बहराइच में आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज ने की प्रेस मीट | New India Times

फराज़ अंसारी, ब्यूरो चीफ, बहराइच (यूपी), NIT:

बहराइच में आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज ने की प्रेस मीट | New India Times

आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राइन ने कहा कि धारा 341 के माध्यम से प्रदत्त आरक्षण के अधिकार में लगाए गए धार्मिक प्रतिबंध के खिलाफ संगठन पूरे उत्तर प्रदेश में लोकतांत्रिक तरीके से अपने हक़ की आवाज बुलंद करेगा। इसके तहत कोविड नियमों का पालन करते हुए एक अगस्त से प्रत्येक जिले में पसमांदा जागरूकता गोष्ठी व प्रेस कांफ्रेंस का सिलसिला जारी रखते हुए 10 अगस्त को जिलेवार राष्ट्रपति को सम्बोधित ज्ञापन सौंपा जाएगा।
प्रदेश अध्यक्ष ने यह जानकारी बहराइच नगर स्थित होटल शहरान में आयोजित पत्रकार वार्ता में दी। इस पत्रकार वार्ता का आयोजन जिलाध्यक्ष शक़ील अंसारी की ओर से किया गया। उन्होंने बताया कि यह प्रतिबंध दलित मुस्लिम की तरक्की के खिलाफ 10 अगस्त 1950 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार के जरिये संविधान संशोधन अध्यादेश के माध्यम से लगाये गए थे। उन्होंने कहा कि संविधान समिति ने भारत को एक सम्प्रभु, समाजवादी तथा धर्म निरपेक्ष गणतंत्र बनाया था। संविधान निर्माताओं ने देश के अछूतों, दलितों एवं कमज़ोर वर्ग के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए अंग्रेज़ सरकार के जरिये बनाये गए कानून के भांति उन्हें अनुसूचित जाति में सम्मलित करके उनकी जन संख्या के अनुपात में विधान मण्डल, सरकारी सेवाओं और शैक्षिक संस्थाओं में उनका समुचित प्रतिनिधि सुनिश्चित करने के लिए संविधान की धारा 341 के तहत आरक्षण की व्यवस्था की थी तथा अनुसूचित जाति की सूची में सभी धर्मों के मानने वाले दलित समाज के लोग सम्मलित थे।

वसीम राइन ने कहा कि संविधान लागू होने के बाद प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान की अनुछेद 341 की धारा का सहारा लेकर 10 अगस्त 1950 को एक अध्यादेश पास कराया कि अनुसूचित जाति के लोगों में केवल उन्हीं को आरक्षण तथा अन्य सुविधाओं का लाभ मिलेगा जो हिन्दू हों। अनुसूचित जाति के किसी ऐसे व्यक्ति को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा जो गैर हिन्दू है, सिख समुदाय के दलितों ने इस असंवैधानिक अन्याय पूर्ण एवं दमन कारी के विरुद्ध अपने अधिकार की लड़ाई लड़ी तब 1956 में इस अध्यादेश में संशोधन करके हिंदू व सिख होना अनिवार्य करार दिया गया। इसके लिए सिर्फ पण्डित जवाहर लाल नेहरू ही नही बल्कि मौलाना अबुल कलाम आजाद, रफी अहमद किदवई आदि दीगर मुस्लिम लीडरान भी जिम्मेदार रहे। कांग्रेस नीत सरकार व लीडरान को गैर हिन्दू- गैर सिख दलित जाति के लोगों के हितों का गला घोंटने से ही संतुष्टि नहीं हुई, वर्ष 1958 में पुनः इस अध्यादेश को संशोधन कराते यह बढ़ोतरी भी कि जिन दलितों के पूर्वज कभी हिदू धर्म से निकल गए थे यदि वह पुनः हिन्दू धर्म स्वीकार करें तो उन्हें भी आरक्षण व अन्य सुविधायें मिलेंगी। 1990 में इस अध्यादेश में एक संशोधन करके इसमें बौद्ध दलितों को भी सम्मलित कर दिया गया। इस प्रकार मुस्लिम एवं ईसाई दलित आज भी अपने आरक्षण के संवैधानिक अधिकार से वंचित हैं जिसे असंवैधानिक तरीके से छीन लिया गया है जो कि संविधान की धारा 14, 15,16 और 25 के विपरीत है।
उन्होंने यह भी कहा कि हम इस असंवैधानिक अन्याय पूर्ण एवं काले कानून को भारत के संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का हनन और संविधान की मंशा की विरुद्ध मानते हैं। इस अवसर पर आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय महासचिव वकार हवारी, बाराबंकी जिलाध्यक्ष नसरुद्दीन अंसारी भी उपस्थित रहे।


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