नरेंद्र इंगले, ब्यूरो चीफ, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
भारतीय लोकतंत्र की विभिन्नता में एकता वाली महानता को दुनिया ने माना है। देश के हर राज्य का गौरवशाली इतिहास रहा है जिसकी नींव काफ़ी हद तक महाराष्ट्र ने बहुजन शासक छत्रपती शिवाजी महाराज के समय रखी है। सरकार द्वारा छत्रपती शिवाजी महाराज के किलों को लीज पर देने जैसे किए गए फ़ैसले यकीनन किसी दक्षिणपंथी विचारधारा का नतीजा हो सकता है।विधानसभा चुनावों के नतीजों में सरकार को इस फैसले का खामीयाजा भी भुगतना पड़ा है। 16वीं शताब्दी मे शिवाजी राजे द्वारा महाराष्ट्र में बनाए गए तमाम किले स्वराज्य और स्वाभिमान, अस्मीता का प्रतिक बने हुए हैं। इन्हीं किलों के प्रतिभाशाली इतिहास के सम्मान में राज्य के सभी घरों के प्रांगण में मिट्टी के सांकेतिक किले बनाने की परंपरा आज 21वीं सदी में भी बरकरार है। इस बात से इत्तेफ़ाक जरुर रखा जा सकता है कि मुंबई जैसे बडे़ शहरों के लोग अपने घरों में कागज, थर्माकोल से इको फ्रेंडली किलों को डिकोरेट करते हैं या फ़िर प्रकृति से जुड़ने के लिए समंदर के किनारे पहुंचकर रेत के टीलों में किलों को उकेरते हैं।
बताया जाता है कि जब रामजी वनवास से वापस अयोध्या लौटे तब प्रजा ने दीपक जलाकर अयोध्या नगरी को प्रकाश से नहलाकर रामराज्य की कल्पना की गयी तभी से दिपावली का पर्व मनाया जाने लगा। इस वर्ष सरयू तट पर अयोध्या को 5 लाख दीपक से प्रकाशमान कर लिम्का बुक में स्थान दिलाया गया, इससे हम लोग गणतांत्रिक भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था की पुर्ण बहाली की उम्मीद कर सकते हैं। त्योहारों को लेकर भी हमारे देश में अलग-अलग प्राचीन धारणाएं रची बसी हैं। खरीफ़ की फ़सलों की कटाई के बाद मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहारों का संबंध बहुजन शासको के दौर से कृषि व्यवस्था से जुड़ा है, इसी कड़ी में शिवाजी राजे, इनके किले जनता के मन में अभेद्य है।
9 साल के पृथ्वीराज ने कुछ ईंटों को रचकर किला बनाकर उसमें दीपक जलाया और कास्तकारों के लिए शिवस्वराज्य की कामना की। पृथ्वीराज कि अभिभावक मनीषा महाजन ने अपने बेटे की इस ललक को हमेशा बढ़ावा दिया। वह कहती हैं कि शिवाजी राजे से संबंधित महाराष्ट्र का इतिहास इतना प्रेरणादायी है कि उसके अनुकरण से पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कारक्षम बनकर सफ़लताओं का शिखर पार कर रही है।
लगातार हो रही बारिश से राज्य में कृषि संकट भयानक बन चुका है। खरीफ की फ़सलें बर्बाद हो चुकी हैं। हाल ही में कई जगहों पर ओले भी गिरे हैं जिससे बचीखुची फ़ल बागवानी भी खत्म हो गयी है। नतीजों के बाद सरकार गठन को लेकर ड्रामा जारी हैह मीडिया के एंकर स्टूडियोज में बैठकर डीबेट्स में किसी भी दल को आपस में मिलाकर मनचाही सरकार बनाने में लगे हैं। टीवी पर खेती से जुड़ी समस्याओं को फास्ट ट्रैक में दौडाया जा रहा है। आंकड़ों के फ़से पेंच से पूर्वावर्ती मंत्री उनकी लाटरी को लेकर परेशान हैं। पक्ष विपक्ष के सांसद निवेदन सौंपकर प्रशासन से खेती हानि के पंचनामों की मांग कर रहे हैं वहीं प्रभारी सरकार में शामिल भाजपा-शिवसेना इस पर मुंह मुंदे 50-50 का मैच खेल रही है जिससे नेटयूजर्स में गरिमापूर्ण शालीन शब्दों में छलकता स्क्रिन वाला आक्रोश चरम पर है। 9 नवंबर तक नई सरकार का गठन होना चाहिए जिसके लिए कितना कुछ हो रहा है इन सभी प्रतिकूल परस्थितियों के बावज़ूद राज्य की नई पीढ़ी स्वराज्य के प्रतीक शिवाजी राजे, इनके किलों के सांकेतिक निर्माण से सशक्त लोकतंत्र का पाठ पढ़ रही है।
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