कश्मीरी पंडित नादान फरिश्ता: कश्मीर, गुजरात, हिन्दुस्तान और शेष संसार के मुसलमान??? | New India Times

Edited by Arshad Aabdi, NIT:

लेखक: सैय्यद शहंशाह हैदर आब्दी

कश्मीरी पंडित नादान फरिश्ता: कश्मीर, गुजरात, हिन्दुस्तान और शेष संसार के मुसलमान??? | New India Times

एक तरफ सिर्फ झूठ और सारी सुविधाएं, दूसरी तरफ अन्याय, अत्याचार और उपेक्षा। स्वयं भू राष्ट्रवादियों का दोग़लापन और बे-ईमानी।

अजीब इत्तेफ़ाक़ है कल तक मुगलों, अंग्रेजों, कांग्रेस, बसपा, भाजपा आदि सत्ताधारियों की ग़ुलामी कर सत्ता का हर लाभ लेने वाले स्वयं राष्ट्रवादी बनकर, सच्चे बलिदानियों और स्वतन्त्रता संग्रामियों को ग़द्दार बताकर राष्ट्रवाद का तमग़ा बांट रहे हैं और धर्म के नाम पर नफरत फैलाकर, आम जनता की सुविधाएं छीनकर पूंजीपतियों को अर्पित कर उनकी ग़ुलामी कर रहे हैं। देश की आम जनता परेशान है, भूख से, बेरोज़गारी से, मंहगाई से, भ्रष्टाचार से और भेदभाव से। एक वर्ग मलाई छान रहा है।

“मुल्क लुट जायेगा, यह आसार नज़र आते हैं,

अब सियासत में सब मक्कार नज़र आते हैं।

मुल्क की आज़ादी में लुटा दी जानें हमने,

बेहयाओं को हम ही ग़द्दार नज़र आते हैं।”

आईये कुछ सच बताने की कोशिश करते हैं।

मुस्लिमों पर ज़ुल्म की जब भी बात करें तो कोई ना कोई शख़्स आकर आपसे यह सवाल ज़रूर करता है कि “कश्मीरी पंडितों” पर ज़ुल्म हुआ तब आप कहाँ थे? वह आपको आँकड़ा देगा कि लाखों काश्मीरी पंडित मारे गये और 15-20 लाख काश्मीरी पंडित विस्थापित हुए, फलाना जगह इतनी काश्मीरी लड़कियों के साथ मुसलमानों ने बलात्कार किया, ढमाका जगह मस्जिद से ऐलान किया गया कि “या तो घाटी छोड़ो या मुसलमान बन जाओ”।

यह सब संघ की साज़िश के कारण इतना बढ़ा चढ़ा कर बताया गया कि शेष भारत के बहुसंख्यक मुसलमानों से डर जाएं और उन लोगों को लगे कि मुसलमान जहाँ बहुसंख्यक होते हैं वहाँ हिन्दू और उनका धर्म ख़तरे में आ जाता है, हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए हिन्दूवादी सरकार ज़रूरी है इसलिए भाजपा को वोट दो।

काश्मीरी मुसलमानों के ख़िलाफ देश के बहुसंख्यकों में यही झूठ फैलाकर नफरत पैदा की गयी जिससे 45 दिन के बंधक होने के बावजूद भी उनसे किसी को हमदर्दी नहीं। उनपर अत्याचार जारी है वो भूखे हैं, ज़ुल्म अपनी इंतिहा पर है।

काश्मीर हिन्दुत्व नाम के बने काकटेल में एक बेहद कारगर और नशा करने वाला एक तत्व है, काश्मीर में आतंकवाद फैलते ही पूरे काश्मीरियों पर ज़ुल्म हुआ पर सबको छुपा दिया गया, काश्मीरी पंडितों पर भी वैसे ही ज़ुल्म हुआ पर क्या इस देश में केवल उन्हीं पर ज़ुल्म हुआ है जो वह सरकारी मेहमान बने बैठे हैं?

आईए उनकी तुलना गुजरात के दंगा पीड़ित मुसलमानों से करते हैं। यद्धपि दो घटनाओं के पीड़ितों की तुलना नहीं हो सकती पर एक जगह मुस्लिम बहुसंख्यक है तो दूसरी जगह हिन्दू, और वैसे ही पीड़ित।

सरकारी आँकड़े कहते हैं कि काश्मीर हिंसा में 1989 तक मात्र 219 ब्राह्मण कश्मीरी पंडित मारे गये जबकि 2002 गुजरात में 2000 से अधिक मुसलमान मारे गए। सोचिएगा कि कौन सा नरसंहार बड़ा था?

https://www.thehindu.com/news/ldquo219-Kashmiri-Pandits-killed-by-militants-since-1989rdquo/article16598851.ece

यही नहीं, सरकारी आँकड़ों में ही अब तक वहाँ कुल 399 काश्मीरी पंडित मारे गये, जबकि काश्मीर में आतंकवाद और सेना दोनों की चपेट में आकर मरने वाले मुसलमानों की संख्या लाखों में है।

यह जो 5 और 15 लाख काश्मीरी पंडितों के घाटी से भगाए जाने की बात आपको सुनाई जाती है ना वह भी झूठ है, बड़ी फिगर इसलिए बताई जाती है कि बहुसंख्यकों में गुस्सा बढ़े। जबकी सरकारी आँकडों के अनुसार कुल 24,202 काश्मीरी पंडित परिवार और मात्र 58,697 कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ी थी और ये अब तक पूरे भारत में मुफ्त भोजन, राज्य और केंद्र सरकार के कार्यालयों, स्कूलों और कॉलेजों में आरक्षण की मलाई चाट रहे हैं। इसकी चर्चा है कहीं?

और दूसरी तरफ गुजरात से 5 लाख मुस्लिम विस्थापित हुए और शुरू में शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हुए पर बाद में गुजरात की तत्कालीन मोदी सरकार ने सड़कों के किनारे बने शरणार्थी शिविरों को बंद करा दिया और लोगों से वह छत भी छीन लिया।

2019 तक ब्राह्मण कश्मीरी पंडित परिवारों के पुनर्वास के लिए रु 3190 करोड़ केन्द्र की सरकार ने बकायदा हर बजट में पैसे आवंटित करके उन पर खर्च किए।

दूसरी तरफ़ देखिए कि गुजरात 2002 के दंगों में संघी आतंकवादियों द्वारा जलाए गए गुजराती मुसलमान के प्रत्येक घर के लिए केवल ₹500 दिए गये।

कश्मीरी पंडित सरकारी मेहमान बनकर दक्षिणी दिल्ली में महंगे सरकारी आवासों में पिछले 30 साल से अधिक समय से बिना किराया दिए रह रहे हैं। ध्यान दीजिए कि वहाँ एक फ्लैट का किराया ₹25000 से अधिक है।

वहीं दूसरी तरफ गुजरात में मुसलमानों को किराए देने पर भी घर नहीं मिलता है, सोसाईटी या मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में प्रीमियम का भुगतान करने पर भी मुस्लिम नाम देख कर मना कर दिया जाता है।

जम्मू और काश्मीर माइग्रेंट्स अचल संपत्ति (संरक्षण, संकट की बिक्री का संरक्षण और संरक्षण) अधिनियम 1997 तथा जम्मू और काश्मीर माइग्रेंट्स (स्टे ऑफ प्रोसीडिंग्स) अधिनियम 1997, घाटी छोड़ कर आए और सरकारी मेहमान बने काश्मीरी पंडितों की छोड़ी ज़मीनों की सुरक्षा संपत्तियों को बिक्री की सुरक्षा और संरक्षण के लिए बनाए गये।

दूसरी तरफ़ देखिए गुजराती मुसलमानों को उनकी संपत्ति बेचने और अहमदाबाद की कुछ बस्तियों (ghetto) में रहने के लिए मजबूर करने के लिए ‘परेशान क्षेत्र अधिनियम’ का इस्तेमाल किया गया, जबकि हिंदू ऐसे मुसलमानों को घर नहीं बेच सकते।

1990 में कश्मीर घाटी से संघी राज्यपाल जगमोहन ने ब्राह्मण कश्मीरी पंडितों को वहाँ से सुरक्षित निकाला तो इनके एक सदस्य को HMT जैसी केंद्र सरकार की स्वामित्व वाली इकाइयों में सरकारी नौकरी मिल गई और अब वह सेवानिवृत्ति के बाद करदाताओं के पैसे को पेंशन के रूप में ले रहे हैं।

दूसरी तरफ़ देखिए कि 2002 के नरसंहार में प्रभावित गुजराती मुसलमानों में से किसी को भी सरकारी नौकरी नहीं मिली। कई सालों तक उनकी मदद करने के बजाय उन्हें फर्जी मुठभेड़ों में गिरफ्तार किया गया और मार दिया गया।

1990 के बाद से अधिकांश राज्य सरकारें ब्राह्मण कश्मीरी पंडित शरणार्थियों के लिए पेशेवर कॉलेजों में सीटें आरक्षित करती हैं।

वहीं दूसरी तरफ़ 2002 के नरसंहार के बाद स्कूलों में गुजराती मुसलमानों के साथ भेदभाव किया गया। उनके बच्चों को स्कूलों से निकाल दिया गया।

बाकी दंगों की विभित्सता, तलवार से पेट चीर कर बच्चा निकालना और उसे त्रिशूल में गोद कर जयश्री राम के नारे के साथ वीभत्स हत्या, बेस्ट बैकरी, एहसान जाफरी, नरोदा पाटिया नरसंहार पर बहुत कुछ सब आप जानते ही हैं।

काश्मीर समस्या के कारण पीड़ित सब हुए तो काश्मीरी पंडित भी हुए पर सरकारी दामाद सिर्फ़ वही बने बाकी लोगों को वहाँ मरने के लिए छोड़ ही नहीं दिया गया बल्कि मारा गया, कुनन पोशपोरा किया गया, घर में घुसकर जाँच के नाम पर वहाँ की माँ बहनों के साथ बद्तमीज़ी की गयी, यौन उत्पीड़न किया गया और विरोध करने पर पैलेट गन चलाए गये। काश्मीरी को जीप के बोनट पर बाँध कर घुमाया गया जैसी घटनाएँ ही वहाँ के कुछ, जी हां सिर्फ कुछ लोगों के भारत से नफरत की वजह है।

वजह है मज़हब के बिना पर दोग़लापन…..

जागो सच्चे हिन्दुस्तानियों जागो। दोग़ले, मक्कार, झूठे, दोमुंहे राष्ट्रवाद का चोला ओढ़े इन सांप और सपोलों के दुष्प्रचार को पहचान कर पूंजीपतियों के ग़ुलाम और कठपुतली इन देशद्रोहियों से दूर रहकर देश की मान मर्यादा बचाओ और देश को विश्व गुरु बनाओ।

सैयद शहनशाह हैदर आब्दी,
समाजवादी चिंतक – झांसी।


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