इम्तियाज़ चिश्ती, ब्यूरो चीफ, दमोह (मप्र), NIT:
अच्छे इंसान की पहचान यही है नैयर।
बाद मरने के उसे याद किया जाता है।।
मेरी नज़रों से ओझल उनका जलवा हो नहीं सकता।
किनारे से जुदा हो जाये दरिया हो नहीं सकता।।
हमसे वादा तो वफाओं का किया जाता है।
वक़्त पड़ता है तो मुँह फेर लिया जाता है।।
ऐसी ही दिलकश ऊर्दू शेरो शायरी की दुनियां के बेहतरीन शायर हाजी नैयर दमोही अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका हिर्दय गति रुक जाने से इंतक़ाल हो गया है। वे काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। उस्ताद शायर हाजी नैयर दमोही को दमोह में उनके गुरु पीरो मुर्शिद “ख़्वाजा अब्दुलस्लाम चिश्ती साहब” के आस्ताने के पास ही सुपुर्दे ख़ाक किया गया। नैयर दमोही का जन्म 1 जुलाई 1940 में हुआ था 80 वर्ष की उम्र में उनका इंतक़ाल हो गया। दमोह के चिश्ती नगर में नैयर दमोही ने आखरी सांस ली। ख़ास बात ये रही कि शायर नैयर दमोही को उनके पीर की मज़ार शरीफ़ के पास ही दफनाया गया है क्योंकि नैयर साहब की शेरो शायरी से उनके पीर की मोहब्बत का अहसास होता है जिस तरह से दिल्ली के महान सूफ़ी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के परम शिष्य हज़रत अमीर ख़ुशरो को जगह मिली और उनकी कब्र उनके पीरो मुर्शिद के करीब बनी, ठीक उसी तरह दमोह में महान सूफी संत हज़रत ख़्वाजा अब्दुलस्लाम साहब चिश्ती की शान में कलाम लिखने वाले प्रसिद्ध शायर नैयर दमोही को भी अपने पीरो मुर्शिद के ठीक बगल में सुपुर्दे ख़ाक किया गया।
नैयर साहब ने 1982 में ऑल वर्ड नात कांफ्रेंस में पाकिस्तान में भारत का नेतृत्व किया था। नैयर साहब की 6 किताबें प्रकाशित हुई जिसमें प्रसिद्ध ग़ज़ल संग्रह शुआ – ए – नैयर मध्यप्रदेश ऊर्दू अकादमी द्वारा प्रकाशित किया गया। इसके अलावा मध्यप्रदेश शासन के ऊर्दू अकादमी ने देश के प्रसिद्ध शायर निदा फ़ाज़ली सम्मान से भी सम्मानित किया गया था। नैयर साहब के जाने के बाद पूरे प्रदेश में साहित्य जगत में ग़म का माहौल है।
हर शक़्स सूँघता है मुझे फूल की तरह।
कितना तेरे ख़्याल ने महका दिया मुझे।।
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