परमहंसी गंगा आश्रम से विशेष संवाददाता की रिपोर्ट
श्रीधाम /परमहंसी गंगा आश्रम /धूमा /सिवनी (मप्र), NIT; नव वर्ष के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय ब्राह्मण महासंस्था सिवनी जिलाध्यक्ष पीयूष मिश्रा और जिला मीडिया प्रभारी अश्वनी बबला मिश्रा सहित लखनादौन से अभय पाराशर, सूरज पाराशर, धूमा से रविकांत तिवारी, बरघाट से संजय तिवारी धनौरा से पवन तिवारी बरघाट से के के दुबे और केवलारी से छोटेलाल दुबे और संतोष तिवारी सहित बंडोल राहीवाड़ा से अभिषेक पांडे तथा जिले के सभी पदाधिकारियों सहित जिले के 8 ब्लॉकों के सदस्यों ने द्विपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज से परमहंसी गंगा आश्रम श्रीधाम स्थित मणिद्वीप जाकर आशीर्वाद ग्रहण किया।
जगतगुरु शंकराचार्य जी ने एकात्म यात्रा के विषय में बताया कि जनसंपर्क विभाग मध्यप्रदेश से जारी लेख से पता चला है कि मध्य प्रदेश सरकार 19 दिसंबर से 22 जनवरी 2018 तक एकात्म यात्रा आयोजित कर रही है जो अमरकंटक से प्रारंभ होकर ओमकारेश्वर में समाप्त होगी और यहां पर अष्टधातु की 108 फीट ऊंची शंकराचार्य जी की प्रतिमा ओमकारेश्वर में स्थापित की जाएगी।
मध्य प्रदेश के दो प्रमुख गौरव है पहला यहां गुरु भूमि है यहां नर्मदा के उत्तर तट पर गोविंद भगवत्पाद जो कि आदि गुरु शंकराचार्य के गुरु थे उनका आश्रम गोविंद नाथ वन जो कि वर्तमान में नरसिंहपुर जिले में नर्मदा के उत्तर घाट पर स्थित है एवं आज भी उसे सांकल घाट के नाम से जाना जाता है जहां आदि शंकराचार्य जी ने सन्यास धारण किया इसका उल्लेख भी नरसिंहपुर गजटियर करता है। दूसरा गौरव मध्यप्रदेश का यह है कि यहां से आदि गुरु शंकराचार्य जी के द्वारा स्थापित चार पीठों में से 2 पीठ ज्योतिषपीठ एवं द्वारका शारदा पीठ के वर्तमान शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का जन्म स्थल है।
#इतिहास से छेड़छाड़ कर रही प्रदेश सरकार#
शंकराचार्य जी को लेकर किए जा रहे मध्य प्रदेश सरकार के प्रयास सराहनीय हो सकते थे अगर वे तथ्यों की अनदेखी ना करते आज अज्ञानतावश किया जा रहा यह भव्य प्रयास बचकाना प्रतीत हो रहा है इस यात्रा में कहा जा रहा है कि आदि शंकराचार्य जी का जन्म सन 650 ईसवी के बाद हुआ एवं उन्होंने ओमकारेश्वर में सन्यास धारण किया। यह दोनों तथ्य सर्वथा ही गलत है इन सूचनाओं का आधार ब्रिटिश लेखक हैं जिन्होंने हमारे इतिहास से छेड़छाड़ की है आदि गुरु द्वारा स्थापित चारों पीठों की परंपरा ही उनके संबंधित प्रमाणिक तथ्यों को बता सकती है। तत्कालीन राजा सुधन्वा ताम्र लेख लेख जो कि न्यायालय द्वारा प्रमाणित माना गया है उसके अनुसार शंकराचार्य आविर्भाव काल युधिष्ठिर संवत 2663 माना गया है जो कि ईसा पूर्व 478 पर ठहराता है। द्वारका शारदा पीठ पूरी शारदा पीठ एवं कांची के आचार्य परंपरा जो कि ईसा पूर्व से निरंतर है उसकी अनदेखी कैसे की जा सकती है? इसके अतिरिक्त शताधिक ऐसे अकाट्य प्रमाण है जो शंकराचार्य आविर्भाव काल को ईसापूर्व सिद्ध करते हैं। इस यात्रा से शंकराचार्य जी के गौरव की हानि तो नहीं होगी किंतु वर्तमान मध्यप्रदेश सरकार अपनी मूर्खता एवं अज्ञानता का चिरस्थाई स्तंभ ओमकारेश्वर में जरूर बना रही है। यह वैसे ही हो रहा है जिस तरह इतिहास में तुगलकी फरमान जारी किया जाता था।
नरसिंहपुर नर्मदा किनारे मुख्यमंत्री ने देखी थी गुफा
पूज्यपाद शंकराचार्य जी ने मुख्यमंत्री जी को उपयुक्त नरसिंहपुर स्थित नर्मदा किनारे वह गुफा दिखलाई थी जो प्रमाणित विभिन्न शंकराचार्य चरित्रों के अनुसार शंकराचार्य सन्यास स्थल है किंतु इसकी अनदेखी की गई है। आदि गुरु शंकराचार्य ने संपूर्ण भारत का भ्रमण कर चारों दिशाओं में चार मठ स्थापित कर निश्चित ही एकात्म यात्रा की थी किंतु उस में संकोच कर उसे अमरकंटक से ओम्कारेश्वर तक ही एकात्म यात्रा शीषक से करना क्या उनके महनीय प्रयास को लघुतर करना नहीं है?
एकात्म यात्रा शीर्षक से तो उनके आविर्भाव स्थल से यात्रा का प्रारंभ कर के उसे शंकराचार्य यात्रा पथ से जोड़ते हुए चारों पीठों का दर्शन करते हुए केदारनाथ तक ले जाना चाहिए था उनके जन्म स्थान के निकट पढ़ने वाला एयरपोर्ट कोच्चि का नाम आदि गुरु के नाम से रखा जाना चाहिए।
विगत दिनों भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ यात्रा की थी और वहां कहा था आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व आदि शंकराचार्य जी का अविर्भाव हुआ था उनके इस वक्तव्य का भी खंडन प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह द्वारा किया जा रहा है जबकि वह शंकराचार्य जी को ईसा से 650 के लगभग मानते हैं।
ओमकारेश्वर हमारे यहां बहुत महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है द्वादश ज्योतिर्लिंग में अन्यतम अमलेश्वर यहां पूजित होते हैं अगर यहां ही शंकराचार्य का सन्यास उत्तर होता तो विभिन्न शास्त्र चरित्रों में निश्चित ही ओम कालेश्वर का उल्लेख होता अतः इस प्रसिद्ध स्थान का उल्लेख ना होना भी एक प्रमुख प्रमाण है कि ओमकारेश्वर शंकराचार्य जी का सन्यास स्थल नहीं है बल्कि नरसिंहपुर जिले के नर्मदा उत्तर पर सांकल घाट ही है जो की शंकर घाट का अपभ्रंश है। अतः देशकाल एवं सिद्धांतों से सर्वथा विरुद्ध यह एकात्म यात्रा एवं इसके आयोजकों को हम शास्त्रार्थ की चुनौती देते हैं वह इस संबंध में विचार कर लें। अंतर्राष्ट्रीय ब्राह्मण महासंस्था के जिला मीडिया प्रभारी अश्वनी बबला मिश्रा ने बताया कि मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा निकाली गई एकात्म यात्रा से प्रदेश सरकार के मुखिया जनमानस को भ्रमित कर रहे हैं और समय रहते उन्हें इन बातों का एहसास होना चाहिए इसके चलते अंतर्राष्ट्रीय ब्राह्मण महासंस्था इस एकात्म यात्रा में किसी भी रुप में सहयोग प्रदान नहीं करेगी और समय-समय पर प्रदेश के जनमानस को इस एकात्म यात्रा की सच्चाई बताते रहेगी।
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