जलगांव के सभी डैम लबालब, वाघुर डैम में भी हुआ 87 फीसदी जलभंडारण | New India Times

नरेंद्र इंगले, ब्यूरो चीफ, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:जलगांव के सभी डैम लबालब, वाघुर डैम में भी हुआ 87 फीसदी जलभंडारण | New India Times

नक्षत्र योग के सफ़ल कार्यान्वयन के चलते इस साल जलगांव जिले में मानसून की बारिश ने माकूल हाजरी लगायी है जिसके चलते लगभग सभी छोटे बडे डैम पूर्ण क्षमता से भर गए हैं। जिले के हतनूर और वाघुर इन दोनो डैम कि भंडारण क्षमता पुरी हो चुकि है। जलगांव लोकसभा क्षेत्र के चालिसगांव, पाचोरा, भडगांव, पारोला, एरंडोल, अमलनेर तहसीलों में लगातार मुफीद वर्षा जारी है। वहीं रावेर लोकसभा के चोपड़ा, यावल, रावेर, मुक्ताईनगर, भुसावल, जामनेर, बोदवड में भी बारीश के कारण फसलों की स्थिती अच्छी है। गिरना, बहुला, अंजनी डैम ओवरफ्लो हो चुके हैं। जामनेर का 12 टीएमसी क्षमता वाला सबसे बडा वाघुर डैम अब 87 प्रतिशत भर चुका है। इरीगेशन के अधिकारी श्री विनोद पाटील ने बताया कि वाघुर का जलस्तर 233 फीट तक पहुच चुका है। लाभ क्षेत्र में हो रही बारिश के कारण डैम पुर्ण रुप से भरने की आशा है। जामनेर के कांग, तोंडापुर, कमानी, तांडा यह लघु प्रकल्प ओवरफ्लो हो चुके हैं वहीं सभी छोटे बड़े तालाब भी पानी से भर चुके हैं। औरंगाबाद प्रादेशिक क्षेत्र के अजंटा पहाडियों पर हो रही बारिश से सोयगांव, शेंदुर्नी को पेयजल आपुर्ति करने वाला वेतालवाडी डैम भी लगभग भर चुका है।

जलगांव के सभी डैम लबालब, वाघुर डैम में भी हुआ 87 फीसदी जलभंडारण | New India Times

लगातार हो रही बारिश से फसलों में कपास की नैचरल ग्रोथ कुछ थम सी गयी है वहीं संक्रमित लष्करी इल्ली के हमले से मके की फसल बुरी तरह प्रभावित हुई है जिसके कारण किसानों में फसल की पैदावार में होने वाली संभावित कमी और कीटनाशकों के बढ़ते खर्च से मायूसी का आलम है। पर्याप्त बारिश से किसानों की उम्मीदे रबी की फसल पर टिकी है। नेताओं की चुनावी जुमलेबाजी और भ्रष्टाचार कि भेंट चढ़ चुकी परियोजनाओं से पीड़ित जामनेर तहसील के करीब 100 गांवों की पेयजल समस्या इस बारीश से फिल्हाल हल हो चुकी है। रही बात इंच इंच जमीन की सिंचाई वाले फर्जी सपने की तो वह बीते तीन दशकों से भले ही पूरा न हो सका हो लेकिन कुदरत ने इस साल अपने स्नेह से जामनेर की इंच इंच जमीन को सिंचित कर दिया है। वाघुर डैम के नहरों का काम अगर समय रहते पूरा हो जाता तो जलगांव लोकसभा के कई गांवों को सिंचाई के लिए इस से पहले कब का पानी मिल जाता जो नहीं हो सका है। प्रकृति का यह अपार प्रासंगिक स्नेह ही हो सकता है कि जिसके कारण सूखे की मार झेलते आ रहे किसानों ने नेताओं की जुमलेबाजी पर कभी भी दिल से असंतोष व्यक्त नहीं किया और प्रत्येक चुनाव में भावनात्मक प्रचार को तरजीह देकर अपनी आने वाली पीढियों के सुनहरे भविष्य को दरकिनार करते हुए नेताओं का भाग्य चमकाया। वैसे आने वाले कुछ महीनों में राज्य विधानसभा के आम चुनाव होने जा रहे हैं जिसमें सजग नागरिक होने के नाते लोकतंत्र के बलबूते यह आशा करना कोई बेईमानी नहीं होगी कि मतदाताओं में नेताओं को लेकर भावनात्मक जुड़ाव वाला ट्रेंड बदलेगा या फ़िर और मजबूती से उभरेगा, इस सवाल की गुंजाइश को बतौर समीक्षक नकारा नहीं जा सकता है।

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