पीयूष गोयल जी का गोल गोल बजट, सिर्फ सुर्ख़ियां ही सुर्खियां... वादे पूरे करने के इंतज़ाम नदारद | New India Times

Edited by Arshad Aabdi, NIT:

लेखक: सैय्यद शहंशाह हैदर आब्दी

पीयूष गोयल जी का गोल गोल बजट, सिर्फ सुर्ख़ियां ही सुर्खियां... वादे पूरे करने के इंतज़ाम नदारद | New India Times

तमिल कवि तिरुवल्लुवर लिखते हैं- ‘ इदिप्परई इल्लाथा इमारा मन्नान केदुप्पार इलानुअम केदुम (उस राजा पर नज़र रखें जो ऐसे लोगों पर भरोसा नहीं करता जो उससे खरी बात कहते हैं, उसका कोई दुश्मन न हो तो भी वह बर्बाद हो सकता है)। वर्तमान परिस्थितियों में मोदी जी पर यह बात खरी उतरती है।

पूर्ण बजट और अंतरिम बजट में अंतर:

पूर्ण बजट पूरे साल के लिए होता है लेकिन सिद्धांत: अंतरिम बजट चुनाव होने तक देश के ख़र्च के लिए लेखानुदान होता है। दरअसल भारत का वित्तीयवर्ष 31 मार्च को समाप्त होता है और संसद बजट में इसी अवधि के लिए राशि ख़र्च करने की अनुमति देती है। ऐसे में चुनाव होने तक ख़र्च के लिए अंतरिम बजट के जरिये धन आवंटित किया जाता है। लेकिन नियमों को ताक़ पर रखकर अंतरिम नहीं ये एक पूर्ण बजट पेश किया गया है, जो संविधान के नियमों के ख़िलाफ है, ऐसा वही सरकार करती है जिसे वापसी का भरोसा नहीं होता।

यह बजट नहीं ये प्रधानमंत्री मोदी का आगामी लोकसभा के चुनावी वादों के लिए भाषण है जिसे बाद में जुमला बताने में गुरेज़ नहीं किया जायेगा।

इसी को लेकर अब जगह जगह जुमलेबाज़ी शुरू होगी। आदतानुसार इसे भी ऐतिहासिक कहा जायेगा। अंधविश्वासी भक्त उछल उछल कर कहेंगे कि बजट में ये दिया है, वो दिया है लेकिन उसके लिए अगली सरकार भाजपा की ही होनी चाहिए। मगर अब चंद लोगों और EVM के सिवाए कोई भरोसा करने वाला नहीं है।

जिसके अब तक के हर वादे ढोंग और जुमलेबाज़ी साबित हुऐ हों उस पर फिर से विश्वास करना देश के साथ ज़्यादती और धोखा है। सरकार बीते पांच वर्षों से नौजवान और किसानों के साथ सभी वर्गों के साथ छल कर रही है। इसका एक ओर उदाहरण बजट में देखने को मिला। सरकार ने किसानों को हर मांह पांच सौ रुपए यानी प्रतिवर्ष 6 हजार देने की घोषणा कर किसानों का अपमान किया है।

बजट में दो शब्द शिक्षा और रोज़गार ग़ायब हैं।

आईये, अपने मेहनतकश वर्ग की बात करते हैं। फरवरी 2019 में 29 साल का एक मज़दूर असंगठित क्षेत्र में प्रवेश करता है। 31 साल तक हर महीने 100 रुपये जमा कराता है। सरकार भी 100 रुपये जमा कराती है। वर्ष 2050 में वह साठ साल का हो जाता है। तब उसे पीयूष गोयल की स्कीम के अनुसार हर महीने 3000 की पेंशन मिलेगी। उस समय रुपये की क़ीमत के हिसाब से ये चवन्नी के बराबर है या चवन्नी से कम, आप ख़ुद गुणाभाग करलें? इसकी जगह सरकार को बताना चाहिए था कि अटल पेंशन योजना से कितने मज़दूरों को कितनी पेंशन दी जा रही है? ताकि स्थिति का अंदाज़ा हो जाता। असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों को साठ साल के होने पर 3000 की पेंशन देने की योजना और घोषणा हेडलाइन की लूट से अधिक नहीं हैं। सरकार यही बता देती कि उसके राज में कितने मज़दूरों को न्यूतनम मज़दूरी सुनिश्चित कराई गई है। असंगठित क्षेत्र में 40 करोड़ मेहनतकश काम करते हैं और योजना 10 करोड़ के लिये बनी है।

2015 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत हर खेत को पानी योजना लांच हुई थी। देश के 96 ज़िलों में जहां 30 प्रतिशत से कम सिंचित भूमि थी। 2018-19 के बजट में इस योजना के लिए 2600 करोड़ दिया गया मगर खर्च हुआ 2181 करोड़। एक ही साल में हर खेत को पानी योजना का बजट 1700 करोड़ कम कर दिया गया। 2019-20 के लिए मात्र 903 करोड़ दिए गए हैं। क्या इस योजना के लक्ष्य पूरे हो गए?

गर्भवती महिला और बच्चे के लिए प्रधानमंत्री मातृत्व योजना लांच हुई थी। 2018-19 में 2400 करोड़ दिया गया मगर ख़र्च हुआ 1200 करोड़ ही, क्यों सरकार ने इस योजना पर ख़र्च नहीं किए? प्रधानमंत्री कौशल योजना का बजट भी 400 करोड़ कम हो गया है। इसके तहत बनाए जाने वाले या चलाए जाने वाले मल्टी स्किल ट्रेनिंग संस्थानों के लिए कोई प्रावधान नहीं है। 2018-19 में 3400 करोड़ था। 2019-20 के लिए 400 करोड़ कम है। साइंस एंड टेक्नालजी मंत्रालय में रिसर्च का बजट 609 करोड़ से कम हो कर 493 करोड़ हो गया है। आंगनवाड़ी और आशा वर्कर को 3000 का मानदेय मिलता है। 50 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. यानी 4500 मिलेगा. न्यूनतम मज़दूरी से काफी कम।

इंकम टैक्स पर सरचार्ज 3 प्रतिशत से बढ़कर 4 प्रतिशत हो गया है। नौकरी देने वाला सेक्टर है टेक्सटाइल, कभी 6000 करोड़ के पैकेज का खूब हंगामा हुआ था, हेडलाइन बनी थी। अब इसके बजट में 1300 करोड़ की कमी हो गई है। लगता है कि 6000 करोड़ के पैकेज से 10 लाख रोज़गार पैदा करने का दावा फुस्स हो गया। आप इस बारे में इंटरनेट सर्च कर लें, बेरोज़गारों को कुछ नहीं मिला। उन्हें प्रदर्शन करने की छूट है। टीवी देखने की जिस पर उनकी लड़ाई का कवरेज कभी नहीं आएगा।

भारत सरकार के पास नौकरी का अपना डेटा नहीं है। जो अपना है उस पर शक है। मेकैंजी के डेटा पर भरोसा है। ओला और उबर ने कितनी नौकरी दी ये पता है मगर उनके विभागों से जुड़ी परियोजनाओं ने कितनी नौकरी दी ये पता नहीं है।

अब आते हैं 2 हेक्टेयर से कम जोत के मालिक किसानों पर। उन्हें हर महीने 500 रुपये मिलेंगे. वही बता सकते हैं कि सरकार से 500 रुपया पा कर उन्होंने कौन सा धन पा लिया और इतिहास बना लिया। सालाना 5 लाख तक आमदनी वालों को हर महीने 1000 से अधिक की बचत हो गई है। उन्हें न तो टैक्स देना होगा और न फार्म भरना होगा। बाकी 4 करोड़ पर टैक्स देने की जवाबदेही होगी, उन्हें भी कुछ-कुछ लाभ मिला है या नहीं? वो अपने चार्टर्ड अकाउंटेंट से पूछें कि कितना लाभ हुआ है और कितना नहीं।

वैसे संभवतय: बीजेपी एकमात्र सच्ची,राष्ट्रीय प्रेम वाली पार्टी है, जिसने दिल्ली में लगभग 1000 करोड़ का दफ़्तर चाय बेचकर बनाया है,बाकी सब महाभ्रष्ट हैं।

सरकार एक तरफ कहती है कि टैक्स देने वालो की कमी है इसलिए देश कि महत्त्वपूर्ण परियोजनाएं ठप्प पड़ी है, देश के विकास के नाम पर पेट्रोल, डीजल पर भारी टैक्स लगा कर इस कमी को पूरा करने की बात कही गई।

दूसरी तरफ आज टैक्स स्लैब को 2.5 लाख से 5 लाख कर दिया गया यानी करदाताओं में जो कमी पहले से थी अब वो और होगी…क्या अब ख़ज़ाने में कमी नहीं है?

कांग्रेस ने जब किसानों का ऋण माफ किया तो कहा गया कि देश का पैसा लुटाया जा रहा है, आज किसान को 6000/- हर साल देने की बात कहीं गई, वित्त मंत्री के अनुसार सरकारी खजाने पर 75 हजार करोड़ का बोझ हर साल पड़ेगा, क्या अब ये फिजूल खर्च नहीं है??

हर बुजुर्ग को 3000/- महीने का पेंशन (गरीब बुजुर्ग) जिसकी अनुमानित लगात हर साल 80 हज़ार करोड़ है वो भी भारत के ख़ज़ाने से दिया जाएगा।

युवाओं को रोज़गार देने के नाम पर पैसे की कमी बताने वाली सरकार अब ये पैसा कहां से आ रहा है?

बीते 45 साल में बेरोज़गारी अपने उच्चतम स्तर पर है, केंद्र सरकार में ही केवल 10 लाख से अधिक सरकारी पद रिक्त है उन पर भर्ती क्यों नहीं की जा रही? यू मुफ्त में लुटाना जायज़ है या लोगों को रोज़गार देना??

जिस देश में शौहर बीवी की लाश को कंधे पर ढो कर कई किलो मीटर पैदल चलने को मजबूर है क्योंकि एम्बुलेंस की कमी है। जिस देश में 120 के लगभग बच्चे बेमौत मारे गए क्योंकि हॉस्पिटल के पास ऑक्सीज़न ख़रीदने का पैसा नहीं है। जिस देश में औसतन 10 छात्र रोज़ आत्महत्या कर रहे है क्योंकि रोज़गार नहीं है। वहां अब चुनावी साल में ऐसे धन वर्षा??

धन्य हो नमो, उनकी सरकार और उनके अंधेभक्त जो भारत के मत दाताओं को अब भी नादान बच्चा समझ रहे हैं, जिसे झुनझुना या लोलीपोप देकर बहलाया जा सकता है।

तमिल ऋषि-कवि तिरुवल्लुवर की पंक्तियों, “इयात्तरालुम, एत्तालुम, कत्तालुम, कट्टा; वकुथालम वल्लाथ अरासु – जिसका अर्थ है- पहले धन बढ़ाने लायक़ बनो, इसे संभालो और इसकी रक्षा करो; और फिर बेहतर है इसे बांटो और अपनी अपनी बेहतर पहचान बनाओ।” से ही अपनी बात समाप्त करता हूं। जयहिंद।


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