रहीम शेरानी, ब्यूरो चीफ, झाबुआ (मप्र), NIT:
झाबुआ जिले के मेघनगर में कस्तूरबा आश्रम की छात्राओं व अधीक्षिका के बीच तालमेल ना बैठने से जिले के कस्तूरबा हॉस्टल सुर्खियों में आ गया है।
हॉस्टल अनुशासनहीनता का केंद्र बिंदु बन रहे हैं, कहीं ना कहीं निर्णायक मानिट्रीरिग की कमी व जिला अधिकारियों की अनदेखी अब उग्र रूप ले रही है।
झाबुआ जिले के थांदला का मामला अभी ठंडा ही नहीं हुआ कि अनुशांसन हीनता व सीनियर जूनियर छात्राओं में आपसी मनमुटाव की चिंगारी मेघनगर जैसे कस्तूरबा आश्रम गुजरपाड़ा रोड पर भी घटित हुई। पिछले 15 दिनों से उक्त मुद्दे ने जिले से लेकर क्षेत्र के अधिकारियों की नाक में दम कर के रख दिया था, अतः जिला शिक्षा अधिकारी ने आगामी आदेश तक हॉस्टल को अघोषित बंद कर दिया व छात्राओं को पाठकों के माध्यम से रवानगी दे दी।
यह उस स्कूल के अंतर्गत कन्या शाला की छात्राएं हैं जहां के प्राचार्य देवहरे हैं जो स्वयं बीईओ हैं, उनके समक्ष भी यह एक चुनौती है। हॉस्टल की 125 बालिका अब अपने भविष्य को लेकर सशेचित हैं, अधिक्षिका ने इस्तीफा दे दिया है व नई नियुक्ति प्रशासन ने भी नहीं की है। तत्कालीन तुगलकी फरमान हॉस्टल बंद करने से मांडली, कचलदरा, खालखडवी, कालिया वीरान, हत्या तेली, क्षेत्र की उन छात्राओं के लिए पढ़ाई करना टेड़ी खीर हो गई है।
बालिकाओं में गुटबाजी केसे पनप रही है? चार माह में यह अचानक बदलाव आखिर शिक्षा की शुचिता को कहां ले जा रहा है?
अधिक्षिका मानसिक तनाव में अधिकारी परेशान आखिर इन कन्याओं का माइंड वाश कौन कर रहा है?
राजनीतिक दुम छल्ले भी शिक्षा के मंदिरों में अपनी झांकी जमाने के चक्कर में झूठी सच्ची कहानियां गड़ने में भी पीछे नहीं है जिले में शिक्षा विभाग पूर्णता आदिवासी विभाग के अमले पर जिंदा है ऐसे में चयनित अधिक्षिका की जगह आजाद विभाग भी जुगाड़ वाले अधीक्षक के पद पर मलाई के चक्कर में नियुक्ति पा लेते हैं।
ज्यादा डांट डपट करने पर छात्राएं भी मोर्चा खोलने में पीछे नहीं रहती हैं। जिले के छात्रावासों में ना तो नियमित स्वास्थ्य परीक्षण होता है न पत्राकार, समाजसेवी व शिक्षक समन्वय बनाकर नवीन समिति गठित कर भोजन व रहन-सहन की गुणवत्ता की समीक्षा अनंत मामले छात्राएं सिर पर बेठ अधिक्षिका को भी नाच नाचाने लगती है व अधिक्षिका इस्तीफा देकर व प्रशासन हॉस्टल बंद कर मामले का कटाक्षेप कर देते हैं बजाए मनोवैज्ञानिक मानसिक काउंसलिंग से छात्राओं के कार्य व्यवहार पर पलकों को भी सभी मामले में अधिक्षिका पक्ष लेकर निलंबन करने की अन्य छात्राओं से दबाव बनवा कर मामले को सेट करने का प्रयास किया जा रहा है।
कुछ जिले में हॉस्टलों में कई ब्लैक लिस्टेड अधिक्षिकाओ को भी पूर्णता कुछ दिनों बाद अधिक प्रभार दे देते हैं निरीक्षण के बाद अनियमितता के बावजूद कई बार उन्हें दूसरे स्कूल के प्रभार मिल गए हैं नियमानुसार उच्च श्रेणी शिक्षिका का पद है किंतु उत्कृष्ट संस्थान में भी प्राइमरी लेवल की अधिक्षिका को प्रभार दे दिया गया है।
आखिर अधिकारी यह ग्रुप बाजी गुटबाजी मोबाइल का मोह छात्राओं का आक्रोश अधिक्षिका का इस्तीफा व प्रशासन का हॉस्टल बंद कर देना तुगलकी फरमान कहीं ना कहीं शिक्षा व्यवस्था को ही सवालिया निशाना लगा रहा है।
मोबाइल व मोहब्बत की कहानियां भी है पर्दे के पीछे
सूत्र बताते हैं कुछ छात्राएं मोबाइल व अपने मित्रों से चोरी चुपके पत्र व्यवहार भी करती थी किशोरावस्था स्वयं काजल की कोठरी सी है यही उम्र में कुछ छात्राएं लंबे समय से मोबाइल से चर्चित थी प्रशासन और छात्राओं के मोबाइल की कॉल डिटेल भी दिखाए तो परदे के पीछे कुछ सफेदपोश लोगों के दुम छल्ले भी निशाने पर आ सकते हैं।
अब आवश्यकता है दृढ़ता से कड़ी जांच की।
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