यांगों ने लगाई गुहार | New India Times

अक्तूबर 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा के आम चुनाव होने जा रहे हैं। नयी राजनितीक परंपरा के अनूसार इन चुनावों के समयसारणी को लेकर सत्तापक्ष भाजपा के मंत्रियों ने अपनी ओर से तारीख की घोषणा तक कर दी है। वैसे मोदी सरकार 1 में ही इस तरह कि परंपरा का आरंभ किया जा चुका था जिससे चुनाव आयोग को भी कभी कोई आपत्ति नहीं हुई। महाराष्ट्र विधानसभा के आगामी चुनाव के लिए जहां सत्तापक्ष में सहयोगी दल शिवसेना ने जनआशिर्वाद यात्रा के माध्यम से जनता का मन टटोलने की कोशीश शुरु की है वहीं फसल बीमा को लेकर भी पार्टी ने अपनी ही सरकार के खिलाफ़ सड़क पर मोर्चा संभाल रखा है। विपक्ष कि बात करें तो कांग्रेस लोकसभा में हुई करारी हार के बाद अब तक संभल नहीं पा रही है। राष्ट्रवादी कांग्रेस जनसमस्याओं को लेकर मजबुती के साथ लड़ाई लड़ रही है। बीते पांच सालों में सैकड़ों आंदोलनों ने मंत्रालय तक दस्तक दी जिनमें मराठा – धनगर आरक्षण से जुड़े आंदोलन, किसान संगठनों के मोर्चे अहम रहे। इन आंदोलनों को सरकार की ओर से फेस करने वाले संकटमोचक प्रतिमाधारी मंत्रियों ने नई खोज कर अपने विवेक से कहा कि लोगों को न्याय मिल रहा है इसलिए आंदोलन हो रहे हैं खैर कितने आंदोलनों को न्याय मिल पाया इसका आधिकारिक आंकड़ा सरकार के पास नहीं है और ना ही मीडिया के पास। इसे लेकर खोजकर्ताओं के लिए कई सवाल हैं। महाराष्ट्र के हर जिले और तहसिल में आज भी विभिन्न समस्याओं को लेकर हजारों आंदोलन हो रहे हैं, कहीं धरने दिए जा रहे हैं तो कहीं अनशन हो रहे हैं। मंत्री गिरीश महाजन के निर्वाचन क्षेत्र में भी इसी तरह से कुछेक आंदोलन होते रहे हैं। इसी में एक आंदोलन दिव्यांगों ने किया है जो सरकारी लाभ से जुडा है। 25 जुन 2018 के शासन निर्णय के अनूसार पंचायत राज के स्थानीय संस्थाओं को अपने टैक्स संचय से दिव्यांगों को उनके चरितार्थ के लिए 5 फीसदी रकम देनी है। जामनेर नगर परीषद ने इस निर्णय को अमल में लाया तब ग्रामीण इलाकों के दिव्यांग तहसिलदार के सामने लामबंद होकर शासन निर्णय के अनूसार अपने लिए इसी तरह के न्याय की गुहार लगाते नजर आए। चुनाव के मुहाने सत्तापक्ष द्वारा नज थियरी ( Nudge theory ) का बेहतर इस्तेमाल बराबर से किया जाता रहा है! कहीं किसी वंचित समुदाय को अचानक सामूहिक तरीके से जाती प्रमाणपत्र बांटे जाते हैं बाद में इसे लेकर खूब बैनरबाजी की जाती है मानो कि उस समुदाय की सभी परेशानियां हमेशा के लिए दूर हो गयी हो। कहीं बारिश के मौसम में तहसिल के गांवों को अंदरुनी सडको से जोडने का ढोल पीटा जाता है। दिव्यांगों की बात की जाए तो नगर निगम का टैक्स संचयन इतना मुफीद है कि वह अपनी कमायी से दिव्यांगों को उनका हक देने मे सक्षम है भले शासन निर्णय को अमल मे लाने को लेकर देरी हो गयी हो ! लेकिन जब पंचायतराज के अधीन ग्राम पंचायतो कि बात करे तो सुखाप्रभावीत जामनेर तहसिल कि लगभग सभी ग्रामपंचायते बीते कयी बरसो मे पूर्ण क्षमता से अपना टैक्स भी वसुल नहि सकि है कर्मीयो के वेतन भुगतान तक के लिए इन पंचायतो को जिला परीषद के कयी चक्कर काटने पडते है ! ग्रामपंचायतो द्वारा चलायी गयी करोडो रूपयो कि लागत वाली पेयजल योजनाए भ्रष्टाचार कि भेंट चढ गयी है ! 200 मे से करीब 120 गांवो मे बीते कयी बरसो से पिने के पानी कि भारी किल्लत रहती आयी है , उद्योगो के अभाव से बेरोजगारी का ग्राफ़ बढता हि जा रहा है , सुखे के कारण किसान खेती छोड रहे है , कर्ज के चलते पिडीत किसानो के आत्महत्या के मामले भी दर्ज किए जा चुके है इन जैसी सैकडो ऐसी समस्याए है जिनपर नज थियरी के तहत काम नहि किया गया अगर किया जाता तो शायद स्थिती कुछ और होती ! चुनावो के मुहाने जनता के बीच लोकप्रियता के लिए सत्तापक्ष द्वारा चलायी जा रहि पारंपारीक थियरी पर अब लोगो मे हि व्यंग कसे जाने लगे है।


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