तारिक खान, रायसेन ( मप्र ), NIT; सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में आयोजित 91वीं भारती दर्शन कॉग्रेंस के दूसरे दिन सामाजिक रुप से पिछड़े लोगों के उत्थान में अफर्मेटिव एक्शन पर सिंपोसियम में कई रचनात्मक विचार सामने आए। शिवानंद आश्रम एमदाबाद के स्वामी अध्यात्मानंदजी ने कहा कि घावों की हीलिंग और समाज द्वारा पिछड़े लोगों की मदद और एकीकरण से ही लोगों का भला होगा। उन्होंने खाई पाटने वाले ऐसे दार्शनिकों की आवश्यकता गिनाई जो समाज में एकीकरण को बढ़ा सके। उन्होने अनिवार्य निशुल्क शिक्षा को समाधान बताया। प्रो नितिन व्यास ने कहा कि सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन से न्याय की स्थापना होगी। प्रो बीपी शर्मा ने कहा कि उपनिषद की शिक्षा शाब्दिक बनकर रह गई क्योंकि जाति व्यवस्था जन्म आधारित व्यवस्था बन गई। श्रीलंका से आए प्रो दया इदिरिसिंघे ने कहा कि उनके देश में शिक्षा मुफ्त है और सरकार द्वारा ही दी जाती है। सिंघली एवं तमिल भाषाओं को समान रुप से बढ़ावा देने के कारण श्रीलंका में सामाजिक समरसता है। उन्होने कहा कि उनके देश में जाति का उल्लेख किसी भी नौकरी के आवेदन में आवश्यक नहीं है और इससे समरसता बढ़ाने में मदद मिली है। इस मौके पर प्रो श्याम गोस्वामी ने कहा कि हमने जाति और वर्ण को मिला दिया है। वर्ण जहां संस्कार आधारित स्वधर्म है वहीं जाति बुद्धि का भ्रमण है जिसे हमने जन्म आधारित कर दिया। उन्होने कहा कि शास्त्र में हिंदू का कहीं जिक्र नहीं है। वल्लभाचार्य जैसे विद्वानों ने कहा है कि ब्राह्मण कोई जाति नहीं थी। उन्होने समाज द्वारा जाति के बंधन तोड़ने का आव्हान किया। एंडोमेंट लेक्चर सीरीज़ में कनाडा से आए कल्पेश भट्ट ने स्वामी नारायण संप्रदाय और शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत के बीच अंतर की बात की। मंजुलिका घोष ने धार्मिक बहुलतावाद में भाषा, प्रतीक, देव, अभिव्यक्ति, मुक्ति के स्वरुप और साधनों में विविधिता बताई। उन्होने कहा कि बोधिसत्व का आदर्श सभी को शामिल करता है।
प्रो अमरनाथ झा ने कहा कि समाज का स्वरुप इससे तय होता है कि धर्म का स्वरुप प्रेम और समर्पण पर आधारित है या घृणा और हिंसा पर। उन्होने गांधीजी को उद्धृत करते हुए कहा कि बापू ने धर्म को जीवनशैली मानते हुए कहा कि सर्व-धर्म समभाव में सभी मूल्य विद्यमान है। वल्लभाचार्य वेदांत व्याख्यान में वल्लभ वेदांत के संदर्भ में आत्मानुभूति पर बोलते हुए प्रो श्याम मनोहर गोस्वामी ने कहा कि विद्या के जरिये अमृत प्राप्त करने का दृष्टांत हमारे ग्रंथों में है। उन्होने कहा कि मांडूकोपनिषद में चेतना की अवस्थाएं समझाई गई है और आत्मानुभूति प्रत्यक्ष के साथ परोक्ष रुप में भी हो सकती है।
भारतीय दर्शन के इतिहास को मौजूदा परिप्रेक्ष्य में लिखने पर भी इंडियन फिलोसॉफिकल कांग्रेस में सहमति बनी। इस मामले पर चर्चा में पुनर्लेखन को विषय आधारित या समस्या आधारित करने, मूल ग्रंथों को आधार बनाने और तकनीक का अधिकाधिक उपयोग करने के सुझाव आए। कई विचारकों ने पुनर्लेखन में भारतीय पक्ष को आधार बनाने का विचार दिया।
लेक्चर सीरीज के बाद हुए तकनीकी सत्र में पांच अलग-अलग विषयों यथा- दर्शन का इतिहास, तत्वमीमांसा और ज्ञानमीमांसा, आचार और सामाजिक दर्शन, अध्यात्म एवं विज्ञान एवं धर्म पर 34 शोध-पत्र पढ़े गए। दिन के अंतिम सत्र में इच्छामृत्यु विषय पर सिंपोसियम में विचारकों एवं चिंतको ने अपने विचार व्यक्त किए। 14 फरवरी को इंडियन फिलोसॉफिकल कांग्रेस की बैठक में इंडोमेंड लेक्चर सीरीज में सांस्कृतिक एवं धार्मिक समझ पर प्रो गणेश प्रसाद दास लेक्चर होगा। इसी कड़ी में दया कृष्ण मेमोरियल लेक्चर एवं के एस मूर्ति मेमोरियल लेक्चर भी होगा। तकनीकी सत्रों में तत्वमीमांसा और ज्ञानमीमांसा, आचार और सामाजिक दर्शन एवं धर्म पर 32 शोध-पत्र पढ़े जाएंगे। इसी दिन 2.30 बजे से समापन सत्र का आयोजन होगा।
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