सैयद खालिद क़ैस, भोपाल (मप्र), NIT:
राजधानी भोपाल में वर्षो से जिला बदर कानून की आड़ में मानव अधिकारों के हनन का खेल जारी है। 1990 में बनाये गए इस कानून का नाम मध्यप्रदेश राज्य सुरक्षा अधिनियम इसलिए रखा गया था कि राज्य की सुरक्षा के साथ लोक शांति पर कोई प्रतिकूल प्रभाव ना पड़े परन्तु परम्परा अनुसार अन्य कानूनों की भांति भी यह कानून पुलिस और प्रशासन के हाथों का ऐसा खिलौना बन गया जिसका इन लोगों द्वारा जमकर दुरुपयोग किया गया और तब से अनवरत जारी है। इस कानून का सबसे ज्यादा दुरूपयोग 2003 से आरम्भ हुआ जब तात्कालिक सरकार ने कानून के साथ खिलवाड़ कर एक अधिसूचना के द्वारा कलेक्टर की शक्तियां अपर कलेक्टर को सौंप दी और फिर हुआ मानव अधिकार हनन का खुल्लमखुल्ला खिलवाड़। राज्य शासन द्वारा अगला कदम इस कानून की हत्या करने का 2005 में उठाया गया जब अपीलीय शक्ति गृह सचिव से छीनकर संभाग आयुक्तों को सौंप दी। नतीजा यह हुआ कि बुद्धिहीन और हठ धर्मी अपर कलेक्टर के आदेश के विरुद्ध संभाग आयुक्त को प्रस्तुत अपील औचित्यहीन साबित हुई।
राजधानी भोपाल के सन्दर्भ में बात करें तो भोपाल कलेक्टर ने तो एक से बढ़ाकर 3-3 अपर कलेक्टर नियुक्त कर दिए थे जिला बदर प्रकरणों के निराकरण के लिए जो जमकर मानव अधिकारों की हत्या करते रहे। राज्य शासन के अवैधानिक आदेश के विरुद्ध 2010 एवं 2013 में माननीय उच्च न्यायालय ने आदेश पारित कर घोषित किया कि कलेक्टर की शक्ति को स्वयं कलेक्टर या राज्य शासन प्रत्यायोजित नहीं कर सकता परन्तु सरकार के कान पर जू ना रेंगी और अनवरत कानून का उल्लंघन 2018 के मध्य तक चलता रहा पर अचानक शासन ने एक अधिसूचना जारी कर पुनः कलेक्टर को सुनवाई के अधिकार सौंपकर अपर कलेक्टर से छीन लिए तबसे कलेक्टर सुन रहा है।
कलेक्टर-कमिश्नर करते हैं कानून का उल्लंघन
2019 के आरंभ से अबतक भोपाल में लगभग 150 से अधिक लोगों को जिला बदर किया जा चुका है जिसमें से अधिकतर मामूली जमानती श्रेणी के मामलों के लोग थे जो या तो खत्म हो गए या विचाराधीन थे और माननीय उच्च न्यायालय के दिए न्यायदृष्टांत अनुसार जिला बदर जैसी कठोर कार्रवाई के लायक नहीं थे परन्तु कोई 3 माह, कोई 6 माह तो कोई एक साल के लिए जिला बदर किए गए। सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि इन लोगों की और से कमिश्नर के समक्ष प्रस्तुत 97% अपीलें खारिज हुई, यहां भी न्याय के नाम पर खिलवाड़ ही मिली।
गौरतलब हो कि अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के आने वाले फैसले की भेंट चढ़े लगभग 40 लोगों का दर्द अभी कम हुआ भी नहीं था कि आज कलेक्टर भोपाल ने 22 लोगों को 03-03 माह के लिए जिला बदर कर डाला। अफसोसजनक बात यह है कि इन 22 लोगों में से 15 वह लोग थे जिनके ऊपर मामूली धाराओं के प्रकरण थे जो समाप्त होगये थे या पारिवारिक विवाद थे जिनसे लोक शांति भंग होने का कोई अंदेशा नहीं था और जो लगभग 1 माह के आदेश के इन्तेज़ार में आज अचानक हुए जब ऐसी कोई परिस्थिति निर्मित नहीं थी जिसको आधार माना जाएं।
जिला बदर किया और साथ में 100 पेड़ लगाने के भी निर्देश, नहीं माने निर्देश तो 188 के तहत दंड
भोपाल कलेक्टर वृक्षारोपण को इतना महत्व देते हैं कि वह जिला बदर किए व्यक्ति को यह भी आदेशित करते हैं कि अवधि पूर्ण होने पर 100 पेड़ भी लगाओ नहीं लगाने पर जेल जाओ। एक गरीब मज़दूर एक तो घर परिवार को बेसहारा छोड़ कर बाहर जाता है और वापस आकर उससे 100 पेड़ लगवाने की अपेक्षा, यह कौन सा न्याय है?
संपूर्ण भारत में सबसे अधिक जिला बदर करने वाला ज़िला है भोपाल
एक अनुमान के मुताबिक राजधानी में हर वर्ष औसतन 150-200 लोग ज़िला बदर होते हैं जो संपूर्ण भारत का सबसे अधिक ज़िला बदर किए जाने का आंकड़ा है जो इस बात का प्रमाण है कि सबसे अधिक इसी जिले में मानव अधिकारों की हत्या ज़िला बदर के नाम पर की जाती है।
कलेक्टर भोपाल ने जिन 22 लोगों को तीन माह की अवधि के लिए ज़िला बदर किया है उनका विवरण:
श्यामला हिल्स-अश्शू उर्फ फैजान, अशोक पेन्द्राम, साहिल उर्फ शाहनवाज, निशात पुरा-अइया, जावेद चिकना, दानिश, अफ़रोज़, सलमान टीटी नगर, सोनू कामले उर्फ दीपक।
गौतम नगर- अफ़सर अली, वसीम, सिकन्दर आसिफ
हनुमान गंज -जैद,
चुना भट्टी- संजय उर्फ अमृत लाल
गांधी नगर-दातार सिंह पारदी,
हबीबगंज- विक्की उर्फ विवेक,
ऐशबाग- अजीम मेवाती,
जहांगीराबाद- विक्रम केथवास, भूरा जोगी
तलैया- बाबर उर्फ जिब्रान, मोहम्मद फराज उर्फ बल्ली
बाग सेवनिया -शैलू कंजर।
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