अबरार अहमद खान, स्टेट ब्यूरो चीफ, भोपाल (मप्र), NIT:
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में जमीअत उलमा मध्यप्रदेश की टीम द्वारा आज शहीद अशफ़ाक उल्ला खां एवं शहीद रामप्रसाद बिस्मिल को याद करते हुऐ श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस मौके पर हाजी इमरान ने कहा कि वक़्त के साथ साथ हमने हमारे देश के लिए क़ुर्बानी देने वाले शहीदों को भुला दिया है। जन्म दिवस या पुण्य तिथि पर याद करना ही हमारा फ़र्ज़ नहीं बल्कि उनकी क़ुर्बानियों और जीवन परिचय को आम करना भी हमारा कर्तव्य है जिससे आने वाली नस्लें भी इन वीरों को याद रखें। होना तो यह चाहिए कि देश के हर एक वीर सपूत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की यादों और क़ुर्बानियों को आम किया जाए। स्कूल, कॉलेज विश्वविद्यालय की पुस्तकों में उनके जीवन परिचय को शामिल किया जाए ताकि आने वाली नस्लों में इनकी जीवन परिचय से देश के लिए दी जानी वाली क़ुर्बानियों का जज़्बा पैदा हो। हाजी इमरान ने कहा कि शहीद अशफ़ाक़ उल्लाह खान की क़ुर्बानियों को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता पर उनकी क़ुर्बानियों को जिंदा रखने की कोशिशें की जा सकती हैं, शहीद अशफ़ाक़ उल्लाह खान, रामप्रसाद बिस्मिल को हम श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। अंग्रेजी शासन से देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले अशफ़ाक उल्ला खां ना सिर्फ एक निर्भय और प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे बल्कि उर्दू भाषा के एक बेहतरीन कवि भी थे।पठान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर, 1900 को शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। अशफ़ाक उल्ला खां ने स्वयं अपनी डायरी में यह लिखा है कि जहां उनके पिता के परिवार में कोई भी स्नातक की पढ़ाई पूरी नहीं कर सका वहीं उनके ननिहाल में सभी लोग उच्च-शिक्षित और ब्रिटिश सरकार के अधीन प्रमुख पदों पर कार्यरत थे। चार भाइयों में अशफ़ाक सबसे छोटे थे। इनके बड़े भाई रियायत उल्ला खां, राम प्रसाद ‘बिस्मिल
‘ के सहपाठी थे। जिस समय अंग्रेजी सरकार द्वारा बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया था तब रियायत अपने छोटे भाई अशफ़ाक को उनके कार्यों और शायरी के विषय में बताया करते थे।भाई की बात सुनकर ही अशफ़ाक के भीतर राम प्रसाद बिस्मिल से मिलने की तीव्र इच्छा विकसित हुई। जिसका कारण सिर्फ शायरी ही था।आगे चलकर दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई। अलग-अलग धर्म के अनुयायी होने के बावजूद दोनों में गहरी और निःस्वार्थ मित्रता थी। 1920 में जब बिस्मिल वापिस शाहजहांपुर आ गए थे तब अशफ़ाक ने उनसे मिलने की बहुत कोशिश की पर बिस्मिल ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। वर्ष 1922 में जब असहयोग आंदोलन की शुरूआत हुई तब बिस्मिल द्वारा आयोजित सार्वजनिक सभाओं में भाग लेकर अशफ़ाक उनके संपर्क में आए। शुरूआत में उनका संबंध शायरी और मुशायरों तक ही सीमित था। अशफ़ाक उल्ला खां अपनी शायरी सबसे पहले बिस्मिल को ही दिखाते थे।
राम प्रसाद बिस्मिल से दोस्ती
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे।अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे। उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए। इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए। आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे। वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे। धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था।यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए। धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई। आज हम उन्हें याद करते हुए मध्यप्रदेश सरकार से मांग करते है कि मध्यप्रदेश की राजधानी में भोपाल शहर से ताल्लुक रखने वाले महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की याद में स्मार्क बनाई जाए और मध्यप्रदेश के पाठ्यक्रम में उनके जीवन परिचय को भी शामिल किया जाए जिससे आने वाली नस्लें फायदा उठा सकें।
इस मौके पर जमीअत उलमा के पदाधिकारी हाजी मोहम्मद इमरान, मौलाना हनीफ़, फईम भाई, मुजाहिद मोहम्मद खान, मोहम्मद फरहान आदि उपस्थित थे।
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts to your email.