सादगी के साथ मनाया गया हज़रत हसन इब्न अली की यौमे विलादत | New India Times

अरशद आब्दी, ब्यूरो चीफ, झांसी (यूपी), NIT:

सादगी के साथ मनाया गया हज़रत हसन इब्न अली की यौमे विलादत | New India Times

शिया मुसलमानों के दूसरे इमाम की विलादत बहुत सादगी के साथ घरों में मनाई गई। नज़र हुई और ग़रीबों, ज़रुरतमंदों को बिना भेदभाव के तबर्रुक और खाने का सामान जिसमें ईद के लिये सिवैयां और दूसरे ज़रुरी सामान भी थे, बांटे गये।

इस मुबारक मौक़े पर इमाम बारगाह मौला अली मेवाती पुरा से सोशल मीडिया पर आनलाइन होते हुऐ मौलाना सैयद शाने हैदर ज़ैदी साहब और मौलाना सैयद फरमान अली आब्दी साहब ने तक़रीर की।

निज़ामत करते हुऐ सैयद शहनशाह हैदर आब्दी समाजवादी चिंतक झांसी ने कहा,” हज़रत इमाम हसन,
हज़रत अली अ०(सन् 625-671) चौथे ख़लीफा और पहले इमाम के बड़े बेटे और दूसरे इमाम रहे। इमाम हुसैन आपके छोटे भाई हैं।
हज़रत अली अ० के बाद कुछ समय के लिये भी ख़लीफ़ा रहे। माविया जो कि खु़द ख़लीफा बनना चाहता था, आप से संघर्ष करना चाहता था पर आपने इस्लाम में गृहयुद्ध (फ़ितना) छिड़ने की आशंका से ऐसा होने नहीं दिया।

मौलाना सैयद फरमान अली आब्दी ने बताया,” इमाम हसन उस समय के बहुत बड़े विद्वान थे। मुसलमान उन्हें इस्लामी पैगंबर मुहम्मद के नवासे के रूप में सम्मान करते हैं। शिया मुसलमानों में, हसन दूसरे इमाम के रूप में पूजनीय हैं। इमाम हसन को ग़रीबों के लिए दान करने, ग़रीबों और बंधुआ लोगों के लिए उनकी दया और उनके ज्ञान, सहिष्णुता और बहादुरी के लिए जाना जाता है।” 

मुख्य वक्ता मौलाना सैयद शाने हैदर ज़ैदी ने कहा,” हसन इब्न अली का जन्म 1 दिसम्बर 624 ई०
(15 रमज़ान हिजरी 3) मदीना, हिजाज़ में हुआ और शहादत 1 अप्रैल 670 (उम्र 45) (28 सफ़र हि 50) मदीना में हुई।, आपकी तुरबत अल-बक़ी, मदीना, सऊदी अरब में है। आपकी मां का नाम फातिमा था जो रसूले ख़ुदा की बेटी हैं।

इमाम हसन ने एक साल से भी कम हुकुमत की। किसी तरह का फसाद न हो इसलिए इमाम हसन ने विरोधी माविया को सन्धि करने के लिये मजबूर कर दिया। जिसके अनुसार वो सिर्फ़ इस्लामी देशों पर शासन कर सकता है, पर इस्लाम के क़ानूनो में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। उसका शासन केवल उसकी मौत तक ही होगा उसको किसी को ख़लीफा बनाने का अधिकार नहीं होगा। उसको इस्लाम के सभी नियमों का पालन करना होगा। उसके मरने के बाद ख़लीफा फिर हसन अ० होंगे। यदि हसन अ० कि मृत्यु हो जाय तो इमाम हुसैन को ख़लीफा माना जायगा। इसके अलावा भी और शर्त थी पर मविया अपने पुत्र को भी ख़लीफा बनाना चाहता था जो कि बहुत बड़ा अधर्मी था, ने धोखे से इमाम हसन को ज़हर दिलवा कर मात्र 45 साल की उम्र में शहीद करवा दिया।

इमाम हसन की शिक्षाओं पर चलकर आज भी अमनोअमान के साथ सबकी भलाई की जा सकती है। यही सच्ची श्रृध्दांजली भी होगी।

आख़िर में सबने इमाम हसन की विलादत की मुबारक बाद दी। सामूहिक दुआ में इमाम हसन के तुफैल में कोरोना और इस जैसी अन्य महामारियों और दूसरी मुश्किलों से दुनिया को आज़ाद करने और हिन्दुस्तान को अज़ीमुश्शान मुल्क बनाने, सभी की भलाई के साथ मिलकर मोहब्बत के साथ रहने और तरक़्क़ी करने की दुआ की गई। सभी ने मिलकर आमीन कहा।

शुक्रिया हाजी अज़हर अली ने अदा किया। महफिल में सर्व श्री हाजी तक़ी हसन, हाजी शाहिद हुसैन, ज़ायर नज़र हैदर, हाजी मोहम्मद सईद, ज़ायर सग़ीर मेहदी, ज़ायर सुख़नवर हुसैन, ज़ुल्फिक़ार हुसैन, ज़ामीन अली, सैयद सरकार हैदर, क़मर अली, फूरक़ान हैदर, अता अब्बास राहत हुसैन के साथ तक़रीबन सभी साहबे ईमान लोगों ने शिरकत की।


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