राजस्थान उच्च न्यायालय में अब तक कुल 6 मुस्लिम न्यायाधिपति बने, युवाओं का न्यायिक सेवा की तरफ बढ रहा है रूझान | New India Times

अशफाक कायमखानी, जयपुर, NIT; 

राजस्थान उच्च न्यायालय में अब तक कुल 6 मुस्लिम न्यायाधिपति बने, युवाओं का न्यायिक सेवा की तरफ बढ रहा है रूझान | New India Times​भारतीय मुस्लिम समुदाय में वकालत की ड़ीग्री पाकर पीडित लोगों की संविधान के मुताबिक न्यायालयों में पैरवी करने का चलन काफी पुराना है। वही धार्मिक मान्यताओं के अनुसार फैसला करने वाले काजी (जज) को बडा सम्मान मिलने के साथ साथ उन्हें काफी अहमियत मिलना भी काफी पुरानी रिवायत रही है। भारत की आजादी के बाद बाकायदा अवाम को न्याय देने की मंशा को लेकर सरकार ने तत्कालीन व्यवस्था व फिर सविंधान बनने व उसके लागू होने के बाद सरकार द्वारा भारत भर में जगह जगह न्यायालयों का गठन किया गया।

भारत के आजाद होने के बाद राजस्थान में प्रांत स्तर पर स्थापित राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायाधिपति भी एक सविंधानिक प्रक्रिया के बाद पदस्थापित हुये जिनमें मुस्लिम समुदाय से तालूक रखने वाले भी अलग अलग समय पर अब तक 6 लोग न्यायाधिपति बने हैं, जिनमें सर्वप्रथम 29/08/1949 से 18/07/1950 तक मोहम्मद इब्राहिम न्यायाधिपति बने। उसके बाद 13/07/1985 से 31/12/1994 तक मालपुरा के सैय्यद फारुक हसन व 22/07/1995 से 06/01/2000 तक चौधरी मोहम्मद असगर अली खान एवं 06/04/1996 से 31/07/2001 तक मोहम्मद यामीन न्यायाधिपति बनाये गये। इनके बाद भवरु खां व मोहम्मद रफीक न्यायाधिपति बने हैं। न्यायाधिपति मोहम्मद रफीक के अलावा बने सभी पांच न्यायाधिपति सर्विस कोटे से एवं न्यायाधिपति मोहम्मद रफीक एक मात्र वकील कोटे से बनने वाले राजस्थान में मुस्लिम न्यायाधिपति हैं जो राजस्थान उच्च न्यायालय में मोजूदा समय में न्यायाधिपति हैं।

 अनेक सरकारों में अतिरिक्त ऐडवोकेट जनरल AAG रहे राजस्थान उच्च न्यायालय के चुनिंदा व प्रभावशाली वकील की छवि बनाने वाले एम आई खान मेव का नाम भी न्यायाधिपति के चयन के लिये एक प्रक्रिया के बाद आगे गया था, लेकिन वो न्यायाधिपति बन नहीं पाये। उनके बाद उनके पुत्र ऐडवोकेट मोहम्मद इकबाल का नाम भी आगे सरका लेकिन पता नही क्यो उनका नाम भी अभी तक क्लीयर नही हो पाया है। पिछले दिनों एक चर्चा यह भी थी कि जोधपुर के एक मुस्लिम एडवोकेट का नाम पहली दफा आगे गया बताते हैं।

प्रदेश में राजस्थान न्यायीक सेवा परिक्षा शूरु होने के पहले बैच में चौधरी मोहम्मद असगर अली व मोहम्मद यामीन चयनित होकर आये थे। उनके बाद भवंरु खां चयनित होकर आये थे। जो बाद में राजस्थान उच्च न्यायालय में तीनों न्यायाधिपति बनकर सेवानिवृत्त हुये हैं। उक्त तीनों के बाद अब जाकर अनेक कण्डीडेट न्यायीक सेवा परीक्षा में चयनित होकर धिरे धिरे ही सही पर आ जरूर रहे हैं जिनमें अधीकांश वर्तमान समय में सेवारत होकर संविधान के अनुसार वतन की खिदमात अंजाम दे रहे हैं।

 कुल मिलाकर यह है कि शिक्षा हासिल करने में कमजोर प्रतिशत वाला मुस्लिम समुदाय का युवा अब जाकर कुछ हद तक अच्छी शिक्षा पाने के लिये सीमित साधन उपलब्ध होने के बावजूद दौड़धूप करने लगा है। युवाओं की सरकारी सेवा की तरफ जाने का रुझान भी परवान चढने लगा है। इसके साथ साथ विशेष तौर पर न्यायीक सेवा में जाकर भारतीय न्याय प्रणाली को मजबूत बनाये रखने का रुझान पिछले कुछ सालों से काफी बढता नजर आने लगा है।


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