अब्दुल वाहिद काकर, ब्यूरो चीफ धुले (महाराष्ट्र), NIT:
दिसंबर 2018 में होने जा रहे धुलिया महानगरपालिका के आम चुनावों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रस्तावित पेपरलेस ईवीएम मशीनों को लेकर स्थानीय शिवसेना ने चुनाव प्रशासन पर कई आरोप लगाते हुए राज्य निर्वाचन आयोग से वीवीपीएट (वोटर वेरीफ़ायी पेपर आडीट ट्रैल) लगाने कि मांग कि है।
मीडिया रिलीज में शिवसेना ने उक्त मांग के तहत भाजपा चुनाव प्रभारी मंत्री गिरीश महाजन की चुनावी कार्यशैली पर जोरदार कुठाराघात किया है। शिवसेना ने यहां तक कह दिया कि महाजन के अगुवाई में लडे गए सभी चुनावों में प्रशासन की सांठगांठ से ईवीएम को हैक किया गया और जनादेश का मजाक बनाया गया है। अब धुलिया चुनाव से पहले महाजन ने स्थानीय चुनावी संस्था में अपने उन मनचाहे अधिकारीयों की नियुक्तीयां बहाल कर दी जो महाजन को ईवीएम कांड में अब तक मदद करते आए हैं। शिवसेना ने शीर्ष अदालत के उस आदेश का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि पारदर्शी चुनावो के लिए ईवीएम को तत्काल प्रभाव से वीवीपीएट संलग्न किया जाए।
सुत्रो के मुताबीक धुलिया चुनाव मे मतदान के लिए प्रशासन कि ओर से जामनेर, जलगांव निकायो मे उपयोग मे लायी गयी बगैर वीवीपीएट वाली ईवीएम का प्रयोग किया जाने वाला है। शायद इसी बात को लेकर संतुष्ट महाजन चुनाव से पूर्व ही नतिजों मे भाजपा को 50 प्लस की हामी भरते नहीं थक रहे हैं।
रही बात शिवसेना के लोकतंत्र के प्रती प्रेम कि तो वैसे भी बीते महिने नंदूरबार पधारे शिवसेना सांसद संजय राऊत ने गिरीश महाजन को ईवीएम हैकर करार दिया था . ईवीएम मे किए जाने वाले हैकिंग जैसी कथित वास्तविकता के चलते ही तो शायद विधायक अनिल गोटे का स्वाभिमान डगमगा सा गया न हो और कल तक महाजन को खरीखोटी सुनाने वाले गोटे अब पार्टी स्नेह कि बीन बजाने मे मस्त हो गए हो ऐसी व्यंगात्मक टीप्पनीया राजनितीक गलियारो मे सुनाई देने लगी है . वही एक बात साफ़ हो चुकि है कि
ईवीएम के सहारे लोकतंत्र का अलख जगाने और भाजपा को सताने कि क्षमता रखने वाली शिवसेना इस मैदान मे अपने बलबुते उतरेगी . वही कांग्रेस – NCP का गठबंधन होना तय है . रही बात गोटे कि तो उनके व्यक्तीगत स्वाभिमान से शायद ही कोई वोटर कुछ हद तक इत्तेफ़ाक रखता होगा।
बहरहाल आम मतदाताओ मे चुनाव आयोग जैसी स्वायत्त संस्था से यहि मांग कि जा रहि है कि पुरी चुनावी प्रक्रिया उच्चतम न्यायालय के निर्देशो नूसार इमानदारी और सटीकता के पैमाने पर संपन्न कि जानी चाहिए . जमुरीयत के विचारको तथा बुद्धिजिवीयो से यह तर्क भी सामने आ रहा है कि अगर दुर्भाग्य से मतदान बगैर वीवीपीएट वाले ईवीएम
से करवाए गए तो वोटर्स मे नकारात्मकता के भाव से वोटिंग परसेंटेज मे ऐतिहासिक गिरावट भी दर्ज कि जा सकती जो चुनाव आयोग के लिए शर्म कि बात होगी
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