एकता का अभाव ही मध्यप्रदेश के पत्रकारों के विखंडन का मूल कारण: सैयद खालिद कैस | New India Times

अबरार अहमद खान/मुकीज खान, भोपाल (मप्र), NIT:

एकता का अभाव ही मध्यप्रदेश के पत्रकारों के विखंडन का मूल कारण: सैयद खालिद कैस | New India Times
सैयद खालिद क़ैस

मध्यप्रदेश में यशस्वी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार को लगभग 17/18 वर्ष गुजर रहे हैं। भाजपा को मध्यप्रदेश में काबिज़ हुए 2023 में 2दशक गुजर जायेंगे। 2018 से मार्च 2020 तक कमलनाथ सरकार की घोषणाओं को छोड़ भी दिया जाए तो 2003 से वर्तमान समय तक मध्यप्रदेश का पत्रकार हमेशा ठगा गया है। सरकार की पत्रकार विरोधी नीति का ही परिणाम है कि आज तक प्रदेश में पत्रकार सुरक्षा कानून नहीं बन पाया। पत्रकार सुरक्षा एवं कल्याण में सरकार की गैर जिम्मेदारी से अधिक मध्यप्रदेश में पत्रकारों की दुर्दशा के लिए स्वयं पत्रकार बिरादरी जिम्मेदार है। एकता का आभाव ही मध्यप्रदेश के पत्रकारों के विखंडन का मूल कारण है। दलों, कुनबों में बांटे पत्रकार अपने अधिकारों की रक्षा के लिए कभी एकजुट होकर सरकार से दो चार होना नहीं चाहते। अपने राजनैतिक आर्थिक हितों में उलझे मठाधीश जो पत्रकार संगठनों की रहनुमाई करते आएं है दशकों से वह सरकार के खिलाफ जाना पसंद नहीं करते। फलस्वरूप पत्रकार विशेषकर ग्रामीण इलाकों का कर्मठ पत्रकार कभी प्रशासन तो कभी पुलिस के निशाने पर रहता है। भूमाफिया, खनन माफिया, आबकारी, अपराधियों के लिए सिरदर्द बना पत्रकार, भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारियों के शिकार हो जाते हैं। वक्ति तौर पर कुछ दिन हो हल्ला होता है फिर ठंडा पड़ जाता है। चाहे पत्रकार की हत्या, हत्या का प्रयास हो या झूठे मुकदमे बाज़ी। मामला गर्म रहने तक सुर्खियां बटोरने वाले पत्रकार कब समझौते की काली चादर में दब जाते हैं पता ही नही चलता। परंतु प्रदेश व्यापी आंदोलन कर अपनी सुरक्षा और कल्याण के लिए एकजुट होना इनको आता नहीं या यह कहो कि उनके आका एकजुट होने नहीं देते।

2016 से लगातार पत्रकार सुरक्षा एवं कल्याण के लिए प्रयासरत रहने के दौरान मुझे यह आभास हुआ कि हर नेता अपनी रोटी सेंक रहा है उसे पत्रकार समाज से कोई सरोकार नहीं। वह जानता है कि भेड़ बकरी की भांति उपयोग आने वाले पत्रकारों को कब और कैसे उपयोग करना है। जनसंपर्क विभाग/संचालनालय में अपने रसूख का उपयोग कर तिजोरियां भरते मठाधीश पत्रकार समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े पत्रकार की चिंता नहीं करता। उसे अपने भंडारे भरने की फिक्र ज्यादा रहती है। यही कारण है कि देश आजादी की 75वीं वर्ष गांठ मना रहा है वहीं इन 75 सालों में देश में पत्रकारों की रक्षा एवं कल्याण के लिए कोई कानून नहीं होना हास्यास्पद लगता है। आज देश में पशु पक्षियों, जीव जंतुओं के लिए कानून है परंतु पत्रकारों के लिए कानून आज तक बना ही नहीं है।
केंद्र सरकार अपना पल्ला झाड़ते हुए प्रदेश सरकार पर ठीकरा फोड़ देती है और प्रदेश सरकार मूक बधीर बन कर सब होता देखती है। पत्रकारों की आहुति चढ़ाई जाती है, झूठे मुकदमे दर्ज किए जाते हैं परंतु कोई आवाज नहीं सुनाई देती। मामला गर्म रहने तक शोले दिखाई देते हैं बाद में राख में तब्दील हो जाते हैं। पीड़ित को न्याय मिला या नहीं किसी को कोई सरोकार नहीं।


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