Edited by Pankaj Sharma, NIT:
लेखक: ममता वैरागी
आज के समय भागमभाग मची हुई है और हर व्यक्ति इतना बिजी है कि समय नहीं है, पर इस भाग दौड़ के कारण हर प्रकार की चिंताओं में घिरा पाया जा रहा है। तरह तरह की परेशानियों के कारण तरह तरह की चिंता खाये जा रही है, पर इससे स्वयं का ही नूकसान कर रहा है। कोई अच्छा जी रहा है, तो उसकी चिंता, कोई के घर कूछ सामान आ गया तो उसकी भी चिंता, कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्तियों कि मानसिकता ऐसी बन गई है कि हर बात की चिंता कर रहे हैं। कूछ तो आगे क्या होगा कि चिंता पाल लेते हैं।
बुद्धिजीवी व्यक्तियों की बात की जाये तो उन्हें इतना भी समय नहीं है कि कूछ विचार करें। उन्हें भी दिन रात कामों में उलझते देख रहे हैं और एक सांस निकलते ही सब के मूंह से एक वाक्य निकलता है शांत हो गये। अरे तो जब प्राण थे तब क्या किया? कूछ करते, कूछ विचार करते पर नहीं समय नही है। जबकि आज जरूरत है और बहूत ज्यादा जरूरत है सभी को चिंता की जगह चिंतन करने की। भले समय हो कि नहीं। यह समय का भी एक बहाना होता है। चोराहे पर गपशप करने का समय है पर चिंतन करने का नहीं आखिर क्यों? कोई चिंतन, मनन नहीं करना चाहता। आज के युग में कितना गलत हो रहा है कोई चिंतन कर रहा है? उल्टा वह जबाब दें सकता है हमने क्या ठेका लिया है समाज सूधार का। हां भाई तुमने ठेका नहीं लिया पर कुछ चिंतन करके कुछ कर सकते थे। तूम यूवा हो, नर हो, तूमसे परिवार है, तूमसे समाज है, कर सकते हो तुम, तुम चिंतन के द्वारा क्या कूछ नहीं कर सकते, बहूत कूछ करके फिर दुनिया से जाओ।
क्या समय नहीं है, क्या गलत होते देख रह हो? उठो, जागो, कर्मठ बनो, कूछ नेक काम करो। एक घंटा, आधा घंटा भी यदि चिंतन करके कूछ करने की सोचते हो तो तूम्हारे हाथों बहूत कूछ अच्छा हो सकता है। जरूरत है सिर्फ समझने की, पर आज का मानव हर किसी को गिराने, मिटाने की सोच रखता है। कूछ रचनात्मक कार्य, भलाई के कार्य, या समाज में फैली तरह तरह की बुराईयों को दूर करना नहीं चाहता, आखिर क्यों? क्यों आज का मानव हर तरह की चिंताओं से घिरा रहना चाहता है, कम उम्र में कोई बिमारी लगाना चाहता है पर कोई नेक और भलाई के काम करना नहीं चाहता। बडे बड़े अस्पतालों में पैसा लगाना चाहता है पर अच्छी सोच लाकर कुछ अच्छा करके जीना नहीं चाहता क्यों?
इस कारण समाज में भी कितनी बुराईयों ने जन्म ले लिया है पर इन सब बातों से किसी को सहोकार नहीं कि हम इस जग में आये हैं तो कुछ करें। सभी यही कहेंगे कि समय नहीं है, परिवार देखें कि दुनिया। तो भाईयो और बहनों हम सभी समाज में रहते हैं और हमें ही अच्छे परिवार के साथ अच्छा समाज चाहिए। उसमें यदि बूराईयो का, अंधविश्वासों का जहर घुलता है तो हमें ही उसे साफ करना होगा, कोई और थोडे ही आयेगा।
अब कहेंगे, हम अकेले क्या करें।
तो सूर्य चांद को देखें अकेले ही सबको प्रकाशित करते हैं।अकेला व्यक्ति भी सही चिंतन से बहूत कूछ कर दिखाया है, बडे बड़े इतिहास रच सकता है और अकेले चलने के बाद ही पीछे भीड आती है पहले नहीं। सोचो समझो, और उठो चिंता छोडो चिंतन करो कि समाज, राष्ट्र का हित किस तरह करें कि इनमें आई बुराई दूर हो और हमसे कोई नेक काम हो।
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