नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:

मणिपुर में मैतेई समाज की नस्लीय हिंसा के शिकार बन रहे कुकी जनजाती की पीड़ा को विश्वगुरु के सामने रखने के लिए लगातार आंदोलनों का रास्ता अपनाने वाले महाराष्ट्र के आदिवासियों का संघर्ष अब फर्जी हटाओ और अनूसूचित जनजाती का आरक्षण बचाओ अभियान मे तब्दील हो गया है। भारत के संविधान ने उन्हीं जातियों को सामाजिक आरक्षण दिया है जो वर्णव्यवस्था के अनुसार शुद्र और इसी व्यवस्था के बाहर अवर्ण हैं। बीते पांच महीनों से महाराष्ट्र के हर जिले और तहसील में आदिवासी समुदाय विभिन्न संगठनों के माध्यम से खुद के सच्चे आदिवासी होने की लड़ाई लड़ रहा है। संयुक्त आदिवासी आरक्षण हक कृति समिती की ओर से समुदाय की मांगों को लेकर जलगांव कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन किया गया। धनगरों को ST में कतई शामिल नहीं करें, फर्जी आदिवासी प्रमाणपत्र के सहारे सरकारी नौकरी में घुसपैठ करने वालों पर शीर्ष अदालत के आदेश के तहत तत्काल प्रभाव से फौजदारी मामले दर्ज किए जाएं। फॉरेस्ट विभाग को शक्ति प्रदान करने वाला सेक्शन 35 खारिज करें।

मणिपुर हिंसा के विरोध में आयोजित आंदोलनों में पुलिस की ओर से आरोपी बनाए गए आदिवासियों के खिलाफ के सारे मामले वापस लिए जाएं।समान नागरी संहिता की संकल्पना रद्द हो। कवि बहिणाबाई चौधरी विश्वविद्यालय में भगवान बिरसा मुंडा के नाम से अध्ययन केंद्र शुरू किया जाए। जिले के हर तहसील में आदिवासी विकास अधिकारी का पद मंजूर कर दफ़्तर खोला जाना चाहिए। आदिवासी सबलीकरण योजना के तहत प्रत्येक आदिवासी परिवार को पांच एकड़ कृषि भूमि मिलनी चाहिए इत्यादि समेत कुल 16 मांगों से प्रशासन को अवगत कराया गया। इस प्रदर्शन मे आदिवासी कृति समिति के सभी कार्यकर्ता बड़ी संख्या में शामिल हुए। विदित हो कि महाराष्ट्र में पूर्ववर्ती देवेंद्र फडणवीस सरकार के कार्यकाल में भाजपा ने मराठा, धनगर, मुस्लिम, लिंगायत और ओबीसी समुदाय के सामाजिक आरक्षण के मामलों को अपनी राजनीति के लिए इस्तेमाल किया। आज भी ओबीसी का राजकीय आरक्षण कोर्ट मे लंबित है जिसके चलते राज्य में डेढ़ साल से निकायों के चुनाव नहीं कराए गए हैं।