अरशद रजा, अमरोहा ( यूपी ), NIT; नामे हुसैन एक ऐसा शब्द है जिससे सुनकर मुसलमान ही नही बल्कि सभी धर्मो के लोगो के सर अक़ीदत से झुक जाते है और सभी की आँखो मे नमी आ जाती है।
ज़िक्रे हुसैन व फिक्रे हुसैन से आदमी ‘इन्सान’ बन जाता है।हुसैनियत नाम ही नही बल्कि वह विचारधारा है जिसमे कोई न तो किसी पर ज़ुल्म व ज़बरदस्ती कर सकता है न ही वह किसी पर ज़ुल्म व ज़बरदस्ती बर्दाश्त कर सकता है। इमाम हुसैन (अ.स.) मुसलमानो के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स) के सबसे प्यारे व लाडले नवासे थे। पैग़म्बर साहब का कहना था कि हुसैन मुझसे है और मै हुसैन से।जिसने हुसैन को तकलीफ पहुचाँई उसने मुझको तकलीफ दी।
रसूल के नवासे इमाम हुसैन (अ.स.) को आज से तक़रीबन 1400 साल पहले सन् 61 हिजरी के मोहर्रम के महीने मे उनके 72 साथियों के साथ ‘यज़ीद’ नामक बादशाह ने बड़ी बेरहमी से क़त्ल कर दिया था। यज़ीद उस ज़माने का सुपर पावर समझा जाता था।उसकी हुकूमत अरब देशों से लेकर ईरान, इराक़, यमन, सीरिया, अफ़्रीक़ा, रूस और यूरोप के कुछ हिस्सों तक थी। यज़ीद धर्म के नाम पर बुरी बातें फैलाना चाहता था।वह अपनी अय्याशी, ज़ुल्म व सितम और जात- पात को इस्लाम का नाम देना चाहता था। लेकिन उसे मालूम था कि वह इमाम हुसैन (अ) के होते हुये अपने इस इरादे को पूरा नहीं कर सकता। इसीलिऐ वह इमाम हुसैन (अ) का समर्थन चाहता था। इन्सानियत व सच्चाई के मसीहा ईमाम हुसैन यज़ीद की इस तानाशाही व ज़ुल्म के आगे नही झुके और वह अपने 72 साथियों के साथ यज़ीद के खिलाफ उठ खड़े हुए।और अन्ततः 10 मुहर्रम को इमाम हुसैन ने अपने साथियों के साथ शहादत को गले लगा लिया।
यज़ीद के अन्याय के खिलाफ खड़े इमाम हुसैन की मदद के लिए दत्त ब्रहृमणों की पूरी बटालियन हिन्दुस्तान से ईराक गई थी, लेकिन तब तक इमाम हुसैन शहादत पा चुके थे। इसलिए हिंदुस्तानी फौज कूफा से भारत लौट आई।
कुछ हिन्दू जैसे ब्राह्मण ‘रहब दत्त’ के सात बेटों ने भी ईमाम हुसैन के लिऐ शहादत दी थी। जिनके वंशजो को ‘हुसैनी ब्राह्मण’ कहा जाता हैं। मरहूम अभिनेता सुनील दत्त इन्हीं ‘हुसैनी ब्राह्मणों’ के वंशज थे।
यज़ीद को विश्व का सबसे बड़ा ज़ालिम कहा जाये तो ग़लत नही होगा।क्योकि उसने दरिन्दगी की सभी हदे पार कर दी थी।उसने मुसलमानो के नबी के घराने पर पानी तक बंद कर दिया था।उसने नौजवानों, बूढ़ों व बच्चो सभी को तड़पा -तड़पाकर शहीद किया।छः महीने के बच्चे अली असगर को भी अपने बाप की गोद में तीर का निशाना बना दिया। जंग के खत्म होने के बाद यज़ीदी फ़ौज ने औरतों, बच्चों और इमाम के एक बीमार बेटे को कैद कर लगभग 1600 कि.मी. पैदल चलाया और शाम नामक जगह (सीरिया) के क़ैदखान मेे भेज दिया, जहाँ उन्हें बहुत सख्तियाँ झेलनी पड़ीं। लेकिन इन क़ैदियों ने तमाम सख्तियों के बावजूद हार नहीं मानी और इन्सानियत व सच्चाई का संदेश दुनिया तक पहुँचाया।
जब कभी हम दुनिया में ज़ुल्म, आतंकवाद और भ्रष्टाचार देखें तो अपने को अकेला महसूस न करें और कर्बला के पैग़ाम को याद करें। कर्बला मे इमाम हुसैन की शहादत हमे याद दिलाती है की अगर ज़ुल्म के खिलाफ़ मुकाबले में अकेले हो या तादाद में कम हो तो थक कर घर में नही बैठना चाहिऐ बल्कि सच्चाई की राह मे अपनी जान तक दे देनी चाहिऐ।
इमाम हुसैन से ही प्रेरणा
लेकर विश्व के बहुत से क्रान्तिकारियो व महापुरूषो ने अपने अपने देशो को वर्षो की ग़ुलामी से आज़ाद करा लिया। इमाम हुसैन से प्रेरणा पाकर ही गांधी जी व अन्य महापुरूषो ने भारत को आज़ाद करा लिया।
विश्व के विभिन्न महापुरूषो के विचार इमाम हुसैन के बारे मे क्या थे ये हम नीचे पढ़ सकते है:
1.मोहनदास करमचंद गांधी:
“मैंने इमाम हुसैन से ही सीखा की मज़लूमियत में किस तरह जीत हासिल की जा सकती है। इस्लाम की बढ़ोतरी तलवार पर नहीं हुई बल्कि यह इमाम हुसैन के बलिदान का ही एक नतीजा है ।”
2.पंडित जवाहरलाल नेहरु:
“इमाम हुसैन की क़ुर्बानी तमाम गिरोहों और सारे समाज के लिए है, और यह क़ुर्बानी इंसानियत की भलाई की एक अनमोल मिसाल है।”
3.डॉ. राजेंद्र प्रसाद:
“इमाम हुसैन की कुर्बानी किसी एक मुल्क या कौम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लोगों में भाईचारे का एक असीमित राज्य है।”
4. डॉ.राधाकृष्णन:
“अगरचे इमाम हुसैन ने सदियों पहले अपनी शहादत दी, लेकिन इनकी इनकी पाक रूह आज भी लोगों के दिलों पर राज करती है।”
5.स्वामी शंकराचार्य:
“यह इमाम हुसैन की कुर्बानियों का नतीजा है कि आज इस्लाम का नाम बाक़ी है नहीं तो आज इस्लाम का नाम लेने वाला पुरी दुनिया में कोई भी नहीं होता”
6.रबिन्द्रनाथ टैगौर:
“इन्साफ़ और सच्चाई को ज़िंदा रखने के लिए, फौजों या हथियारों की ज़रुरत नहीं होती है। कुर्बानियां देकर भी फ़तह (जीत) हासिल की जा सकती है, जैसे की इमाम हुसैन ने कर्बला में किया।
“इमाम हुसैन मानवता के नेता है। इमाम हुसैन ठन्डे दिलों को जोश दिलाते रहेंगे।इमाम हुसैन का बलिदान अध्यात्मिक मुक्ति को इंगित करता है।”
7.श्रीमती सरोजिनी नायडू:
“मैं मुसलमानों को इसलिए मुबारकबाद पेश करना चाहती हूँ की यह उनकी खुशकिस्मती है कि उनके बीच दुनिया की सब से बड़ी हस्ती इमाम हुसैन पैदा हुए जो संपूर्ण रूप से दुनिया भर के तमाम जाती और समूह के दिलों पर राज किया और करता है।”
8. डॉ के शेल्ड्रेक:
इस बहादुर और निडर लोगों में सभी औरतें और बच्चे इस बात को अच्छी तरह से जानते और समझते थे की दुश्मन की फौजों ने इनका घेरा किया हुआ है, और दुश्मन सिर्फ लड़ने के लिए नहीं बल्कि इनको क़त्ल करने के लिए तैयार हैं। जलती रेत, तपता सूरज और बच्चों की प्यास ने भी इन्हें एक पल के, इनमें से किसी एक व्यक्ति को भी अपना क़दम डगमगाने नहीं दिया। इमाम हुसैन अपनी एक छोटी टुकड़ी के साथ आगे बढ़े, न किसी शान के लिए, न धन के लिए, न ही किसी अधिकार और सत्ता के लिए, बल्कि वो बढ़े एक बहुत बड़ी क़ुर्बानी देने के लिए जिस में उन्होंने हर क़दम पर सारी मुश्किलों का सामना करते हुए भी अपनी अपनी सत्यता का कारनामा दिखा दिया।
9.एडवर्ड ब्राउन:
“कर्बला में खूनी सहरा की याद जहां अल्लाह के रसूल का नवासा प्यास के मारे ज़मीन पर गिरा और जिसके चारों तरफ सगे सम्बन्धियों के लाशें थीं यह इस बात को समझने के लिए काफी है की दुश्मनों की दीवानगी अपने चरम सीमा पर थी, और यह सब से बड़ा ग़म (शोक) है जहाँ भावनाओं और आत्मा पर इस तरह नियंत्रण था की इमाम हुसैन को किसी भी प्रकार का दर्द, ख़तरा और किसी भी प्रिये की मौत ने उन के क़दम को नहीं डगमगाया।”
10.चार्ल्स डिकेन्स:
“अगर इमाम हुसैन अपनी संसारिक इच्छाओं के लिए लड़े थे तो मुझे यह समझ नहीं आता की उन्हों ने अपनी बहन, पत्नी और बच्चों को साथ क्यों लिया। इसी कारण मै यह सोचने और कहने पर विवश हूँ के उन्होंने पूरी तरह से सिर्फ इस्लाम के लिए अपने पुरे परिवार का बलिदान दिया ताकि इस्लाम बच जाए।”
11.रेनौल्ड निकोल्सन:
”हुसैन गिरे, तीरों से छिदे हुए, इनके बहादुर सदस्य आखरी हद तक मारे-काटे जा चुके थे, मुहम्मदी परम्परा अपने अंत पर पहुँच जाती, अगर इस असाधारण शहादत और क़ुर्बानी को पेश न किया जाता। इस घटना ने पूरी बनी उमय्या को इमाम हुसैन के परिवार का दुश्मन, यज़ीद को हत्यारा और इमाम हुसैन को “शहीद” घोषित कर दिया….
12.अंटोनी बारा:
“मानवता के वर्तमान और अतीत के इतिहास में कोई भी युद्ध ऐसा नहीं है जिसने इतनी मात्रा में सहानूभूती और प्रशंसा हासिल की है और सारी मानवजाती को इतना अधिक उपदेश व उदाहरण दिया है जितनी इमाम हुसैन की शहादत ने कर्बला के युद्ध से दी है।”
इमाम हुसैन (अ) की यह क़ुर्बानी नाइन्साफ़ी को ख़त्म करने के लिए थी। इसीलिए हर साल मुहर्रम के माह में इस क़ुर्बानी की याद सिर्फ मुसलमान ही नहीं मनाते बल्कि हर वो इन्सान मनाता है जो इन्साफ़ पसन्द है चाहे वह किसी भी धर्म से ताल्लुक़ रखता हो।
इमाम हुसैन ने सच्चाई व मानवता के लिए जो अदम्य साहस दिखाया उसकी रोशनी आज तक मज़लूम लोगों की राह रौशन करती आ रही है।
किसी ने सही ही कहा है:
इन्सान को बेदार तो हो लेने दो।
हर क़ौम पुकारेगी हमारे है हुसैन।
लेखक,
अरशद रज़ा (बीईंग हुसैनी मिशन फोर ह्यूमैनिटी एण्ड अवेयरनैस,सैद नगली, अमरोहा, यू पी)
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