अशफाक कायमखानी, जयपुर, NIT; भारत भर के मुस्लिम समुदाय की तरह राजस्थान का मुस्लिम समुदाय का बडा तबका अपने सामाजिक जीवन का संतुलित पुर्व बजट बनाकर काम करने व अपने पसीने की धार टपका टपका कर बचत किये धन को ठीक से इन्वेस्ट करने के लिये इनवेस्टमेंट के फण्डे को ठीक से समझना होगा वरना हाल मे संसद मे पास हुये वित्तिय बिल को पढने के बाद तो लगता है कि अक्सर उनकी तरफ से होने वाली छोटी सी भी वित्तीय नासमझी की ऐसी पिड़ादायक पकड़ होगी कि उनके अनेक पेसो के लेनदेन तो ऐसे होगे जिनमे शतप्रतिशत जुर्माना लगने के बाद भी पिछा छुटना बडा कठिन काम होगा।
हालांकि मुस्लिम समुदाय में आज के समय देश में विभिन्न तरह के लगने वाले करों , बजट व इनवेस्टमेंट के फण्डे के जानकर तो ना के बराबर हैं लेकिन जो कुछ भी माहिर लो CA, CS व एडवोकेट या अन्य सम्बन्धित डिग्रीधारी लोग मौजूद है उनके पास जाकर सलाह लेने का रिवाज भी अभी समुदाय में सतही स्तर पर अभी तक बन ही नहीं पाया है। इस तरह के सलाह लेने का रिवाज जब समुदाय के हर शख्स के दिलों तक पहुंचने लगेगा तो मानो पारीवारिक बजट में उतार चढाव व डम्प इनवेस्ट जैसी समस्याओ से झुझने से बचा जा सकता है।
मेरा भी तालुक राजस्थान से होने के कारण मेने काफी नजदीक से देखा है कि अधिकांश परीवारों का घर का माहना का पुर्व बजट का सिस्टम तो कतई नहीं है लेकिन रोजमर्रा के खर्च व आमद के लिखने का रिवाज भी अब हवा होने लगा है। यहां के अधिकांश कामगार खाड़ी देशों में मजदूरी करके या फिर फौज-पुलिस एवं मामूली प्राइवेट नौकरी करके पैसा तो कमाया है लेकिन उन पैसों में से अवल तो बचत करने का रिवाज ही पुरी तरह बन नहीं पाया है। अगर किसी ने समझदारी से बचत जरा कर भी ली तो उसको इनवेस्ट करने में वो पुरी तरह सफल नहीं हुआ। अगर किसी ने इनवेस्ट कर भी दिया तो उनमें से ज्यादातर का इनवेस्ट आज डम्प इनवेस्ट होकर रह गया। उदाहरण केरतौर पर खाड़ी देशों में रहने वाले मजदूर लोगों की बचत को उनके दोस्त या घर वालों किसी कोलोनी में प्लाट खरीद करने में करवा देते हैं। पहले तो उस मजदूर को पता नहीं होता था कि प्लाट ठीक किस लोकेशन वाली जमीन व कौनसे मैन रास्ते पर है। उसकी साईज व कोलोनी लोकेसन के साथ साथ जमीन के असल कागज, कनवरजन व पट्टा मिलने की सही हालत का आंकलन भी वो नही कर पाता है। इस तरह के प्लाटस मे किये गये अनेको के डम्प इनवेस्टमेंट से मै भी भलीभांती परिचित हु जिनको दस साल बाद भी बैंक ब्याज के समान मुनाफा नही मिल पा रहा है। इनमे कुछेक तो ऐसे किस्से है कि उन प्लाट वाली दलित की क्रषि भुमि है या फिर मोके पर प्लाट ही नही है।
अनेक लोगो ने जमीन जायदाद के अलावा भी इनवेस्ट किया लेकिन उनके परीणाम भी वोही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ करते दिखाई देते है। कुल मिलाकर यह है कि वित्तीय बिल-2017 के पास होने पर हालात पुरी तरह बदले बदले नजर आयेगे। किसी भी तरह के इनवेस्ट व व्यापार करते समय इस फिल्ड के CA, CS, Advocate व अन्य फिल्ड माहिरीन (दक्ष) लोगों की सलाह के अनुसार ही कदम बढाना होगा वरना दिक्कतें राह मे खड़ी मिल सकती हैं।
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