गणेश मौर्य, अंबेडकरनगर (यूपी), NIT:
जिले की नंबर वन नवीन सब्जी मंडी सिझौली मालीपुर रोड जहां भ्रष्टाचार बदस्तूर जारी है, इसे सिस्टम का दोष कहें या फिर इंसानी फितरत कि वो हर उस जगह पर अवैध कमाई का सोता ढूंढ ही लेता है। जिला मुख्यालय से कुछ ही दूर पर नवीन सब्जी मंडी भी इन्हीं में शुमार है। यहां या तो मंडी पर मंडी समिति का कोई नियंत्रण नहीं है या फिर उसके अफसर करप्शन के खुद ही पार्ट बन गये हैं। हमने जब इसके स्टिंग की सोची तो हमें खुद भी मामले के इतना बड़े होने की उम्मीद नहीं थी लेकिन जब हम कदाचार की तहों में पहुंचे तो लगा कि अरे ये तो काजल की कोठरी है। अब आप ही सोचिए भला इस कोठरी में भी कोई बेदाग होगा?
सब्जी मंडी में लाखों की काली कमाई हर महीने की जाती है। इसमें वही लोग शामिल हैं जिनके हाथ में व्यापारियों को सुविधा देने और मण्डी की व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी है। अवैध वसूली के हिस्सेदार मण्डी समिति, यूनियन के लोग, ऑफिसर्स हैं। मण्डी अव्यवस्था की शिकार हो गयी है और किसान बुरी तरह परेशान हो चुके हैं। सुबह लाठी-डण्डे से लैस होकर दो चौकीदार होमगार्ड गेट के पास अवैध वसूली करते हैं। वसूली होमगार्ड्स करते हैं मगर सबसे बड़ा मास्टरमाइंड सरदार अंदर बैठा रहता है, हिस्सा अंदर तक जाता है।
कवरेज के दौरान हमने देखा नवीन सब्जी मंडी गेट पर बने एक कमरे में दो लोग पहुंचे। इसके बाद गाड़ियों के साथ मौजूद लोग कमरे की खिड़की तक बारी-बारी से चढ़ावा चढ़ाते हैं। अगर भूल चूक से वह बिना दिए जाने लगता है तो उसे गालियां देकर बुलाया जाता है फिर वसूली की जाती? आम आदमी इसके बारे में कुछ नहीं जानता है लेकिन जो मण्डी के बारे में जानता है उसे पता है कि यही वह काली कमाई है जो दर्जनों लोगों को लाल कर रही है। गेट पास के बदले और आढ़तियों से वसूले गए रुपयों का राजस्व से कोई वास्ता नहीं होता है। यह चुनिंदा लोगों के घर जाती है। इसे वसूलने के लिए पूरा का पूरा सिस्टम लगा हुआ है। वैसे तो मण्डी में अवैध कमाई के तमाम जरिए हैं। वसूली की वीडियो स्टिंग करने के बाद मंडी सचिव से जब बात की गई तो उन्होंने कहा अगर वसूली का कोई प्रूफ होगा तो बैठे हुए जिम्मेदारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी और तत्काल सस्पेंड किया जाएगा। अब यह देखना है कि मंडी सचिव की भूमिका कितनी है? मण्डी में माल खरीदने के लिए दूर-दूर के व्यापारी आते हैं। माल खरीदने के बाद मण्डी से बाहर जाने के लिए उन्हें गेट पास के लिए बुलाया जाता है मगर न कोई रसीद और ना ही कोई पक्का बिल दिया जाता है और 30 से ₹40 वसूले जाते हैं इसके बदले कोई रसीद नहीं दी जाती है। यानी इन रुपयों का कोई रिकॉर्ड नहीं होता है। इन रुपयों को दिये बिना कोई गाड़ी बाहर नहीं निकल सकती है। जिसने कोशिश की उसकी लानत-मलामत भी तय है।
अवैध कमाई करने वाले गेट पास के बदले रुपये वसूलने के नायाब तरीके इजाद कर रखे हैं। इसके लिए बाकायदा कर्मचारी तैनात किये गए हैं। इनका मण्डी समिति से कोई लेना-देना नहीं है। वैसे तो गेट पास देने के लिए मण्डी समिति की ओर से कर्मचारी तैनात होते हैं लेकिन अवैध कमाई में लगे लोग इनके बदले अपने लोगों को बिठा देते हैं ताकि अपने काम को आसानी से अंजाम दे सकें। जब मण्डी से निकलने वाली गाडिय़ों की संख्या पर नजर डाली जाए तो पीक सीजन में डेली एक हजार गाडिय़ां यहां से बाहर निकलती हैं। दिन भर की वसूली कई हजार रुपये तक होती है। महीने में यह रकम लाख रुपये तक पहुंच जाती है। साल में कुल कमाई का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। वहीं टोकन के बदले होने वाली कमाई तो बेहिसाब है।
चौकीदार के कमरे से खेल
करोड़ों रुपये की अवैध कमाई के खेल का मैदान है चौकीदार का कमरा, यहीं पर कर्मचारी गेट पास की कवायद पूरी करते हैं। गेट पर मौजूद चौकीदार हर गाड़ी पर बारीकी से नजर रखते हैं।
काली कमाई से कई हो रहे हैं लाल
काली कमाई में हिस्सा काफी ऊपर तक पहुंचता है। इस पूरे खेल के पीछे मण्डी समिति, कर्मचारी यूनियन के लोग, ऑफिसर्स शामिल हैं। इस पूरी व्यवस्था को मैनेज करता है मण्डी समिति का एक इम्प्लॉई। इसकी कर्मचारी यूनियन में भी पकड़ है। यह लम्बे समय से इसी के रास्ते काली कमाई बाकी लोगों तक पहुंचती है। पूरा सिस्टम कितना स्ट्रॉन्ग है इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि सालों से यह खेल खुलेआम चल रहा है।
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts to your email.