अशफाक कायमखानी, जयपुर/नई दिल्ली, NIT:
संघर्ष से लीडर पैदा होते हैं और सत्ता उनको कमजोर बनाने वाली कहावत को सही मानें तो पायेगें कि सोने की चम्मच लेकर सीधे राजनीति में पैदा होकर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने वाले राहुल गांधी की युवा टीम के नेता सिंधिया के बाद एक एक करके भाजपा में शामिल होंगे।
अपनी एक विशेष विचारधारा को लेकर आंदोलनों से तरासे जाने वाले नेता अच्छे-बूरे हालात में भी अपनी पार्टी के साथ रहकर अपने विचारों को फैलाने व देश की सियासत को उस पथ पर ले जाने से कभी पीछे नहीं हटते हैं लेकिन जिस नेता ने आंदोलनों में भाग ना लेकर बिना किसी ठोस विचारधारा के जब पिता के मरने पर तूरंत उसे सत्तारूढ़ पार्टी की टिकट देकर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाने का परिणाम सिंधिया जैसे नेताओं का कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होना ही नजर आयेगा।
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के आंख-नाक व कान बनकर सीधे सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, जतिन प्रसाद व मिलिंद देवड़ा सहित अनेक युवा नेताओं की काबिलियत केवल उनके पिताओं का देहांत होना या पिताओं के राजनीति में शीर्ष पर होना ही है। उन्होंने कभी विपक्ष में रहकर ना आंदोलनों मे भाग लिया और ना ही कभी विशेष विचारधारा के लिये प्रशिक्षण पाया। जब कोई विचारधारा दिल में घर नहीं कर पाये तो वो नेता हमेशा सत्ता की तरफ ही भाग कर जाते हैं चाहे सत्तारूढ़ दल व उसके दल की विचारधारा एकदम विपरीत ही क्यों ना हो। उक्त युवा नेताओं के अलावा राजस्थान के दिग्गज नेता रहे नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा को 2019 के लोकसभा चुनाव में टिकट ना देकर समझौते में रालोपा को नागौर सीट देने की बात चली तो ज्योति ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने की कहकर दवाब बनाकर कांग्रेस को उम्मीदवार बनाने पर मजबूर किया और वो हनुमान बेनीवाल से चुनाव हार गई।
कुल मिलाकर यह है कि विचारधारा के कोरे व बीना किसी संघर्ष से आने वाले नेताओं का किसी भी तरह से किसी भी दल में स्थायित्व नहीं हो सकता वो हमेशा सत्ता की तरफ लपकने में किसी तरह की कंजूसी नहीं करते हैं। सिंधिया ही नहीं इस तरह के सभी युवा नेता एक एक करके बूरे समय मे दल छोड़कर अच्छे दिन की चाहत में सत्तारूढ़ दल में छलांग लगाते रहेंगे।
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