अशफाक कायमखानी, जयपुर, NIT; पूरे भारत में अनेक मदरसे ऐसे हैं जहां से बच्चे हाफिज-कारी-आलीम-मुफ्ती जैसी अनेक धार्मिक डिग्री लेकर निकलते हैं तो साथ में स्नात्तक, पीजी, या फिर किसी तरह की प्रोफेसनल डिग्री भी साथ में लेकर आते हैं। जिस युवा को इमामत या फिर मदरसा कायम करना होता वो उस लाइन को चूज करके उसी में अपना कैरियर बनाता है। उसी तरह जिनको हाफिज अबरार अहमद RAS व हाफिज नईम फलाही (कालेज लेक्चरार कोटा) की तरह अलग लाइन में कैरियर बनाने की तरफ बढकर सफलता पाकर अपना कैरियर संवारते हैं, तो अनेक फौज व अन्य दिगर प्रोफेशनल कोर्सेज करके अलग लाइन में कैरीयर बनाकर वतन की खिदमत करते हैं।
हालांकि कुरान-ऐ-पाक को कंठस्थ याद करके उसे सिने में उतारने वाले जहीन व मेहनती हाफिज-कारी-आलीम-मुफ्ती जैसे अनेक धार्मिक विद्वान की डिग्री लेकर जब मदरसा से बच्चे निकलते हैं तो उनमें से ज्यादातर इमामत या फिर मदरसे में पढाने के काम में व्यस्थ हो जाते हैं। अगर उन मेहनती व जहीन बच्चों के लिये धार्मिक पढाई के साथ साथ साल में कुछ समय सरकारी कक्षावार पढाई का भी इंतेजाम हो तो सोने पर सुवागा वाला काम होगा। जब बच्चा मदरसे से फारिग होकर निकलेगा तो उसके एक हाथ मे धार्मिक डिग्री होगी तो दूसरे हाथ में स्नात्तक, पीजी या फिर कोई प्रोफेसनल कोर्सेज की डिग्री होगी तो कल्पना करें कि उस बच्चे का कैरियर कैसा होगा?मदरसे के वो जहीन व रोजाना आठ दस घण्टे पढने वाले बच्चे की मेहनत करने की आदत तो पहले से ही होती है बाकी जो वो किसी भी विषय में स्नात्तक होगा तो वो प्रशासनीक सेवा सहित अनेक सेवाओं में भी अपनी चोईस के मुताबीक कैरियर बनाना चाहेगा। एक दफा कल्पना करो कि एक हाफिज चिकित्सक व इंजिनियर होगा तो दूसरा मुफ्ती जो जज व प्रशासनीक सेवा में अधिकारी होगा तो मानो की कितना अच्छा बगीचा होगा। इससे जहां इंसाफ परवान चढेगा वहीं समाज के नाकारा लोग समाज पर मुसल्लत नहीं होंगे। अक्सर देखने को मिला है कि आला दर्जे की धार्मिक डिग्री लेकर कोई विद्वान जब इमामत करता है तो उस बस्ती के ना अहल लोग पता नहीं कब ऐतराज करके अगले ही दिन इमामत से अलग कर दें। अगर वही इमाम साहब धार्मिक शिक्षा के साथ अंग्रेजी, मैथ्स व साईंस सहित अनेक आवश्यक विषयो का ज्ञान व डिग्री वाला होगा तो उसका अलग रुप नजर आयेगा। समाज में आज इमामत करने वाले को पाचं से दस हजार माहना नजराना मिलता है, उसमें वह कैसे घर चलाता है, उसको वह खुद ही समझ सकता है। सीकर के फतेहपुर रोड़ पर शहर में पहले मुफ्ती डिग्री के एक हजरत इमामत करवाने आये। चंद सालों बाद उनको इमामत से हटा दिया तो उन्होंने वही किराना की दुकान शुरु की। अल्लाह पाक ने उस किराना व्यापार मे बडी बरकत अता फरमाई जो आज देखने लायक है।
इसी महिने की घटना है कि फौज में इमाम की वेकेन्सी निकली तो अनेक धार्मिक डिग्री वाले उस नौकरी में अप्लाई करना चाह रहे थे लेकिन स्नात्तक होने की बाध्यता के चलते वो अप्लाई नहीं कर पाये। सीकर का बीस साल का एक युवक जो हाल ही में हिफ्ज करके आया है। उसने कहा कि वो अब प्रशासनीक सेवा में जाना चाहता है। पूछने पर उसने बताया की आठवीं पास करने के बाद उनके घर वालों ने हिफ्ज करने की खातिर मदरसे में डाल दिया था, तो वह अब हिफ्ज मुकम्मल करके आया है। मैंने कहा कि प्रशासनीक सेवा परीक्षा देने लिये स्नात्तक होना जरुरी है। तो उसने कहा ठीक है फिर मैं पहले प्राइवेट तौर पर स्नात्तक कर लेता हूं। मैंने कहा आप स्नात्तक तो हिफ्ज करने के साथ साथ भी कर सकते थे?
कुल मिलाकर यह है कि अगर हमारे मदरसे संचालित करने वाले लोग धार्मिक शिक्षा के साथ साथ बाकायदा कक्षावार शिक्षा भी बच्चों को देने का इंतेजाम कर लेते हैं तो अगले कुछ सालों मे समाज व इन धार्मिक विद्वानों का केरीयर बदला बदला नजर आयेगा। वही देश में जारी भ्रष्टाचार, असमानता, अन्याय सहित दिगर मसाइल में भी काफी कमी नजर आने लगेगी। दूसरी तरफ जिस तादात में धार्मिक विद्वान डिग्री लेकर निकल रहे हैं, उस तादात मे मस्जिद- मदरसे भी कायम नहीं हो रहे हैं।
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts to your email.