वी.के. त्रिवेदी, ब्यूरो चीफ, लखीमपुर खीरी (यूपी), NIT:

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लखीमपुर द्वारा प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा मना रहा है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लखीमपुर ने पखवाड़े के अंतर्गत लोगों को जागरूक करने के लिए कई कदम उठाए हैं इसी कड़ी में एक गोष्ठी का आयोजन स्थानीय टंडन नर्सिंग होम में किया गया इसमें वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर के के मिश्रा ने बताया कि राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा एक अभियान है जो प्रत्येक वर्ष 25 अगस्त से 8 सितंबर तक 15 दिनों तक चलाया जाता है। राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े की शुरुआत 1985 में किया गया था इस वर्ष यह 38वां नेत्रदान पखवाड़ा है।यह दृष्ठिहीनता के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत भारत की केंद्र सरकार के द्वारा आयोजित किया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों में नेत्रदान के प्रति जागरूकता पैदा करना है और बताया कि अंधापन एक बड़ी समस्या है जिसका सामना हम सब भारतीय कई वर्षों से कर रहे हैं। नेत्रदान पखवाड़े का उद्देश्य इस समस्या को कुछ हद तक कम करना है। मोतियाबिंद और ग्लूकोमा के बाद सबसे ज्यादा अंधता कॉर्निया की वजह से है।
नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रूपक टंडन ने बताया की कॉर्निया आंख में शीशे की तरह एक पारदर्शी झिल्ली होती है जिसमें चोट लगने, संक्रमण या अन्य कारणवश धुंधलापन आ जाता है जिसे कॉर्नियल दृष्टिहीनता कहते हैं। यह एक गंभीर समस्या है और इसका एक ही उपचार है कॉर्निया प्रत्यारोपण। कार्निया प्रत्यारोपण नेत्रदान द्वारा ही संभव है क्योंकि अब तक कार्निया का कोई कृत्रिम विकल्प उपलब्ध नहीं है। हमारे देश में लगभग 11 लाख लोग कॉर्निया की प्रतीक्षा कर रहे हैं और प्रतिवर्ष लगभग 25000 लोगों की बढ़ोतरी हो रही है।नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एम आर खान ने नेत्रदान के लिए कुछ महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया की मृत्यु के बाद 4 से 6 घंटे के अंदर नेत्रदान किया जा सकता है, किसी भी धर्म, आयु, लिंग एवं ब्लड ग्रुप के व्यक्ति नेत्रदान कर सकते हैं। जिनको दूर का या पास का चश्मा लगता है, शुगर या ब्लड प्रेशर से पीड़ित व्यक्ति, एवं ऐसे व्यक्ति जिन्होंने मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाया है, ऐसे लोग भी नेत्रदान कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में 15 से 20 मिनट का समय लगता है और मृतक के चेहरे पर कोई विकृति भी नहीं आती। नेत्रदान के लिए पूरे परिवार की स्वीकृति आवश्यक है। नेत्रदान सिर्फ मरणोपरांत ही किया जा सकता है, जीवित अवस्था में नेत्रदान नहीं कर सकते। नेत्रदान करने वाले व्यक्ति एवं कॉर्निया प्रत्यारोपण करने वाले व्यक्ति की पहचान गुप्त रखी जाती है। गोष्ठी का संचालन आई एम ए सचिव डॉ पवन गर्ग ने किया। इस अवसर पर डॉक्टर अक्षत मिश्रा सहित संगठन के कई सदस्यों के अलावा शहर के गणमान्य लोग, रोटरी क्लब, लायंस क्लब, मारवाड़ी सभा के प्रतिनिधि भी उपस्थित रहे और अंत में चिता में जाएगी रख बन जाएगी, कब्र में जाएगी मिट्टी बन जाएगी, यदि हम करते हैं नेत्रदान, किसी दो की जिंदगी रोशन हो जाएगी।