राजस्थान सिविल सेवा के रिजल्ट में रूबी अंसार का नाम आने के बाद राजस्थान मुस्लिम समाज में फिर से जगी उम्मीद की किरण | New India Times

अशफाक कायमखानी, जयपुर, NIT; ​​राजस्थान सिविल सेवा के रिजल्ट में रूबी अंसार का नाम आने के बाद राजस्थान मुस्लिम समाज में फिर से जगी उम्मीद की किरण | New India Timesराजस्थान सीवील सेवा के कल आये रजल्ट में चौथे नम्बर पर सवाईमाधोपुर की रुबी अंसार के आने के बाद समुदाय में एक नये जोश का संचार हुआ है। हालांकि राजस्थान के मुस्लिम समुदाय की सरकारी सेवा में भागीदारी नई सदी शुरु होने के बाद से लेकर अब तक पहले के मुकाबले दिन ब दिन निचे की तरफ तेजी के साथ लूढकती जा रही है। जबकि इसके विपरीत समुदाय को पहले के मुकाबले शैक्षणिक व आर्थिक रुप से पाॅजीटीव मजबूती मिली है।

राजस्थान के मुस्लिम समुदाय में पिछले 16-17 साल में पहले के मुकाबले आर्थिक हालात में तेजी के साथ पाॅजीटीव इजाफा होने के बावजूद उनका राजस्थान सिविल सेवा परीक्षा के रिजल्ट में उनके पहले के मुकाबले काफी गिरावट आती देखी गई है।​राजस्थान सिविल सेवा के रिजल्ट में रूबी अंसार का नाम आने के बाद राजस्थान मुस्लिम समाज में फिर से जगी उम्मीद की किरण | New India Timesमुस्लिम समुदाय के हिसाब से पिछले 15-16 सालों के गुजरे समय पर नजर डालें तो 2005-06 में अबू बक्र व अबू सुफियान चौहान, 2011 में सलीम खान व उनकी पत्नी सना सिद्दिकी एवं अंजुम ताहिर शमा के चयनीत होने से पहले 2010 में हाकम खान मेव व नसीम खान फिर 2014 में शिराज अली जैदी RAS केडर के चयनीत होने के अलावा 2000-2001 में नाजिम अली खान के बाद 2011 में शाहना खानम व 2014 में नूर मोहम्मद राठौड़ परीक्षा के मार्फत केवल तीन RPS नई सदी में चयनीत हो पाये हैं। इसके साथ ही मरहूम अजरा परवीन पहले RPS व फिर 2001 में RAS के लिये चयनीत हो पाई थीं, लेकिन दो साल पहले अजरा परवीन की एक ऐक्सिडेंट मे इंतेकाल होने से स्टेट का एक होनहार अधिकारी चला गया।

 कुल मिलाकर यह है कि जब जब भी राजस्थान सिविल सेवा भर्ती परीक्षा होती है तो उसमें काफी कम संख्या में मुस्लिम समुदाय के कैंडिडेट्स वो भी निराशा के भाव के पनपने के चलते भाग्य अजमाते नजर आ रहे हैं। जबकि उनको होने वाली इस त्रिस्तरीय हर परीक्षा में हर स्तर पर कठिन परिश्रम करके कामयाबी का परचम लहराने का टारगेट रखना चाहिये। जिस कसौटी पर वो कहाँ ठहर पाते है यह तो वो जाने लेकिन उनको हर हालत में हौसला तो बनाकर हालात साजगार बनाने के प्रयत्न तो करने ही होंगे। दूसरी तरफ मुस्लिम बच्चों के लिये उक्त तरह की सभी मुकाबलाती परीक्षाओं की तैयारी के लिये शायद 1985-2000 तक जयपुर के मोती डुंगरी रोड़ पर नानाजी की हवेली में रिहायशी तौर पर कोचिंग का शानदार इंतेजाम हुआ करता था। जिस कोचिंग से तत्कालीन समय में हमारे लिये अच्छे व उत्साह वर्धक परीणाम निकल कर आ रहे थे। उसके बाद वो सिस्टम पता नहीं क्यों धाराशाई हो गया। आज उस तरह के फिर से सिस्टम डवलप होने की समुदाय में सख्त जरुरत महसूस की जाने लगी है।


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