संदीप शुक्ला, ग्वालियर (मप्र), NIT:
10 दिसंबर का दिन हम सभी विश्व के वासियों के लिए महत्तपूर्ण है। सामान्य जीवन यापन के लिए प्रत्येक मनुष्य के अपने परिवार, कार्य, सरकार और समाज पर कुछ अधिकार होते हैं, जो आपसी समझ और नियमों द्वारा निर्धारित होते हैं, इसी के अंतर्गत संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसंबर 1948 को सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणापत्र को आधिकारिक मान्यता दी गई, जिसमें भारतीय संविधान द्वारा प्रत्येक मनुष्य को कुछ विशेष अधिकार दिए गए हैं।
मानव अधिकार का मतलब उन सभी अधिकारों से है जो व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता एवं प्रतिष्ठा से जुड़े हुए हैं। यह सभी अधिकार भारतीय संविधान के भाग-3 में मूलभूत अधिकारों के नाम से वर्णित किए गए हैं जो न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय है, जिसकी ‘भारतीय संविधान’ न केवल गारंटी देता है, बल्कि उसका उल्लंघन करने वालों को अदालत सजा भी देती है। वैसे तो भारत में 28 सितंबर 1993 से मानव अधिकार कानून अमल में लाया गया था और 12 अक्टूबर, 1993 में ‘राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग’ का गठन किया गया था, लेकिन संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसंबर 1948 को घोषणा पत्र को मान्यता दिए जाने पर 10 दिसंबर का दिन मानवाधिकार दिवस के लिए निश्चित किया गया।
मानवाधिकार को 30 अनुच्छेदों द्वारा सरलता से समझा जा सकता है।
विश्व मानवाधिकार दिवस पर समाज के वंचित जनों के अधिकार पर लड़ने/पैरोकारी करने तथा सरकार द्वारा निर्धारित सुविधाओं की पहुंच सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयासरत सभी साथियों/संगठनों का अभिवादन करते हुए बधाई देता हूं कि आज मानवाधिकार दिवस के रूप में पूरे विश्व में गतिविधियां हुईं जो मानवाधिकार संरक्षण की दिशा में है।
अधिसंख्य साथियों को पता होगा कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सभी देशों से एक आवाज उठने लगी कि मानव होने के नाते हर व्यक्ति को चाहे वो धरती के किसी भू भाग में हो एक मानवाधिकार होना चाहिए और उसकी एक आचार संहिता हो। जनाकांछाओं के मद्देनजर 1948 में विश्व मानवाधिकार सम्मेलन हुआ और मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की गई जिसे मानवाधिकारों पर अंतररष्ट्रीय समझौता (मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा) कहा गया। भारत भी उस समझौते में भागीदार और हस्ताक्षरी है। कालांतर में ये महसूस किया गया कि सिर्फ मानवाधिकारों की व्याख्या महिलाओं, बच्चों, मजदूरों या अन्य विशेष परिस्थिति के लोगों के मानवाधिकारों का संरक्षण संभव नहीं अतः विभिन्न परिदन्य समूहों के अधिकारों की रक्षा हेतु विभिन्न प्रावधान किए गए।
1948 से मानवाधिकारों पर चली गाड़ी आज 70वां अंतररष्ट्रीय दिवस मना रही है। संवैधानिक घोषणा और विभिन्न कानूनी प्रावधानों के बीच आज भी हम समता और समानता को अधिकार के रूप में पूरी आबादी न पूरी तरह समझ पाई हैं और न ही नीति निर्धारकों, शासन और सत्ता के चरित्र में ही उतर पाया है। बल्कि हर दिशा में विभिन्न आधारों पर भेद भाव एवं हिंसा व्याप्त है।
इन संदर्भों में मेरे चंद अनुभव हैं जो 1984 से लगातार समाज के विभिन्न मानवाधिकार के मुद्दों से जुड़कर काम करने से उपजे हैं:
1. जिस देश में सामाजिक जवाबदेही कमजोर होती है वहां सार्वजनिक जवाबदेही दम तोड़ देती है।। यहाँ हम सार्वजनिक जवाबदेही को सरकार, शासन, सत्ता, कार्यदाई संस्थाओं, नीति निर्धारकों और परिपालको को परिभाषित करते हैं और बाकी सब समुदाय, परिवार, सामाजिक/शैक्षणिक/धार्मिक संस्थाओं, मीडिया, पंचायतें, समुदाय आधारित या जाति आधारित संगठनों से हमारा सामाजिक जवाबदेही के केंद्र से अभिप्राय है।
2. मानवाधिकारों पर बात हो, अधिकार सुनिश्चित हों इसके लिए काम हो परंतु क्या सम्पूर्णता में हम मानव बन पाए हैं? जैसा कि कहा गया है” Man is Social Animal” यानी मनुष्य एक सामाजिक जानवर है। मतलब मानवीय मूल्य के अनुशरण और व्यवहार के बगैर मनुष्य पशु के समान है।। तब एक गुजारिश है सभी से की “पशु अगर सामाजिक हो जाय तो वो मानव बन जायेगा” अतः ये समझना है कि जानवर को सामाजिक बनाने का मानदंड क्या है? शायद इस पर बहस और मानवीय मूल्य जो निश्चित ही मानवीय कर्तव्य से जुड़ा है पर सकारत्मक बहस और कार्य किये जाने से शायद मानवाधिकारों के वंचितीकरण पर लगाम लगाने का एक राश्ता दे सकता है।
अतः अंत मे दो बात…
(अ) मानव की परिभाषा क्या हो, क्या मानक हों जिनके आधार पर मानव कहलाये(ब) कर्तव्य पालन से हक पैदा होता है तो मानव के कर्तव्य पर भी चर्चाएं की जाएं।
निःशुल्क विधिक सहायता का लाभ लेने की जानकारी देते हुए आवेश या अनजाने में हुए अपराध के लिए जेल प्रताड़ना का नहीं पश्चाताप का केंद्र …बताया। मानव अधिकारों को विश्लेषित करते हुए मानव अधिकार जन्म से आजीवन प्राप्त हैं।
सुश्री किरण कैन ने निःशुल्क अधिवक्ता पैनल लॉयर में से उपलब्ध कराने हेतु प्रक्रिया की जाती है साथ ही कहा कि अपराध से घृणा करो अपराधी से नहीं।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए श्रीप्रकाश निम राजे, गोपाल किरण समाज सेवी संस्था (सामाजिक कार्यकर्ता) ने मानव अधिकारों व कर्तव्यों की जानकारी देते हुए कहा कि विधि के समक्ष सब समान सबको न्याय पाने का अधिकार है, विधिक सहायता के लिए लीगल एड क्लिनिक, प्ली-बारगेनिंग की जानकारी दी। अधिकारों के हनन पर पुरजोर आवाज उठाने की बात कही।
एडवोकेट आमीन ने बताया पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने के 24 घण्टे के अंदर न्यायालय के समक्ष पेश करना व रिश्तेदार को गिरफ्तारी की सूचना देना अनिवार्य है। रीना दोहरे ने अधिकारों से बंचित होने पर आवश्यक आवाज उठाने की बात कही।
विचार गोष्ठी में सुश्री, जहाँआरा ने कहा कि सब लोग गरिमा और अधिकार के मामले में स्वतंत्र और बराबर हैं अर्थात सभी मनुष्यों को गौरव और अधिकारों के मामले में जन्मजात स्वतंत्रता और समानता प्राप्त है। उन्हें बुद्धि और अंतरात्मा की देन प्राप्त है और परस्पर उन्हें भाईचारे के भाव से बर्ताव करना चाहिए।
इस मौके पर डॉ अनिल सिंह, सुनीता पबैया इंजी श्री राम वीर सिंह दोनेरिया, आशा गौतम, सुनीता सिंह, सुनीता राजोरिया, लक्ष्मण प्रसाद, वीरेंद्र बौद्ध, बनवारी लाल, लक्ष्मण प्रसाद, सोनू जाटव, वीरेंद्र कुमार, भवानी सिंह, रोहित सिंह, इंजीनियर, संगीता, भारती सिंह, फूलवती, बेटीबाई, पुष्पेंद्र,जानकी, आयुष, कीर्ति पाल, बदल पाल रोशनी सिंह, महेश मंडेलिया, गोपाल सिंह ठेकेदार, रामप्रकाश कचोलिया, संदीप बंसल, बृजेश शेखर सिंह आदि ने विचार व्यक्त किये।
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