एनएसयूआई ने राज्यपाल को पत्र लिख कर आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपति पर हिन्दी में मेडिकल की पुस्तकों के प्रकाशन में 50 प्रतिशत कमीशन का लगाया गंभीर आरोप | New India Times

अबरार अहमद खान/मुकीज खान, भोपाल (मप्र), NIT:

एनएसयूआई ने राज्यपाल को पत्र लिख कर आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपति पर हिन्दी में मेडिकल की पुस्तकों के प्रकाशन में 50 प्रतिशत कमीशन का लगाया गंभीर आरोप | New India Times

मध्यप्रदेश का एकमात्र शासकीय आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय अपने कारनामों की वजह से लगातार सुर्खियों में रहता है। इसी बीच एनएसयूआई नेता रवि परमार ने विश्वविद्यालय की कार्य परिषद की बैठक के एक दिन पूर्व विश्वविद्यालय के कुलपति के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। परमार ने राज्यपाल को पत्र लिखकर कुलपति को हटाने की मांग की है।

एनएसयूआई ने राज्यपाल को पत्र लिख कर आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपति पर हिन्दी में मेडिकल की पुस्तकों के प्रकाशन में 50 प्रतिशत कमीशन का लगाया गंभीर आरोप | New India Times

रवि परमार ने राज्यपाल को संबोधित पत्र में लिखा कि मध्यप्रदेश का एकमात्र शासकीय मेडिकल विश्वविद्यालय जो कि मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के नाम से जबलपुर में स्थित है विश्वविद्यालय की स्थापना मध्यप्रदेश की चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने और चिकित्सा के क्षेत्र में अच्छी शिक्षा देने के उद्देश्य से की गई थी लेकिन आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय अपने उद्देश्य से भटक गई जिससे मध्यप्रदेश की चिकित्सा शिक्षा का लगातार पतन हो रहा हैं।

एनएसयूआई ने राज्यपाल को पत्र लिख कर आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपति पर हिन्दी में मेडिकल की पुस्तकों के प्रकाशन में 50 प्रतिशत कमीशन का लगाया गंभीर आरोप | New India Times

परमार ने आगे लिखा कि विश्वविद्यालय में ढेरों अनियमितताएं होने के बावजूद भी चिकित्सा शिक्षा विभाग विश्वविद्यालय पर भरोसा कर मेडिकल, नर्सिंग, पैरामेडिकल और अन्य कोर्सेस की हिन्दी में पुस्तकें तैयार कर छात्र-छात्राओं को उपलब्ध करवाने की तैयारी में है यह वही आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जिसकी कार्यपरिषद की बैठक दिनांक 16/08/2022 में कार्यपरिषद के सदस्यों ने समस्त संकाय के छात्र छात्राओं की डिग्री को हिन्दी फार्मेट में प्रिंट करने से इंकार कर डिग्री सिर्फ अंग्रेजी फॉर्मेट में प्रिंट करने का निर्णय लिया था कार्यपरिषद की बैठक में ये बात सामने आई कि विवि हिंदी में डिग्री छापने में त्रुटियां आ रही है। पत्र के साथ आदेश की छायाप्रति संलग्न है।

एनएसयूआई ने राज्यपाल को पत्र लिख कर आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपति पर हिन्दी में मेडिकल की पुस्तकों के प्रकाशन में 50 प्रतिशत कमीशन का लगाया गंभीर आरोप | New India Times

रवि ने पत्र में बताया कि अब सवाल ये उठता है कि जो विश्वविद्यालय एक पन्ने की डिग्री ट्रांसलेट नहीं कर सकती वह मेडिकल, नर्सिंग और पैरामेडिकल का पूरा सिलेबस कैसे हिंदी में ट्रांसलेट करेगी। जबकि सरकार ने ट्रांसलेशन का जिम्मा विश्वविद्यालय को ही सौंपा है। यानी सिलेबस ट्रांसलेशन में भी लीपापोती और बड़े स्तर पर अनिमित्तताएं हो रही है। सवाल ये भी है कि ये वही विश्वविद्यालय है जहां तीन वर्ष से नर्सिंग स्टूडेंट्स की परिक्षाएं नहीं हुई है। फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट्स तीन साल बाद भी फर्स्ट ईयर में हैं।

रवि परमार ने लिखा कि विश्वविद्यालय का मूल काम छात्रों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देना, समय पर परिक्षाएं करना और समय पर डिग्रियां प्रदान करना है। लेकिन मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय विश्व की ऐसी एकमात्र विश्वविद्यालय है जो अपना मूल काम छोड़कर बाकी सारे कार्य को अंजाम देती है। विश्वविद्यालय घोटालों का अड्डा बन चुका है। सूचना तो ये भी है कि विश्वविद्यालय द्वारा भोपाल के जेके जैन ब्रदर पब्लिशिंग एजेंसी को छपाई का ठेका दे रही है। इस पब्लिशिंग एजेंसी से चिकित्सा शिक्षा मंत्री का सांठ गांठ है और उन्होंने कुल कोटेशन का 50 फीसदी कमीशन लेने की डील पक्की कर ली है।

एनएसयूआई ने राज्यपाल को पत्र लिख कर आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपति पर हिन्दी में मेडिकल की पुस्तकों के प्रकाशन में 50 प्रतिशत कमीशन का लगाया गंभीर आरोप | New India Times

परमार ने लिखा कि राज्यपाल महोदय के संज्ञान में यह भी लाना चाहता हूं कि राज्य सरकार द्वारा कहा गया था कि स्टूडेंट्स को निशुल्क हिंदी भाषा में पुस्तक उपलब्ध कराई जाएगी। हालांकि, विश्वविद्यालय प्रशासन इसे मूल्य लेकर यानी छात्रों से मोटी रकम लेकर हिंदी भाषा में अनुवादित पुस्तक उपलब्ध कराने की तैयारी में है। यानी चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग के नेतृत्व में विश्वविद्यालय यहां भी लूट को अंजाम देने में लगा है।

आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के सभी छात्र छात्राएं चाहते हैं कि विश्वविद्यालय को मेडिकल, नर्सिंग, पैरामेडिकल और अन्य कोर्सेस की हिन्दी में पुस्तकें तैयार करने का जिम्मा नहीं दिया जाए। क्योंकि ये डिग्री का अनुवाद करने में भी सक्षम नहीं हैं। ये सिलेबस अनुवाद करेंगे तो स्टूडेंट्स के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा। महोदय हम यह भी चाहते हैं कि विश्वविद्यालय के घोटालेबाज कुलपति को तत्काल पद से हटाकर किसी तेज तर्रार व्यक्ति को नियुक्त किया जाए और चिकित्सा शिक्षा मंत्री सारंग के नेतृत्व में हुए घोटालों की जांच की जाए। इस नेक कार्य के लिए आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के सभी छात्र छात्राएं आपके सदा आभारी रहेंगे।


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