आसिम खान, छिंदवाड़ा (मप्र), NIT;
पचमढ़ी में नागपंचमी के अवसर पर भव्य मेला लगता है, लेकिन इस मेले में शामिल होने का साहस बहुत कम लोग ही कर पाते हैं, कारण है यहां के घने जंगल और खतरनाक पहाड़ियां, जिनके बीच से नागद्वारी तक पहुंचना आसान नहीं है। इसके बावजूद हजारों की संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं। धार्मिक एवं पर्यटन नगरी पचमढ़ी में नागद्वारी मेला शुरू हो गया है। नागद्वारी की पहाड़ी यात्रा पैदल पूरी करने वाले भक्तों में युवा, महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे भी उत्साह से शामिल होते हैं। यदि आप एक धैर्यवान, साहसी व्यक्ति हैं और दुर्गम पहाडिय़ों पर चढ़ने और उतरने का खतरा उठाने को तैयार हैं, तो आप नागराज की दुनिया के दर्शन कर सकते हैं। मध्य प्रदेश में छिंदवाड़ा जिले से लगभग 160 किमी दूर सतपुड़ा की पहाड़ियां हैं। यहां पचमढ़ी के पास घने जंगलों और बड़ी-बड़ी पहाडिय़ों के बीच स्थित है नागद्वारी।
घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच बसे नागद्वारी में हजारों सांप रहते हैं। अक्सर रास्ते के किनारे यात्रियों को नजर आते रहते हैं। लेकिन, लोग जरूर खौफ में रहते हैं, लेकिन सांप यात्रियों को कुछ नहीं करते। इसी प्रकार बिच्छू भी बड़ी तादाद में नजर आते रहते हैं। लेकिन, भगवान शंकर का नाम लेकर यात्री आगे बढ़ते जाते हैं।
भक्तों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं सांप
आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व आरंभ हुई नागद्वारी की यात्रा कश्मीर की अमरनाथ यात्रा की तरह ही अत्यंत कठिन और खतरनाक है। इसलिए इसे छोटा अमरनाथ भी कहते हैं। कई मायनों तथा परिस्थितियों में तो यह उससे भी ज्यादा खतरनाक और चुनौतीपूर्ण मानी गई है। ऊंची-नीची तथा दुर्गम पहाडिय़ों के बीच बने रास्तों पर श्रद्धालुओं के लिए किसी तरह का आश्रय अथवा विराम स्थान न होने के कारण भक्तों को लगातार चलते ही रहना है। गर्मियों के मौसम को छोड़कर यहां हमेशा कोहरा बना रहता है। इस कोहरे तथा ठंड के मध्य यात्रा करने का अपना अलग ही आनंद है। नागद्वारी की यात्रा करते समय रास्ते में आपका सामना कई जहरीले सांपों से हो सकता है, लेकिन राहत की बात है कि यह सांप भक्तों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। पचमढ़ी में हर साल 10 दिनों के लिए लगाने वाले नागद्वारी यात्रा मेला का आयोजन किया जाता है। ये मेला घने जंगलों के बीच लगाता है जिसे नागद्वारी मेला भी कहा जाता है। इस मेले के बारे में मप्र से ज्यादा श्रृद्वालु महाराष्ट्र और उसके आसपास के श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस मेले की खास बात ये है नागदेव के दर्शन के लिए सतपुड़ा रिजर्व इस मेले को केवल 10 दिन के लगाने की अनुमति देता है जिसमें ।नागद्वारी आने की इच्छा कम लोगों की ही पूरी होती है। मान्यता है कि नागद्वारी की यात्रा बहुत कठिन है। यह एक ऐसी यात्रा है, जिसको साहस, हौसले के बलबूते पर ही पूरा किया जा सकता है। यहां आने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति में जोखिम उठाने का हुनर होना जरूरी है। यूं तो सालभर यहां भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन श्रावण मास में तो नागपंचमी के10 दिन पहले से ही कई प्रांतों के श्रद्धालु, विशेषकर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के भक्तों का आना प्रारंभ हो जाता है।
नागद्वारी के अंदर चिंतामणि की गुफा है। जानकारी के मुताबिक यह गुफा 100 फीट लंबी है। इस गुफा में नागदेव की मूर्तियां विराजमान हैं। स्वर्ग द्वार चिंतामणि गुफा से लगभग आधा किमी की दूरी पर एक गुफा में स्थित है। स्वर्ग द्वार में भी नागदेव की ही मूर्तियां हैं। श्रद्धालुओं का ऐसा मानना है कि जो लोग नागद्वार जाते हैं, उनकी मांगी गई मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
कुछ प्रचलित कहानियां
नागद्वारी यात्रा का मुख्य केन्द्र सतपुड़ा अंचल की पहाडिय़ों में बसा गांव काजरी है। कहा जाता है कि गांव की काजरी नामक एक महिला ने संतान प्राप्ति के लिए नागदेव को काजल लगाने की मन्नत मानी थी। संतान होने के बाद जब वह काजल लगाने पहुंची तो नागदेव का विकराल रुप देखकर उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गई थी, इसके बाद उस गांव का नाम काजरी पड़ा गया। बताया जाता है कि यात्रा की शुरुआत भी यहीं से होती है।
– दूसरी मान्यता है कि नागद्वारी यात्रा से कालसर्प दोष दूर होता है। नागद्वारी की पूरी यात्रा सर्पाकार पहाडिय़ों से गुजरती है। पूरे रास्ते ऐसे लगता है कि जैसे यहां की चट्टाने एक दूसरे पर रखी हैं। मान्यता है कि एक बार यह यात्रा कर लेने वाले का कालसर्प दोष दूर हो जाता है।
नागलोक से जुड़ी भीम की कथा
एक अन्य कथा जो नागलोक से जुड़ी एक भीम की कथा भी है, उल्लेखनीय है कि भीम के पास हजारों हाथियों के बराबल बल था, कहा जाता है कि यह बल उनको नागलोक से ही मिला था, महाभारत के अनुसार भीम के इस अद्भुत बल से दुर्योधन खुश नहीं था इसलिए उसने भीम को मारने के लिए युधिष्ठिर के सामने गंगा तट पर स्नान, भोजन और खेल का प्रस्ताव रखते हुए कई प्रकार के व्यंजन तैयार करवाए। भोजन में दुर्योधन ने भीम को विषयुक्त भोजन दे दिया था, उनके बेहोश होते ही दुर्योधन ने भीम को गंगा में डुबो दिया था, मूर्छित भीम नागलोक पहुंच गए थे जहां उनको विषधर नागडंसने लगे इससे भीम के शरीर में विष का प्रभाव नष्ट होते ही वह चेतना में आ गए थे, और वह नागों में मारने लगे इसके बाद कुछ नाग भागकर आपने राजा वासुकि के पास पहुंचे, वासुकि ने पहुंचकर भीम से परिचय लिया। वासुकि नाग ने भीम को अपना अतिथि बना लिया। नागलोक में आठ ऐसे कुंड थे, जिनका जल पीने से शरीर में हजारों हाथियों का बल आ जाता था। नागराज वासुकि ने भीम को उपहार में उन आठों कुंडों का जल पिला दिया। इससे भीम गहरी नींद में चले गए।
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