शिवपुरी जिले में एक माह में 12 लोगों की डूबने से मौत, पर्यटन स्थलों पर नहीं हैं सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम | New India Times

संदीप शुक्ला, शिवपुरी (मप्र), NIT; 

शिवपुरी जिले में एक माह में 12 लोगों की डूबने से मौत, पर्यटन स्थलों पर नहीं हैं सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम | New India Times​शिवपुरी जिले में सुल्तानगढ़ झरना फाल का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि दो और मामले सामने आ गए हैं, जिससे पर्यटन स्थलों पर सुरक्षा के इंतजाम की पोल खुल गई है।

सुल्तानगढ़ के जघन्य घटनाक्रम को अभी पूरा एक माह भी नहीं हुआ कि पर्यटन स्थल पवा में डूबने से एक बच्चे की मौत और अब मोहिनी सागर डेम में 2 लोगों की डूबने से मौत हो गई है। शुक्र है कि साथ नहा रहे अन्य 5 लोगों की जिन्दगी समय रहते बच गई। मगर सरकार और प्रशासन की लापरवाही की पराकाष्ठा यह है कि जब सुल्तानगढ़ में 9 लोगों की बह जाने से मौत हुई और बमुश्किल स्थानीय लोगों की मदद से लगभग 25 लोगों की जाने बचाई गई तब जाकर प्रशासन पत्र लिखकर इस तरह के पर्यटन स्थलों को सुरक्षित बनाने और सरकार ने खुद को खतरे में डाल जान बचाने वाले स्थानीय लोगों को 5-5 लाख का पुरस्कार दिया और प्रदेश भर के अखबारों में भोपाल से खबर छपवा यह जता, अपने पुरुषार्थ दिखाने की कोशिश सरकार ने की, कि सरकार ने कितना सार्थक, सम्मानित और सफल कार्य किया है। 

यह सही है कि जिन लोगों ने अपनी जान जोखिम में डालकर लगभग 25 लोगों की जान भरी रात पानी में उतर बचाई वह 5-5 लाख पुरस्कार ही नहीं, रैस्क्यू टीम में नौकरी पाने के हकदार भी थे। मगर सिर्फ उन्हें 5-5 लाख देकर इस तरह से उन लोगों के साथ कुछ लोगों ने फोटो खिंचवाये जिनका कर्तव्य था कि वह मासूमों की जान बचाने में अहम योगदान देते और अपने कर्तव्य निर्वहन करते। ​शिवपुरी जिले में एक माह में 12 लोगों की डूबने से मौत, पर्यटन स्थलों पर नहीं हैं सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम | New India Timesकिसी भी सरकार और सत्ता के लिए इससे शर्मनाक बात क्या होगी जहां एक महीने में बह जाने डूब जाने से लगभग 12 लोगों की दर्दनाक मौत हो जाए और उसके लिए अदना-सा भी जबावदेह व्यक्ति जबावदेह न ठहराया जाए। अगर सरकार चाहती, समीक्षा करती तो वह भी जानती है कि राजस्व की इंच-इंच भूमि की देख-रेख के लिए राजस्व एवं वन विभाग में बीट प्रभारी, चौकीदार की तैनाती रहती है। वहीं जान-माल की रक्षा के लिए उत्तरदायी पुलिस में भी क्षेत्रवार बीट प्रभारी होता है। वहीं शासकीय सेवा में तैनात हर उस कर्मचारी का कर्तव्य होता है जो सरकार के राजकोष से हर माह वेतन हासिल करता है। जिसका नैतिक कर्तव्य होता है कि वह ऐसी सूचनाऐं संबंधित विभाग या जिले के आला अधिकारियों को दें, जहां जान-माल का खतरा हो। चाहे वह गुरुजी, शिक्षक, अध्यापक, आगनबाड़ी, आशा कार्यकर्ता, पंचायत सचिव, रोजगार सहायक, कृषि विकास अधिकारी, कृषि मित्र, उपयंत्री, ग्रामीण यांत्रिकी विभाग, एनएएम या अन्य। मगर कहते हैं जब मौजूदा सरकार या प्रशासन अंतर मुखी और अहंकारी हो जाए तो इस तरह की घटनाओं को रोकना असंभव ही नहीं न मुमकिन हो जाता है। मगर सबसे दर्दनाक, शर्मनाक पहलू यह है कि जो विपक्ष सत्ता के सपनों में चूर सत्ता में लौटने की जुगत लगाए केवल घडिय़ाली आंसू बहा अपनी औपचारिकता पूर्ण करने में लगा रहता है। उसका भी कर्तव्य बनता था कि वह भी अपने कर्तव्य और जबावदेहियों का एहसास कराने अहंकार में डूबी सरकार को जगाने का प्रयास करता। मगर दुर्भाग्य कि ऐसा वह प्रभावी ढंग से नहीं कर सका और 2 जानें और चली गईं। देखना होगा कि मोहिनी सागर में हुई इन 2 मौंतों से प्रशासन और सरकार क्या सबक लेती है?


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