लगातार हो रही बारिश से जामनेर हुआ पानी-पानी, जल भराव से लोग हलकान | New India Times

नरेंद्र इंगले, ब्यूरो चीफ, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:लगातार हो रही बारिश से जामनेर हुआ पानी-पानी, जल भराव से लोग हलकान | New India Times

बीते पांच सालों से महाराष्ट्र का सबसे सुंदर शहर बनने की चाह रखने वाले जामनेर शहर में लगातार हो रही बारीश से बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं। गनीमत रही कि आज 28 अक्तूबर को आसमान में सुरज खिल खिलाकर हंस पड़ा और बारिश रुक गयी और जामनेर डूबते डूबते बच गया वरना कोल्हापुर की तरह जामनेर में वाटरबोट चलती और नेताओं को एडवेंचर पिकनिक मोड में जाने की नौबत आ जाती। एक बात साबित हो गयी है कि कल तक हलके बारिश से जलभराव के कारण कीचड़ और सड़कों पर बने गड्ढों से सुंदर “बन” की तरह दलदली प्रस्थिति में सपनों के बोझ को गुरबत की तरह झेल रहा यह शहर पूरी तरह भगवान भरोसे है। मुसलाधार वर्षा के चलते नालों की जलवहन क्षमता शून्य हो गयी जिसके बाद शहर के श्रीराम नगर, बिसमिल्ला नगर, इंदीरा आवास, दत्त चैतन्य नगर, पाचोरा तथा वाकी सड़क से सटे आवासीय इलाकों में जमीनी सतह से दो फिट ऊपर तक पानी भर गया और लोगों को सांप बिच्छुओं जैसे जानवरों के डर से पूरी रात जागकर गुजारना पड़ी। मंदी के चलते दिवाली की खुशियों की जगह पसरी मायूसी में परेशान लोगों के दरवाजों पर बाढ़ जैसे स्थिति ने दस्तक दी। शुक्र है जलभराव में किसी के हताहत होने की कोई खबर नहीं आयी। पुराने इलाके के पीड़ित नागरिकों ने मंत्री गिरीश महाजन के बंगले पर पहुंचकर शिकायतों की झड़ी लगा दी। इतना सब कुछ पहली बार हुआ है ऐसा बिल्कुल नहीं है इसके बावजूद आपदा प्रबंधन की अस्तित्वहिन इकाई को लेकर निद्रालीन निगम प्रशासन हमेशा कुछेक जेसीबी के सहारे युद्ध स्तर की आभासी नौटंकी करते हुए जलनिकासी के कामों में जुट जाता है जिसमें उन्नीस बीस मिडीया फ़ोटो शाटों के साथ नेताओं की मानवीय संजीदगी के फ़साने गुनगुनाता है। निगम के पास जलनिकास के लिए ना पंप सेट है, ना वाटर बोट्स और ना ही लाईफ़ जैकेटस हैं। अभी तो आपदा प्रबंधन के नाम पर किसी तरह कि व्यवस्था है ही नहीं। वहि आपदा मोचन के लिए विशेष सरकारी कोष के प्रावधान वाले प्रस्ताव निगम में कभी प्रस्तुत किए गए हैं ऐसा आम जनता के सुनने पढ़ने या मीडिया के लिखने में कभी आया नहीं है।

बारिश सायलेंट मोड पर है, मौसम विभाग के मुताबीक जारी हैवी रेन का अलर्ट जारी है इस लिए बेहतर यही होगा कि निगम की अनूठी सतर्कता प्रणाली की गुणवत्ता को परखने की जोखिम को ना उठाते हुए बाधित इलाकों के पीड़ित लोग नागरिक होने के नाते बिना कोई शिकवा किए खुद सतर्क बने रहें।


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