अबरार अहमद खान/मुकीज़ खान, भोपाल (मप्र), NIT:
इस वक़्त पूरा देश महामारी कोरोना वायरस की चपेट में है और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकार कोरोना योद्धाओं की तरह अपनी जान हथेली पर रखकर पत्रकारिता धर्म का निर्वाह कर रहे हैं। ऐसे विकट समय में जहां पुलिस और प्रशासन को पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए वहीं पुलिस द्वारा पत्रकारों के प्रताड़ना के मामले सामने आ रहे हैं।
मिली जानकारी के अनुसार 9 मई 2020 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले सीहोर में एक दैनिक समाचार पत्र के जिला ब्यूरो पवन विश्वकर्मा द्वारा 2 पक्षों की आपसी लड़ाई कवरेज की जा रही थी जिसमें पुलिस द्वारा दोनों पक्षों को साथ ही पत्रकार को भी हिरासत में ले लिया गया। बताया जा रहा है कि वरन थाना प्रभारी की मौजूदगी में लात घूसों सहित बंदूक की बट से पत्रकार पवन विश्वकर्मा के साथ जमकर मारपीट की गई। यहां तक कि पत्रकार के विरुद्ध 151 का मुकदमा दर्ज कर एसडीएम कोर्ट में पेश किया गया जहाँ से उसे जेल भेज दिया गया तथा अगले दिन 50 हजार रूपये के मुचलके पर पत्रकार पवन विश्वकर्मा को रिहा किया गया।
अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति के राष्ट्रीय महामंत्री एंव प्रेस काउंसिल आफ वर्किंग जर्नलिस्ट के प्रबंध निदेशक सैयद ख़ालिद कैस ने मध्य प्रदेश में पत्रकारों के साथ हो रहे अत्याचारों पर NIT सावांददाता से बात करते हुए कहा कि प्रदेश में शिवराज सरकार के आते ही पत्रकार बिरादरी पर पुलिस प्रताड़ना, अत्याचारों के मामले दृष्टिगत हो रहे हैं जो कि चिंता का विषय है। एएसपी की मौजूदगी में पुलिस कर्मचारियों द्वारा मारपीट करने के तत्पश्चात धारा 151 में जेल भेजने की घटना ने पुन: यह साबित कर दिया है शिवराज सरकार में पत्रकार समाज असुरक्षित महसूस करने लगा है।
अलीराजपुर जोबट में साथी पत्रकारों पर पुलिस द्वारा झूठा मुकदमा लगाने की घटना को अभी 10 दिन भी नहीं गुजरे थे कि सीहोर जिले से इस प्रकार की घटना प्रकाश में आना शिवराज सरकार की पत्रकार विरोधी व्यवहार का प्रमाण है। इस पूरे घटनाक्रम में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की जिस तरह से हत्या का प्रयास किया गया वह चिंताजनक है।अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति द्वारा इस पूरे घटनाक्रम पर चिंता व्यक्त करते हुए पुलिस महानिदेशक से दोषी पुलिस अधिकारियों एवं कर्मचारियों को तत्काल निलंबित करने एवं पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच की मांग की गई है।
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