संदीप शुक्ला, ब्यूरो चीफ, ग्वालियर (मप्र), NIT:
ठाठीपुर मुरार ग्वालियर स्थित कबीर पार्क पर समाजसेवी संस्था गोपाल किरण समाज सेवी संस्था के तत्वाधान में बाल पंचायत का आयोजन किया।
सभा में मुख्य अतिथि व गोपाल किरण समाज सेवी संस्था (GKSSS) के अध्यक्ष श्रीप्रकाश सिंह निमराजे शामिल हुए तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता जहाँआरा ने की। इस मौके पर बच्चों को संबोधित करते हुए श्रीप्रकाश सिंह निमराजे ने बच्चों के अधिकार पर विस्तार से बात रखते हुए चिंता व्यक्त की।
21 बच्चे हमेशा के लिए सो गए फिर भी हम नहीं जागेंगे, हैं ना..
“कुछ विषय ऐसे होते हैं जिन पर लिखना खुद की आत्मा पर कुफ्र तोड़ने जैसा है। सूरत की बिल्डिंग में आग…21 बच्चों की मौत…आग और घुटन से घबराए बच्चों को इससे भयावह वीडियो आज तक नहीं देखा, इससे ज्यादा छलनी मन और आत्मा आज तक नहीं हुई फिर भी कहना पड़ रहा है। हमने किताबी ज्ञान में ठूंस दिया बच्चों को नहीं सिखा पाए लाइफ स्किल। नहीं सिखा पाए डर पर काबू रख शांत मन से काम करना।”
मम्मा डर लग रहा है, एग्जाम के लिए सब याद किया था लेकिन एग्जाम हॉल में जाकर भूल गया, कुछ याद ही नहीं आ रहा था। पांव नम थे…हाथों में पसीना था…आप दो मिनिट उसे दुलारते हैं, बहलाने की नाकाम कोशिश करते हैं फिर पढ़ लो- पढ़ लो- पढ़ लो की रट लगाते हैं। सुबह 8 घंटे स्कूल में पढ़कर आए बच्चे को फिर से 4-5 घंटे की कोचिंग करने भेज देते हैं। जिंदगी की दौड़ का घोड़ा बनाने के लिए, असलियत में हम उन्हें चूहादौड़ का एक चूहा बना रहे हैं। नहीं सिखा पा रहे जीने का तरीका- खुश रहने का मंत्र…साथ ही नहीं सिखा पा रहे लाइफ स्किल। विपरीत परिस्थितियों में धैर्य और शांतचित्त होकर जीवन जीने की कला नहीं सिखा पा रहे हैं ना और इसके लिए सिर्फ और सिर्फ हम पालक और हमारा समाज जिम्मेदार है। आयुष को पांच साल की उम्र में मैं न्यूजीलैंड ले गई थी..9 साल की उम्र में वापस इंडिया ले आई थी. वहां उसे नर्सरी क्लास से फस्टटेड से लेकर आग लगने पर कैसे खुद का बचाव करें .फीलिंग सेफ फीलिंग स्पेशल ( चाइल्ड एब्यूसमेंट), पानी में डूब रहे हो तो कैसे खुद को ज्यादा से ज्यादा देर तक जीवित और डूबने से बचाया जा सके जैसे विषय हर साल पढ़ाए जाते थे। फायरफाइटिंग से जुड़े कर्मचारी और अधिकारी हर माह स्कूल आते थे। बच्चों को सिखाया जाता था विपरीत परिस्थितियों में डर पर काबू रखते हुए कैसे एक्ट किया जाए। ह्यूमन चेन बनाकर कैसे एक-दूसरे की मदद की जाए,.हेल्पिंग हेंड से लेकर खुद पर काबू रखना ताकि मदद पहुंचने तक आप खुद को बचाए रखें। हम नहीं सिखा पा रहे यह सब. नहीं दे पा रहे बच्चों को लाइफ स्किल का गिफ्ट विपरीत परिस्थितियों से. बचना….कल की ही घटना देखिए .हमारे बच्चे नहीं जानते थे कि भीषण आग लगने पर वे कैसे अपनी और अपने दोस्तों की जान बचाएं,.नहीं सीखा हमारे बच्चों ने थ्री-G का रूल ( गेट डाउन, गेट क्राउल, गेट आऊट ) जो 3 साल की उम्र से न्यूजीलैंड में बच्चों को सिखाया जाता है, आग लगे तो सबसे पहले झुक जाएं.,आग हमेशा ऊपर की ओर फैलती है। गेट क्राउल..घुटनों के बल चले…गेट आऊट…वो विंडों या दरवाजा दिमाग में खोजे जिससे बाहर जा सकते हैं, उसी तरफ आगे बढ़े, जैसा कुछ बच्चों ने किया, खिड़की देख कर कूद लगा दी, भले ही वे अभी हास्पिटल में हो लेकिन जिंदा जलने से बच गए। लेकिन यहां भी वे नहीं समझ पा रहे थे कि वे जो जींस पहने हैं वह दुनिया के सबसे मजबूत कपड़ों में गिनी जाती है..कुछ जींस को आपस में जोड़कर रस्सी बनाई जा सकती है। नहीं सिखा पाए हम उन्हें कि उनके हाथ में स्कूटर-बाइक की जो चाबी है उसके रिंग की मदद से वे दो जींस को एक रस्सी में बदल सकते हैं. काफी सारी नॉट्स हैं जिन्हें बांधकर पर्वतारोही हिमालय पार कर जाते हैं फिर चोटी से उतरते भी हैं. वही कुछ नाट्स तो हमें स्कूलों में घरों में अपने बच्चों को सिखानी चाहिए। सूरत हादसे में बच्चे घबराकर कूद रहे थे शायद थोड़े शांत मन से कूदते तो इंज्युरी कम होती। एक-एक कर वे बारी-बारी जंप कर सकते थे। उससे नीचे की भीड़ को भी बच्चों को कैच करने में आसानी होती। मल्टीपल इंज्युरी कम होती, हमारे अपने बच्चों को। आज आपको मेरी बातों से लगेगा ज्ञान बांट रही हूं…लेकिन कल के हादसे के वीडियो को बार-बार देखेंगे तो समझ में आएगा एक शांतचित्त व्यक्ति ने बच्चों को बचाने की कोशिश की। वो दो बच्चों को बचा पाया लेकिन घबराई हुई लड़की खुद को संयत ना रख पाई और अच्छे से याद है, पापाजी कहते थे मोना कभी आग में फंस जाओ तो सबसे पहले अपने ऊपर के कपड़े उतार कर फेंक देना, मत सोचना कोई क्या कहेगा क्योंकि ऊपर के कपड़ों में आग जल्दी पकड़ती है। जलने के बाद वह जिस्म से चिपक कर भीषण तकलीफ देते हैं .वैसे ही यदि पानी में डूब रही हो तो खुद को संयत करना,.सांस रोकना…फिर कमर से नीचे के कपड़े उतार देना क्योंकि ये पानी के साथ मिलकर भारी हो जाते हैं, तुम्हें सिंक (डुबाना) करेंगे। जब जान पर बन आए तो लोग क्या कहेंगे कि चिंता मत करना तुम क्या कर सकती हो सिर्फ यह सोचना।
जो बच्चे बच ना पाए, उनके माँ बाप का सोच कर दिल बैठा जा रहा है। मेरे एक सीनियर साथी ने बहुत पहले कहा था..बच्चा साइकिल लेकर स्कूल जाने लगा है, जब तक वह घर वापस नहीं लौट आता..मन घबराता है। उस समय मैं उनकी बात समझ नहीं पाई थी..जब आयुष हुए तब समझ आया आप दुनिया फतह करने का माद्दा रखते हो अपने बच्चे की खरोच भी आपको असहनीय तकलीफ देती है.इस बात का मतलब सिर्फ इतना ही है कि हम सब याद करे हिंदी पाठ्यपुस्तक की एक कहानी…
जिसमें एक पंडित पोथियां लेकर नाव में चढ़ा था. वह नाविक को समझा रहा था ‘अक्षर ज्ञान- ब्रह्म ज्ञान’ ना होने के कारण वह भवसागर से तर नहीं सकता. उसके बाद जब बीच मझधार में उनकी नाव डूबने लगती है तो पंडित की पोथियां उन्हें बचा नहीं पाती। गरीब नाविक उन्हें डूबने से बचाता है, किनारे लगाता है। हम भी अपने बच्चों को सिर्फ पंडित बनाने में लगे हैं. उन्हें पंडित के साथ नाविक भी बनाइए जो अपनी नाव और खुद का बचाव स्वयं कर सकें। सरकार से उम्मीद लगाना छोड़िए चार जांच बैठाकर, कुछ मुआवजे बांटकर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा। कुकुरमुत्ते की तरह उग आए कोचिंग संस्थान ना बदलेंगे। इस तरह के हादसे होते रहे हैं .आगे भी हो सकते हैं..बचाव एक ही है हमें अपने बच्चों को जो लाइफ स्किल सिखानी है। आज रात ही बैठिए अपने बच्चों के साथ उनके कैरियर को गूगल करते हैं ना. लाइफ स्किल को गूगल कीजिए। उनके साथ खुद भी समझिए विपरीत परिस्थितियों में धैर्य के साथ क्या-क्या किया जाए याद रखिए जान है तो जहान है।
एक घटना मुझे याद है। हमारी ही कॉलोनी के एक भईया डूब रहे थे..दूसरे ने उन्हें बाल से खींचकर बचा लिया वे जो दूसरे थे ना उन्हें लाइफ स्किल आती थी….उन्होंने अपना किस्सा बताते हुए कहा था…कि डूबते हुए इंसान को बचाने में बचानेवाला भी डूब जाता है. क्योंकि उसे तैरना आता है बचाना नहीं मुझे मेरे स्विमिंग टीचर ने सिखाया है कि कोई डूब राह हो तो उसे खुद पर लदने ना दो उसके बाल पकड़ों और घसीटकर बाहर लाने की कोशिश करो. .यही तो छोटी-छोटी लाइफ स्किल हैं) कई जीवन उपयोगी बाते बताई।श्री निमराजे ने कहा कि बच्चों को जीवन मे कभी झूठ नही बोलना और किसी की चुगली इत्यादि कभी नही करना चाहिए। बच्चों को अपने माता -पिता की बात का सदैव पालन करना चाहिए। बच्चो की सुरक्षा हेतु चाइल्ड हेल्प लाइन नंबर 1098 ,महिला हेल्प लाइन नंबर, 1091, पुलिस कंट्रोल नंबर 100 की जानकारी दी गई । बच्चो को उनके अधिकार के बारे में विस्तार से बताया गया।एवं बच्चो को परिचय का क्या महत्व होता है इसके अन्य महत्वपूर्व विषयो पर चर्चा की गई । श्रीप्रकाश सिंह निमराजे संबोधित करते हुये कहा कि हमें जिस स्वभाव के साथ जन्म देते है वो प्रायः अपरिवर्तित रहता है ,किन्तु अपनी आदतों के जन्मदाता हम स्वयं होते है,जो हमें दोषपूर्ण जीवन शैली जीने से अनचाहे प्राप्त हो जातीं फिर भी आदतों को परिवर्तित करना हमारे वश में होता बहुधा हम अपने स्वभाव की तो परवाह करते अपितु आदतों के प्रति लापरवाह होते ,जबकि हमारे जीवन की अधिकतर असफलताओं का कारण हमारा स्वभाव नही ,हमारी आदतें होतीं. जीवन मे सफल होने के लिए अच्छी आदत और सच्ची प्राथना दोनों ही असरकारी होते है.
जीवन में जब श्रम से बचने और मौज़ करने की इच्छाएं तीव्र हो जाती हैं तो उचित ,- अनुचित का विचार त्याग कर हम कुमार्ग पर चलने लगते ,जिससे हमारे स्वयं का ही नहीं ,समस्त परिवार और समाज के पतन की शुरुआत हो जाती भोग विलास पूर्ण आकांक्षाओं से ही हमारी अतृप्ति अंतहीन हो जाती और हमारा मन अधिक सुख – सुविधाओं की मांग करने लगता, यही स्वार्थ और अदूरदर्शिता पूर्ण प्रक्रिया हमारे बहुमूल्य मनुष्य जीवन को व्यर्थ कर देती. जीवन में श्रम आधारित समानुपाती प्रगति की प्रार्थना हमारा मन कोरे कागज या फोटोग्राफी की प्लेट की तरह है जो परिस्थितियॉं, घटनाएँ एवँ विचारणाएँ सामने आती रहती हैं उन्हीं का प्रभाव उस पर अंकित होता चला है और मनोभूमि वैसी ही बन जाती है हम स्वभावत: न तो बुद्धिमान हैं और न मूर्ख, न भले हैं, न बुरे, वस्तुत: हम बहुत ही संवेदनशील रचना है , हम अपने समीपवर्ती प्रभाव को ग्रहण कर जैसा वातावरण हमारे मस्तिष्क के सामने छाया रहता है उसी ढाँचे में ढलने लगते..हमारी यह विशेषता परिस्थितियों की चपेट में आकर कभी अध:पतन का कारण बनती है – कभी उत्थान का. प्रयत्न करके स्वयं को प्रतिकूल प्रभाव से बचाते रहना ही सफल जीवन की कुंजी है.भारत सरकार की शिक्षा के क्षेत्र में बहुत सारी योजनाएं हैं लेकिन जानकारी के अभाव में हमारा समाज इन सभी योजनाओं से वंचित रह जाता है. हमारी कोशिश यही रहनी चाहिए कि हम ऐसी योजनाओं को खोजें और अपने समाज तक जानकारी को पहुंचाएं।
यदि बचपन से हर व्यक्ति पर यह संस्कार पड़े तो समाज नीतिमान बन सकता है। समाज मे स्वतंत्रता समता बन्धुत्व न्याय की प्रवृत्ति बढ़ स
कती है।
सूरत (गुजरात) की इस बिल्डिंग के ऊपरी मंजिल पर चल रहा था कोचिंग सेंटर! इसमें भीषण आग लगने से अब तक 21 बच्चे-बच्चियों की दर्दनाक मौत की खबर आई है! भयानक अग्निकांड! यह कोई प्राकृतिक विपदा नहीं, एक मानव-निर्मित भयावह कांड है, जिसमें इतनी निर्दोष जानें चली गईं! इसमें सिर्फ इस भवन के मालिकान और कोचिंग सेंटर के संचालक ही दोषी नहीं, वहां का शासन और प्रशासन भी जिम्मेदार है!
अपने देश में गुजरात को ‘विकास का मॉडल’ कहा जाता है! पर शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र सहित संपूर्ण मानव विकास में उसकी क्या स्थिति है?
आखिर सूरत जैसे बड़े शहर के एक भवन की चौथी मंजिल पर टेंटनुमा संरचना में कोचिंग सेंटर क्यों चल रहा था? उक्त संरचना का निर्माण गैरकानूनी ढंग से हुआ, यह तो सामान्य सी बात हुई ! ऐसा देश के कमोबेश अधिकतर शहरों में होता है। इससे ज्यादा गंभीर मसला है, ‘विकास का मॉडल’ के रूप में प्रचारित एक राज्य में शिक्षा और शिक्षण का यह कौन सा मॉडल है कि बच्चों को कोचिंग के लिए गैरकानूनी ढंग से निर्मित एक भवन में बैठने के लिए बाध्य होना पड़ता है! स्कूल और कॉलेज में ही ऐसी अच्छी पढ़ाई क्यों नहीं होती कि बच्चों को किसी कोचिंग सेंटर की तरफ जाना ही न पड़े?
देश के न जाने कितने शहरों में ऐसे सेंटर चल रहे हैं! नियमों को ताक पर रखकर बनी सूरत की इस इमारत में आग लगती है और इतने सारे बच्चे उसमें झुलस जाते हैं! कई बच्चे जान बचाने के लिए तीसरी और चौथी मंजिल से नीचे कूद पड़ते हैं, उनमें कइयों की मौत हो जाती है! हमारा समाज शिक्षा और शिक्षण की बुनियादी समस्याओं पर क्यों नहीं सोचता? उसकी प्राथमिकता इतनी भटकी हुई क्यों है?
क्या हमारा समाज सिर्फ ”हिंदू-मुसलमान’ के विद्वेषपूर्ण सियासी जुमलों और जोशीले भाषणों में ही ‘लोकतंत्र’ का जश्न मनाता रहेगा या शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की भी चिंता करेगा? पता नहीं, इस पर हम कब सोचेंगे?
अच्छे भविष्य के लिए अपनी पढ़ाई में लगे सूरत के उन 21 बच्चों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि, जो अब हमारे बीच नहीं हैं!
जहाँआरा (cc) वीडियो वोलिटियर्स ने बच्चों को खेल, डांस शिक्षा के महत्व पर चर्चा की और पॉस्को एक्ट के बारे में बात रखी। बाल पंचायत का आयोजन हो, एक समिति का गठन भी किये।
कार्यक्रम का समापन राधा सैनी ने किया।
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts to your email.