आफाक अहमद ने बिहार में जहरीली शराब पीने से मरे लोगों पर विपक्ष द्वारा राजनीति करने का लगाया आरोप | New India Times

अशफाक कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:

आफाक अहमद ने बिहार में जहरीली शराब पीने से मरे लोगों पर विपक्ष द्वारा राजनीति करने का लगाया आरोप | New India Times

जदयू के राष्ट्रीय महामंत्री आफाक अहमद ने कहा कि शराबबंदी और जहरीली शराब से मौत के बीच कोई संबंध नहीं है। बिहार के कई पड़ोसी राज्य हैं जहां शराबबंदी नहीं है, फिर भी वहां सैकड़ों लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हो रही है। उत्तर प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल और झारखंड में ऐसी कई घटनाएं हुई है। इसी वर्ष अलीगढ़ में 108 लोगों की मौत हुई। एक वर्ष पहले असम में ऐसी ही भीषण घटना हुई थी, सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गए थे। कुछ वर्ष पूर्व बंगाल में एक घटना में दो सौ अधिक लोगों की मौत हुई थी। जबकि बिहार में शराबबंदी के बाद विगत पांच वर्षों में 128 लोगों की मौत हुई है। हालांकि, एक मौत भी दुर्भाग्यपूर्ण है। बिहार सरकार और माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी इस मामले में संवेदनशील हैं, वह प्रयासरत हैं कि जहरीली शराब से एक भी मौत न हो। लेकिन इस बिना पर शराबबंदी को कलंकित करना, यह दर्शाता है कि विपक्ष शराब माफियाओं से प्रेरित है, उनके पे रोल पर पल रहा है।
आफाक खान ने कहा कि जहां तक शराबबंदी से मौत का सवाल है तो कोई यह सुनिश्चित कर सकता है कि शराबबंदी न होने पर जहरीली शराब पीने से मौत की घटनाएं नहीं होगी? जंगलराज के मसीहा से उनके नाबालिग राजकुमार पूछ लें कि उनके शासनकाल में हर वर्ष कितनी जहरीली शराब पीने से मौत की घटनाएं घटती थी? हर वर्ष सैकड़ों लोगों की मौत होती थी। 2005 के बाद ऐसी घटनाओं में कमी आई। लेकिन शराबबंदी से पूर्व जहरीली शराब से मौत की कई घटनाएं हुई थी। बल्कि, शराबबंदी के बाद ऐसी घटनाओं में बहुत गिरावट आई। ऐसी एक भी घटना न घटे ऐसी निरंतर कोशिश जारी है।
उन्होंने कहा कि एक तथ्य काबिलेगौर है कि शराबबंदी की वजह से हर वर्ष हज़ारों लोगों की जान बिहार में बच रही है। यह कोई थोथी दलील नहीं है। यह सच्चाई है। 2017 से बिहार में शराब पीकर सड़क दुर्घटना का मामला शून्य हो गया है। 2017 से 2021 तक शराब के नशे में ड्राइव करने का कारण हुई सड़क दुर्घटना में मौत का एक भी मामला नहीं आया है। जबकि 2010 से लेकर 2014 तक पांच वर्षों में शराब के नशे में हुई सड़क दुर्घटना से बिहार में 7304 लोगों की मौत हुई थी। मतलब पिछले पांच वर्षों में बिहार में 8-10 हज़ार लोगों की जिंदगी शराबबंदी की वजह से बची है। तो क्या विपक्ष शराबबंदी खत्म कर ऐसे दस हज़ार लोगों का नरसंहार करना चाहता है? ऐसे में शराब बंदी को एक संतुलित मस्तिष्क का व्यक्ति गलत नहीं कहेगा, तो कौन गलत कहेगा ? वह शराबी, ऐय्यास, या, शराब माफिया या, शराब के गोरखधंधे से जुड़े अन्य लोग हो सकते हैं? क्या विपक्ष के नेतागण शराब माफिया के भरोसे पल रहे हैं?
खान ने आगे कहा कि जाहिर है जहरीली शराब से मौत और बिहार में शराबबंदी का कोई सीधा संबंध नहीं है । किसी भी कानून को लागू करने से वह बुराई एकदम खत्म नहीं हो जाती जैसे दहेज निरोधक अधिनियम हो या, IPC 302। हत्या के मामले में तो मृत्युदंड का प्रावधान है, इसके बावजूद न दहेज लेना-देना रुका है, न हत्या। इसी तरह 1988 में लागू हुआ भ्रष्टाचार निरोधक कानून से भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो गया। चारा घोटाला इसका एक जीता-जागता उदाहरण है । लेकिन, दहेज लेने-देने वाले, हत्या करने वाले और भ्रष्टाचारी पकड़े जाने पर जेल जरूर गए हैं । इसके साथ-साथ लोगों को जागरूक किया जाता है। जिससे ऐसी घटनाएं न हो। शराबबंदी के तहत भी बिहार में अब तक 12000 से अधिक शराब माफियाओं को जेल भेजा जा चुका है। वहीं लोगों को शराब का सेवन न करने के प्रति जागरूक भी किया जा रहा है।
बुराई जिसके पीछे एक बड़ी लॉबी हो, जो आदत बन चुकी है, उसे खत्म करने का निश्चय करना माननीय मुख्यमंत्री जी जैसे विरले राजनेता के ही बूते की बात है। अन्यथा, अन्य लोग तो बस उसके लाभार्थी बन अपने परिवार और अपनी पीढ़ियों के भविष्य सुरक्षित करने के लिए धन संग्रह में ही तल्लीन रहते हैं।
उन्होंने कहा कि अब प्रश्न यह है कि कुछ लोग अब भी हर बात में शराबबंदी का विरोध क्यों करते हैं? उत्तर साफ है कि शराबबंदी का वही लोग विरोध कर रहे हैं जिन्हें शराब पीने बिहार से बार-बार दिल्ली जाना पड़ रहा है या शराब माफियाओं से जिनका सीधा संबंध है। गौरतलब 1 अप्रैल 2016 को बिहार में सर्वसम्मति से शराबबंदी कानून लागू किया गया था । ऐसे में अब शराबबंदी पर सवाल उठाने वालों का आखिर मकसद क्या है? क्या सिर्फ़ नीतीश कुमार का विरोध करना है, या, बिहार को कलंकित करना है, शराब माफियाओं को खुश कर उनसे लाभ पाना है? या शराब की लत के कारण उसका सेवन करने बिहार से बार-बार दिल्ली आदि प्रवास की पीड़ा तो नहीं है।


Discover more from New India Times

Subscribe to get the latest posts to your email.

By nit

This website uses cookies. By continuing to use this site, you accept our use of cookies. 

Discover more from New India Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading