वी.के.त्रिवेदी, लखनऊ (यूपी), NIT;
पुरानी कहावत हैं कि राजनीति में रिश्तों एवं बड़प्पन का कोई महत्व नहीं होता है। राजनैतिक रास्ते के सफर में रूकावट या रोड़ा डालने वाले को हटाकर लक्ष्य की ओर बढ़ जाना एक राजनैतिक सिद्धांत सा हो गया है। समाजवादी पार्टी में चुनाव पूर्व शुरू हुई इस महाभारत की आग आज तक बुझ नहीं पाई है और अंदर ही अंदर सुलग रही है और शिवपाल सिंह यूथ ब्रिगेड उनके राजनैतिक वजूद को बचाये हुये थी। आज तक समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव बड़े भाई के साथ लक्ष्मण की भूमिका निभा रहे हैं और बड़े भाई दोनों के आराध्य पूज्य बने हुये हैं। सरकार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले शिवपाल यादव को उनके सगे भतीजे अखिलेश यादव ने अक्टूबर 2016 में निकाल दिया था। उसके बाद नेता जी यानी मुलायम सिंह यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाकर अखिलेश यादव खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गये थे और प्रदेश अध्यक्ष पद भी बदल दिया गया था और गायत्री प्रजाति भी मंत्रिमंडल से निकाल दिये गये थे। इस सबके बावजूद मोदी योगी की लहर के बावजूद शिवपाल सिंह विधायक चुनकर वापस विधानसभा लौट आये जबकि अधिकांश प्रत्याशी चुनाव हार गये थे। यह सही है कि शिवपाल सिंह की कार्यशैली अखिलेश को पसंद नहीं है यही कारण था कि दो साल बाद भी दिल नहीं मिल पाये। ऐन चुनाव के समय पार्टी में विद्रोह हो गया, पार्टी टूटकर बिखर गयी इसके बावजूद अखिलेश जी ने अपनी दिशा नहीं बदली और पार्टी में होते हुये भी बैठकों में उन्हें खास तव्वजो कौन कहे बुलाया तक नहीं गया। आखिरकार शिवपाल सिंह का दिली गुब्बार जो पिछले दो सालों से धमकी एवं अफवाहों के रूप में चल रहा था परसों खुलकर सामने आ गया है। समाजवादी पार्टी में हाशिये पर चल रहे वरिष्ठ नेता माने जाने वाले शिवपाल सिंह यादव ने एक बार फिर लोकसभा चुनाव के ऐन वक्त पर सेक्युलर मोर्चे के गठन का ऐलान करके विद्रोह की शुरुआत तो कर दी है लेकिन पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया है। उन्होंने इस नवगठित मोर्चे को समाजवादी पार्टी के उपेक्षित लोगों का एक प्लेटफार्म बनाया है तथा दावा किया है कि यह सेक्युलर मोर्चा प्रदेश में मजबूत विकल्प बनकर सामने आयेगा। गठन के बाद उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी लम्बे संघर्ष के बाद बनी है और लगातार उनकी उपेक्षा की जा रही है। इसके बावजूद उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी को टूटने से बचाने के लिये मोर्चे का गठन किया गया है। चाचा भतीजे के बीच छिड़ी सियासी जंग पैतरे बदल रही है इसके बावजूद अखिलेश यादव को जैसे इस पैतरेबाजी की जरा भी परवाह नहीं है।उन्होंने कहा कि ज्यों ज्यों चुनाव नजदीक आयेगे त्यों त्यों तमाम चींजे देखने को मिलेंगी, इसके बावजूद साइकिल दौड़ती रहेगी। सपा प्रमुख अखिलेश यादव चाचा की राजनैतिक ताकत से भली भांति परिचित हैं क्योंकि पिछले दो वर्षों से ताकत आजमाइश चल रही है।दोनों अपने अलग अलग राजनैतिक किले बनाकर तैयार कर चुके हैं और यह जानते भी है कि एक न एक दिन अलग होना ही पड़ेगा।
सच लिखने की सजा हो सकती है जेल
सच्चाई के रास्ते में कांटे बहुत हैं और यह बिल्कुल सही बात है परंतु सच्चाई को डगमगाना नहीं चाहिए। पत्रकार अगर एकजुट हो जाएं तब पूरे हिंदुस्तान की तस्वीर बदल जाएगी और पुनः सोने की चिड़िया बन जाएगा परंतु ऐसा धरातल पर होना नामुमकिन लग रहा है। एक पत्रकार ही ऐसा व्यक्ति होता है जो अपनी जान को जोखिम में डालकर जगह-जगह पर कवरेज करता है और शासन और प्रशासन को आइना दिखाता है और सच्ची खबरों पर जांच शुरू हो जाती है और उसके बाद जांच में केवल खानापूर्ति बहुत कुछ बयां करती है। आज की जनता बहुत ही समझदार है और जनता को बहुत कुछ समझ में आ भी रहा है चाहे भले ही मैं न लिखूं। लगभग सभी अधिकारी जब अपने ऑफिस में बैठे रहते हैं तब उनको कैसे पता होगा कि कहां पर भ्रष्टाचार हो रहा है? केवल माध्यम है पत्रकार की लेखनी जिससे पता चलता है कि कहां पर क्या हो रहा है? जिस जांच में किसी का अगर भला हो रहा है ,किसी को धन अर्जित हो रहा है तब उस पत्रकार के ऊपर झूठी FIR कराई जाएगी ताकि दोबारा लिखने की हिम्मत न करें परंतु सोशल मीडिया ने इतना क्रेज बढ़ा दिया है कि खबरें इतनी ज्यादा वायरल होने लगी हैं कि मजबूरी में उस पर कार्रवाई करना ही करना है। जिन खबरों पर कार्यवाही होती तब किसी को तो दिक्कत होगी ही और तब वह दिक्कत केवल और केवल जेल हो सकती है। पत्रकार का धर्म होता है देश में व्याप्त कुरीतियों का आइना दिखाना इसलिए पत्रकार धमकियों से डरता नहीं है चाहे FIR कराओ,जेल भेजो या फिर रोड एक्सीडेंट में मार दो। आज अक्सर देखा जा रहा है कि लोग सोशल मीडिया की जगह जगह बैठकर बुराई करते हैं और खबरें भी सोशल मीडिया के लोगों से ही मांगते हैं। कुछ चुनिंदा लोगों ने खाई पैदा करने का काम किया है कि कैसे पत्रकारों की एकता को भंग किया जाए ?कैसे एक दूसरे के बारे में जानकारी ली जाए ? जानकारी देने में कोई एतराज नहीं लेकिन एक दूसरे की बुराई करना महापाप है ।केवल एक कप चाय पत्रकार को पिला दी जाती और पत्रकार इतने में ही खुश हो जाता है।यह बहुत ही बड़ा दुर्भाग्य एक समय था जब अधिकारी या नेता पत्रकार को खुद आमंत्रित करता था परन्तु आज के दौर में पत्रकारिता का लोग ठेका लेने लगे हैं। विभीषण तब बना जाता है जब कोई रावण हो।
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