आधुनिक युवा पीढ़ी और “रक्षा बन्धन” पर्व का महत्व | New India Times

अरशद आब्दी, ब्यूरो चीफ, झांसी, NIT; ​आधुनिक युवा पीढ़ी और “रक्षा बन्धन” पर्व का महत्व | New India Times

लेखक: सैय्यद शहंशाह हैदर आब्दी 

हम सभी सामाजिक प्राणी हैं, जो एक-दूसरे से जुड़े रहने के लिए अपनी मर्ज़ी से रिश्तों के बंधन में बंधते हैं। ये बंधन हमारी आज़ादी का हनन करने वाले बंधन नहीं अपितु प्यार और स्नेह के बंधन होते हैं, जिन्हें हम जिंदादिली से जीते और स्वीकारते हैं। ​आधुनिक युवा पीढ़ी और “रक्षा बन्धन” पर्व का महत्व | New India Timesरक्षाबंधन, सात्विक प्रेम का त्योहार है। तीन नदियों के संगम की तरह यह दिन तीन उत्सवों का दिन है। श्रावणी पूर्णिमा, नारियल पूर्णिमा और रक्षाबंधन। श्रावण व श्रावक के बंधन का दिन है रक्षाबंधन। सावन के महीने में मनुष्य पावन होता है। उसकी आत्मा ही उसका भाई है और उसकी वृत्तियां ही उसकी बहन हैं। प्रेम वासना के रूप में प्रदर्शित हो तो इंसान को रावण और प्रेम प्रार्थना के रूप में प्रदर्शित होने पर इंसान को राम बना देता है।

प्रत्येक रूप में पुरुष नारी का रक्षक है। प्रत्येक पुरुष अबला के आत्मसम्मान की रक्षा के साथ-साथ अन्य जीवों की भी रक्षा करें। राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है। आज यह त्योहार हमारी संस्कृति की पहचान है और हम हिन्दुस्तानियों को इस त्योहार पर गर्व है। ​आधुनिक युवा पीढ़ी और “रक्षा बन्धन” पर्व का महत्व | New India Timesवैसे तो यह त्योहार, मुख्यत: हिन्दुओं में प्रचलित है पर इसे हिन्दुस्तान के सभी धर्मों के लोग समान उत्साह और भाव से मनाते हैं। पूरे हिन्दुस्तान में इस दिन का माहौल देखने लायक होता है और हो भी क्यूं ना, यही तो एक ऐसा ख़ास दिन है जो भाई-बहनों के लिए बना है।  

इस तरह यह त्योहार साम्प्रदायिक सौहार्द और आपसी विश्वास का भी प्रतीक बना। यह प्रथा आज भी जीवित है। विभिन्न धर्मों के मानने वाले अपनी मुंह बोली बहनों से राखी बंधवा कर अपने वचन और धर्म दोनों का पालन करते हैं। यह सिर्फ हमारे अज़ीम मुल्क हिन्दुस्तान में ही संभव है।   
भाई-बहन का रिश्ता अद्भुत स्नेह व आकर्षण का प्रतीक है। बचपन में पिता सुरक्षा करता है, जवानी में पति और बुढ़ापे में बेटा। परंतु भाई-एक ऐसा रिश्ता है, जो बचपन से लेकर बुढ़ापे तक बहनों को हिफाज़त का एहसास कराता है।​
आधुनिक युवा पीढ़ी और “रक्षा बन्धन” पर्व का महत्व | New India Times

“वर्तमान युग में रक्षा बन्धन की प्रासंगिकता !” 

रक्षाबंधन के धार्मिक, सामाजिक और साम्प्रदायिक महत्त्व को स्वीकार करते हुए, वर्तमान युग में रक्षाबंधन की प्रासंगिकता पर चर्चा करना आवश्यक है।
आधुनिक तकनीकी युग और सूचना सम्प्रेषण युग का प्रभाव राखी जैसे भावनात्मक रूप से रिश्तों को जोड़ने वाले त्यौहार पर भी पड़ा I रोज़गार ने भाई और बहन को शहर और देश से दूर कर दिया I आधुनिक तरक्क़ी पसंद पीढ़ी की जीवन शैली और प्राथमिकताएं भी बदल गईं I उनके लिए रिश्तों को मज़बूत करने वाला यह महत्त्वपूर्ण पर्व महज़ औपचारिकता भर रह गया I ई- कोमर्स ने ऑनलाइन राखी भेजने और एनीमेटेड सी.डी. के द्वारा भाई को टीका करने और राखी बांधने का चलचित्र भेजकर अपनी भावनाओं का इज़हार करने लगीं I व्हाट्सऐप, फेसबुक और अन्य माध्यमों से वीडियो कालिंग के ज़रिये राखी बांधी जाने लगीं, शुभकामनाएं दी जाने लगींI नतीजा भावनाओं का मशीनीकरण हो गयाI एक ओर “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” का सरकारी नारा, दूसरी उन्हीं बच्चियों की गर्भ में ह्त्या या पैदा होने के बाद बचपन में ही उनसे बलात्कार और ह्त्या।

 आज आदमी ने पक्षी की तरह आकाश में उड़ना सीख लिया है, मछली की तरह पानी में तैरना सीख लिया है, लेकिन ज़मीन पर इंसान की तरह चलना नहीं सीखा है। वह दूसरों की क्रिया की नकल बड़ी अच्छी तरह करता है किंतु स्वयं के असली रूप में आना भूल गया है। 

भारत में जहां बहनों के लिए इस विशेष पर्व को मनाया जाता है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भाई की बहनों को गर्भ में ही मार देते हैं। यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि जिस देश में कन्या-पूजन का विधान शास्त्रों में है, वहीं कन्या-भ्रूण हत्या के मामले सामने आते हैं। यह त्योहार हमें यह भी याद दिलाता है कि बहनें हमारे जीवन में कितना महत्व रखती हैं। 

अगर हमने कन्या-भ्रूण हत्या पर जल्द ही काबू नहीं पाया तो मुमकिन है देश में लिंगानुपात और तेज़ी से घटेगा और एक दिन सामाजिक संतुलन भी ऐसा बिगड़ेगा कि संभालना मुश्किल हो जायेगा। 

आज जब रिश्तों की मर्यादाएं तार-तार हो रही हैं। आज की तथाकथित तरक़्क़ी पसन्द युवा पीढी भाई-बहन के रिश्ते बनाने से ज़्यादा दोस्त बनने-बनाने में रुचि ले रही हैं। भाई-बहन के रिश्ते बनाने वालों को रूढिवादी समझा जाता है। आधुनिक लड़कियां भी भाई-बहन के रिश्ते बनाने वालों का उपहास उड़ाने में पीछे नहीं रहती हैं। रोज़गार के कारण से घर से बाहर रहने वाली संतानों पर से माता पिता और परिवार का भय और लिहाज़ समाप्त हो रहा है। कोवर्कर्स में आपसी अंडरस्टेन्डिंग बढ़ाने और ख़ुद को तरक्क़ीपसंद दिखाने के नाम पर वीकेंड में देर रात तक होने वाली पार्टियों ने भारतीय संस्कृति, रीतिरवाजों और परम्पराओं पर बड़ा हमला किया है। युवाओं में नशे का बढ़ता चलन और लड़कियों के जिस्म पर फैशन के नाम पर कम होते कपड़े, हनीमून पर गए नवविवाहित जोड़े के सोशलमीडिया पर ख़ुद अपलोड किये बोल्ड फ़ोटोज़ आधुनिकता के नाम पर अश्लीलता की कहानी खुद कह रहे हैं। बुज़ुर्ग तमाशबीन बन गए हैं, अगर वो टोकते हैं तो उन्हें अपमान या अनदेखी का सामना करना पड़ सकता है। 

“लिविंग इन रिलेशनशिप” का चलन बढ़ रहा है। परिणाम स्वरूप काम वासना सिर चढ़कर बोल रही है। सामान्यतय: महिलाओं और विशेषकर युवतियों के प्रति अत्याचार बढने का एक कारण यह भी है। इसके लिये कुछ हद तक वे भी ज़िम्मेदार हैं।

आज की इस तथाकथित तरक़्क़ी पसन्द युवा पीढी को भाई-बहन के रिश्ते और रक्षा बन्धन का महत्व समझाने के लिये इस पर्व को उत्साह पूर्वक हर्षोल्लास के साथ मनाना बहुत ज़रूरी है। “वर्तमान युग में रक्षा बन्धन की प्रासंगिकता और ज़्यादा बढ़ी है।” 

हमारा तो मानना है कि सरकार को इस प्यार, मोहब्बत, साम्प्रादायिक सौहार्द, आपसी विश्वास और भाईचारे के महत्वपूर्ण त्योहार को ”राष्ट्रीय पर्व” घोषित कर इसे मनाना अनिवार्य कर देना चाहिऐ। इससे सामान्यतय: महिलाओं और विशेषकर युवतियों के प्रति अत्याचार कम करने भी मदद मिलेगी।

हम, रक्षाबंधन पर्व पर राग द्वेष से ऊपर उठकर मैत्री का विकास करें। त्याग, संयम, प्रेम, मैत्री और अहिंसा, साम्प्रदायिक सौहार्द और आपसी विश्वास को अपने जीवन में ढालने का संकल्प लें। तभी देश और समाज में शांति और उन्नति संभव है। 

ख़ुदावन्देआलम से इस दुआ के साथ, कि हमारी बहनें स्वस्थ, समृध्द, सुदृढ़ और सुरक्षित रहें। आधुनिक युवा पीढी भाई-बहन के इस पवित्र बन्धन के महत्व को समझें और इसका मान-सम्मान रखें। 
सभी देशवासियों, भाईयों और बहनों विशेष कर मुंह बोले भाईयों और बहनों को भी रक्षा बन्धन की हार्दिक शुभकामनाऐं। तहे-दिल से मुबारकबाद !!

सैय्यद शहंशाह हैदर आब्दी,समाजवादी चिंतक अभियंता (बाह्य अभियांत्रिकी सेवाएं)


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